अहमदाबादः गुजरात के सीएम विजय रूपाणी एक मृदुभाषी मुख्यमंत्री के रूप में जाने जाते रहे हैं. राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि इसी विशेषता के कारण उनकी छवि ‘कमजोर’ मुख्यमंत्री की बन गयी और नौकरशाह महत्वपूर्ण फैसले लेने में राजनीतिक नेतृत्व की अनदेखी करते रहे . कुछ पर्यवेक्षकों का यह भी मानना है कि रूपाणी जिस तरह कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर और उसके बाद आर्थिक तथा सामाजिक परेशानियों से निपटे, उससे भी उन्हें पद छोड़ना पड़ा .
रुपाणी ने दिया इस्तीफा
राज्य में अगले वर्ष दिसंबर में होने वाले चुनाव से करीब सवा साल पहले शनिवार को इस्तीफा देने वाले रूपाणी (65) ने अपने दूसरे कार्यकाल में अंतर-धार्मिक विवाहों के खिलाफ सख्त धर्मांतरण रोधी कानून पारित करने में अहम भूमिका निभाई . उन्होंने गोकशी में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई के लिए कानून लाने में भी भूमिका निभाई . पिछले लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान गुजरात में भाजपा का चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही थे, लेकिन अल्पसंख्यक जैन समुदाय से आने वाले रूपाणी ने गुजरात में पार्टी के प्रचार की कमान संभाली .
बचपन से ही आरएसएस की ओर रुझान
रंगून (अब म्यामां के यांगून) में जन्मे रूपाणी स्कूल के दिनों में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शाखा में जाने लगे थे और स्नातक करने के बाद वह आरएसएस के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में काम करते हुए भाजपा में आ गये . रूपाणी 2016 में पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे . उससे पहले उन्होंने गुजरात में अधिकतर समय पार्टी संगठन के लिए काम किया और 2014 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़े तथा राजकोट पश्चिम से उपचुनाव जीते .
जिताया था चुनाव
वह सत्ता विरोधी माहौल और पाटीदार समुदाय के हिंसक आरक्षण आंदोलन के बाद भी, फिर से 2017 में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हुए . विधि स्नातक रूपाणी 2006 से 2012 के बीच राज्यसभा सदस्य रहे थे .
रूपाणी जब 2006 में गुजरात पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष थे तो राज्य में पर्यटन के प्रचार के लिए ‘खुशबू गुजरात की’ शीर्षक वाला अत्यंत सफल विज्ञापन अभियान शुरू किया गया था, जिसमें अभिनेता अमिताभ बच्चन भी दिखाई दिये .
रूपाणी को 19 फरवरी, 2016 को भाजपा की गुजरात इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था . जब राज्य की पहली और एकमात्र महिला मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने पाटीदार और दलित समुदाय के आंदोलनों को सही से नहीं संभाल पाने के आरोपों के बीच अगस्त 2016 में इस्तीफा दिया तो रूपाणी को राज्य की कमान मिली .
रूपाणी ने 1974 में अपने छात्र जीवन में गुजरात नवनिर्माण आंदोलन में अपना राजनीतिक कौशल दिखाया था . इस अभियान को सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार तथा आर्थिक संकट के खिलाफ छात्रों और मध्यम वर्ग ने चलाया था . उस समय एबीवीपी से जुड़े रूपाणी आपातकाल में करीब एक साल तक जेल में रहे . उन्होंने 1996-97 में राजकोट के मेयर के रूप में नागरिक सुविधाओं में सुधार के साथ शहर की जनता का समर्थन जुटाया .
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