नई दिल्ली: जिस भगवा राजनीति की चहुंओर चर्चा चल रही है, उसकी नींव रखने वाले कोई और नहीं राजनीति के भीष्म पितामह लाल कृष्ण आडवाणी हैं. हिंदुत्ववाद के जिस विचारधारा पर सवार हो कर भाजपा अजेय बढ़त बनाती चली जा रही है, उसके नायक रहे हैं लाल कृष्ण आडवाणी.
सदियों पुराना झगड़े सुलझाने का आधार तय किया
15वीं शताब्दी में जिस भूमि पर राम मंदिर का विध्वंस कर बाबरी मस्जिद बनाया गया था, उसके तकरीबन 500 साल बाद राम मंदिर निर्माण आंदोलन की जमीन तैयार करने वाले लालकृष्ण आडवाणी ही थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स सम्मेलन के लिए ब्राजीलिया रवाना होने से पहले लालकृष्ण आडवाणी से मिलकर उन्हें जन्मदिन की बधाई दी.
#WATCH: PM Narendra Modi meets senior BJP leader LK Advani at the latter's residence on his 92nd birthday. Vice President Venkaiah Naidu, BJP President Amit Shah and BJP working President JP Nadda also present. #Delhi pic.twitter.com/zUvVVQJMvg
— ANI (@ANI) November 8, 2019
दिलचस्प बात यह है कि 1992 में बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया गया था और राम मंदिर निर्माण का फैसला अब आने वाला है जब लालकृष्ण आडवाणी 92 साल पूरे कर चुके हैं. इस आंदोलन के मुख्य हीरो रहे आडवाणी को 92वें जन्मदिन पर राम मंदिर से जुड़े फैसले के रूप में तोहफा मिल सकता है.
भाजपा के संस्थापक रहे हैं आडवाणी
1980 का वह समय जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में बनी भारतीय जनसंघ को भारतीय जनता पार्टी का नया रूप दिया गया. उसकी कमान लालकृष्ण आडवाणी के हाथों सौंपी गई. उस वक्त तक दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी भाजपा के स्टार चेहरे हुआ करते थे. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में 426 सीटें जीत कर आई कांग्रेस ने लगभग सभी दलों का सुपड़ा साफ कर दिया था. भाजपा भी मात्र दो सीटों पर सिमट गई थी. लेकिन 1989 के बाद का चुनाव भाजपा के लिए लगातार बढ़ता ग्राफ दिखा रहा था. इसकी नींव रखने वाले अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी ही थे.
आडवाणी की रथयात्रा को मिली देशव्यापी शोहरत
दरअसल, 1990 में भाजपा ने वो बड़ा दांव खेला जिसके बाद हिंदुत्ववाद की राजनीति को मुख्यधारा में लाने की जमीन तैयार हो चुकी थी, अब बस उसे लगातार मांजते रहने की जरूरत थी. 1990 में लालकृष्ण आडवाणी ने कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक रथयात्रा करनी शुरु की ताकि मंदिर निर्माण का रास्ता तय हो सके. हालांकि, इस रथयात्रा का मुख्य उद्देश्य हिंदुत्ववाद को देशव्यापी एक सूत्र में पिरोने का था. भाजपा के लौहपुरूष लालकृष्ण आडवाणी इसके मुख्य चेहरे थे. इस रथयात्रा से आडवाणी ने देश में हिंदुत्ववाद के लहर का प्रसार-प्रचार करना शुरू कर दिया था. लेकिन बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने न सिर्फ इस रथयात्रा को रोका बल्कि आडवाणी को गिरफ्तार भी करा दिया.
भाजपा की सफलता के पीछे आडवाणी की मेहनत
तब तक आडवाणी के रथयात्रा का जादू चल चुका था. बाद के दिनों में जब 1996 में चुनाव हुए और भाजपा 161 सीटें जीत सबसे बड़ी पार्टी बन कर आई तो उसके असर को महसूस किया जाने लगा था. 1996 में लालकृष्ण आडवाणी के संघर्ष को बेहतर परिणाम मिले और देश में पहली बार भाजपा से प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी. हालांकि, बहुमत तब भी नहीं थी तो सरकार भी गिर गई. 1998 में फिर चुनाव हुए. भाजपा को फिर बहुमत नहीं मिल सका लेकिन आडवाणी के प्रयासों और वाजपेयीजी के व्यक्तित्व के बदौलत NDA सरकार फिर बनी जो 13 महीने तक ही रह सकी. 1999 में फिर चुनाव हुआ, भाजपा 180 सीटें जीत फिर सबसे बड़ी पार्टी बनी और इस दफा सहयोगी दलों के साथ सामंजस्य बिठाकर अपना कार्यकाल पूरा करने वाली पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी. प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने इसका पूरा श्रेय लालकृष्ण आडवाणी को दिया जो सहयोगी दलों को मैनेज किए रखते थे.
कभी मुख्य भूमिका में नहीं दिखे आडवाणी
लालकृष्ण आडवाणी ने भाजपा की नई राजनीति का नया रास्ता तय किया और खुद कई बार प्रधानमंत्री पद के दावेदार रहते हुए भी त्याग कर सहायक भूमिका में ही रहे. हालांकि, 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने लालकृष्ण आडवाणी के प्रधानमंत्री चेहरे के नेतृ्त्व में ही चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. पार्टी को मात्र 116 वोट मिले जो पिछली बार से भी 22 सीटें कम थी. इस चुनाव परिणाम के बाद से ही लालकृष्ण आडवाणी की खूब आलोचना की गई. कहा तो यह भी गया कि आडवाणी के प्रधानमंत्री पर दावेदारी की अब एक्सपायरी डेट हो गई है. उनकी नेतृत्व क्षमता पर भी सवालिया निशान लगाए गए.
लेकिन आज जिस हिंदुत्ववाद के रथ पर सवार हो कर भाजपा ने लगातार दूसरी बार बहुमत हासिल किया, उसको देख यह लगता है कि आडवाणी के प्रयासों का ही नतीजा है. भाजपा ने उन्हीं मुद्दों के साथ चुनावी मैदान में दोनों बार दंगल मारी जिसे आडवाणी ने तैयार किया था.