झारखंड में आदिवासियों को लेकर बीजेपी-झामुमो क्यों हैं आमने-सामने, समझिए पूरी सियासी गणित

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शनिवार को दावा किया कि झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार के शासनकाल में जनसांख्यिकी में बदलाव आया है और कुल जनसंख्या में ‘आदिवासियों’ की हिस्सेदारी घटी है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Feb 5, 2023, 01:28 AM IST
  • जानिए क्या है पूरी सियासी गणित
  • क्यों इसको लेकर सभी पार्टियां मुखर
झारखंड में आदिवासियों को लेकर बीजेपी-झामुमो क्यों हैं आमने-सामने, समझिए पूरी सियासी गणित

नई दिल्लीः केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शनिवार को दावा किया कि झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार के शासनकाल में जनसांख्यिकी में बदलाव आया है और कुल जनसंख्या में ‘आदिवासियों’ की हिस्सेदारी घटी है. शाह ने भाजपा की 'विजय संकल्प महा रैली' को संबोधित करते हुए आरोप लगाया कि भारी घुसपैठ के कारण आदिवासियों की आबादी 35 प्रतिशत से घटकर 24 प्रतिशत रह गई है, जिसे हेमंत सोरेन सरकार द्वारा वोट बैंक की राजनीति के लिए "प्रोत्साहित" किया गया है. उन्होंने घुसपैठियों पर राज्य में जमीन हड़पने का आरोप लगाया. 

घुसपैठिए कब्जा रहे आदिवासियों की जमीन
शाह ने आरोप लगाया, हेमंत बाबू न केवल भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, बल्कि जनसांख्यिकीय परिवर्तन के पीछे भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं घुसपैठिए यहां आ रहे हैं और आदिवासियों की संख्या कम हो रही है. घुसपैठिए आदिवासियों की जमीन हथिया रहे हैं. उन्होंने कहा कि साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा, दुमका और जामताड़ा में जनजातीय आबादी "घट रही है" और आरोप लगाया कि "वोट बैंक की राजनीति और कांग्रेस के दबाव" के कारण सोरेन में इसके खिलाफ बोलने का "साहस नहीं" है. 

हेमंत सोरेन ने किया पलटवार
शाह की इस रैली का जवाब देते हुए सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि पिछले दो दशकों में राज्य के किसी भी आदिवासी नेता को तीन वर्ष से अधिक समय तक मुख्यमंत्री पद पर नहीं बने रहने दिया गया. खुद को ‘झारखंडी’ बताते हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेता ने यह भी आरोप लगाया कि विपक्षी पार्टी ‘झूठे आरोप’ लगाकर उन्हें (मुख्यमंत्री के पद से) ‘हटाने की साजिश रच रही है.

आदिवासी क्यों इतने अहम
दरअसल, झारखंड में लोकसभा की 14 सीटें हैं. 2019 के लोकसभा में भाजपा ने यहां पर 12 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन अब यहां सीएम सोरेन हैं जिससे भाजपा को इन सीटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है. इसलिए बीजेपी अपनी ताकत झोंक रही है. झारखंड की राजनीति आदिवासी केंद्रित रही है. झारखंड राज्य गठन के बाद रघुवर दास को छोड़कर तमाम मुख्यमंत्री इसी समुदाय के रहे हैं. राज्य की 81 विधानसभा सीटों में 28 सीटें जनजातियों के लिए सुरक्षित हैं. 

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विधानसभा में आदिवासियों ने दिया था झटका
आदिवासी वोटों का झुकाव सत्ता तक पहुंचने की चाबी है. वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की हाथ से सत्ता फिसलने का सबसे बड़ा कारण आदिवासी सुरक्षित सीटों पर पार्टी का बेहद खराब प्रदर्शन रहा. सिर्फ दो जनजाति सुरक्षित सीटों पर भाजपा काबिज हो सकी. ज्यादातर सीटें झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के हिस्से में जाने के कारण भाजपा को सत्ता से बेदखल होना पड़ा.

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