जिन्हें पाकिस्तान ने ठुकराया, उन्हें गले लगाएगा हिन्दुस्तान!

मोदी सरकार ने अपने एक और वादे को पूरा करने की तरफ कदम बढ़ा दिया है. नागरिकता संशोधन विधेयक पर कैबिनेट की मुहर के बाद अब इसे संसद में पेश करने की तैयारी है. इस संशोधन बिल के जरिये मोदी सरकार 1955 के नागरिकता कानून में संशोधन करना चाहती है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Dec 9, 2019, 06:58 AM IST
    1. नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर बड़ा दिन
    2. आसान हो जाएगा नागरिकता का नियम
    3. घुसपैठियों की बढ़ जाएंगी मुश्किलें
जिन्हें पाकिस्तान ने ठुकराया, उन्हें गले लगाएगा हिन्दुस्तान!

नई दिल्ली: अखंड भारत का प्रचंड ट्रेलर रिलीज होने वाला है. जिससे पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए. हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों के लिए नागरिकता का नियम आसान हो जाएगा.

आ रहा है अखंड भारत का प्रचंड ट्रेलर!

अभी भारत की नागरिकता के लिए यहां कम से कम 11 सालों तक रहना जरूरी है. अब इसे आसान बनाकर बीते एक से छह सालों के बीच भारत आकर बसे लोगों को नागरिकता मिल पाएगी. इसका फायदा सिर्फ तीन पड़ोसी मुस्लिम बहुसंख्यक देशों से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों के लिए लागू होगा.

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि सिटिजनशिप बिल को कैबिनेट ने मंजूरी दी है. इसे इंट्रोड्यूस किए जाने के बाद इसके प्रावधान सामने आ जाएंगे.

नागरिकता का 'नमो'स्ट्रोक!

1955 के नागरिकता कानून के मुताबिक अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता नहीं मिल सकती है. देश के कानून के मुताबिक अवैध प्रवासी वो हैं. जो या तो बिना पासपोर्ट के भारत में घुस आए. या फिर जो वीजा का समय खत्म होने के बाद भी देश में रह रहे हैं.

कानून के मुताबिक ऐसे अवैध प्रवासियों को या तो जेल में रखा जा सकता है या फिर उनके देश वापस भेजा जा सकता है. लेकिन मोदी सरकार ने 2015 और 2016 में दो अलग-अलग कानूनों में संशोधन करके पाकिस्तान, अफगानिस्तान, और बांग्लादेश से आए हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी शरणार्थियों को बड़ी राहत दी. जिसके बाद बिना जरूरी दस्तावेजों के भारत में रह रहे इन समुदाय के शरणार्थियों को ना तो जेल में डाला जा सकता है और न उनको वापस भेजा जा सकता है. 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत आने वाले शरणार्थियों पर ही ये नियम लागू है.

मोदी सरकार ने 2016 में पहली बार पेश किया था विधेयक

पड़ोसी देशों से आए 6 धर्मों के अल्पसंख्यक शरणार्थियों को राहत तो मिल गई. लेकिन सम्मान की जिंदगी बिना नागरिकता के संभव नहीं. इसलिए 2016 में पहली बार मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन विधेयक को संसद में पेश किया. 19 जुलाई 2016 को पेश हुए नागरिकता संशोधन विधेयक को 12 अगस्त, 2016 को ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के पास भेजा गया. 7 जनवरी 2019 को जेपीसी ने इस पर अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसके बाद 8 जनवरी 2019 को इस विधेयक को लोकभा में पास कराया गया था. लेकिन इसे मोदी सरकार तब राज्यसभा में पेश नहीं कर पाई थी.

इस बीच चुनाव का वक्त आ गया. दोबारा सत्ता में वापसी के बाद मोदी सरकार ने एक बार फिर नागरिकता संशोधन विधेयक को पास कराने की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं. नागरिकता संशोधन विधेयक को सरकार संसद में पेश करने को तैयार है. लेकिन इसको लेकर कुछ आशंकाएं भी हैं. सबसे ज्यादा पूर्वोत्तर के राज्यों में इस पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं.

घुसपैठियों के लिए सख्त है मोदी सरकार

पूर्वोत्तर में बड़ी तादाद में बांग्लादेशी शरणार्थी रह रहे हैं. यहां असम से लेकर त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम और मेघालय तक में हजारों शरणार्थी रह रहे हैं. पूर्वोत्तर के कई संगठनों का दावा है कि अगर सरकार ने घुसपैठ कर भारत आए लोगों को भी नागरिकता दे दी. तो उनकी क्षेत्रीय पहचान से लेकर रोजी-रोटी के साधनों पर संकट पैदा हो सकता है. इन लोगों की दलील है कि बांग्लादेश से हजारों की तादाद में आए लोगों ने उनकी जमीन पर कब्जा कर रखा है. जिससे उन्हें अपनी ही धरती पर अल्पसंख्यक होने का डर है.

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वहीं केंद्र सरकार कह रही है कि इस बिल में सभी वर्गों के हितों का ध्यान रखा गया है. और जब विधेयक का प्रावधान सामने होगा, तो सभी इसका स्वागत करेंगे. साफ है कि मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन बिल पर फिलहाल बड़ा दांव चल दिया है. अब देखना ये है कि नागरिकता पर ये नमोस्ट्रोक कितना असरदार साबित होता है.

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