शाह ने क्यों लिया नेहरू-लियाकत का नाम, CAB से क्या है जुड़ाव

अमित शाह ने सदन में कहा कि अगर पड़ोसी मुल्क 70 साल पहले हुए समझौते का मान रखता तो आज नागरिकता संशोधन बिल की जरूरत ही नहीं पड़ती. उन्होंने दो टूक और साफ-साफ कहा कि यह पहले की हुई भूल सुधार की ओर बढ़ता कदम है, इसिलए कांग्रेस यह आरोप न लगाए कि नागरिकता संशोधन विधेयक धर्म के आधार पर देश को बांटने की साजिश है. इस दौरान उन्होंने नेहरू-लियाकत समझौते का जिक्र किया.

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Dec 10, 2019, 08:00 PM IST
    • आठ अप्रैल 1950 को हुआ था नेहरू-लियाकत समझौता
    • दोनों देशों में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा था उद्देश्य
शाह ने क्यों लिया नेहरू-लियाकत का नाम, CAB से क्या है जुड़ाव

नई दिल्लीः केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह नागरिक संशोधन विधेयक में शामिल अपने प्रस्ताव सदन में रख रहे थे. कांग्रेस समेत विपक्षी दल इसका जोर-शोर से विरोध कर रहे थे. कांग्रेस ने तर्क रखा कि यह विधेयक देश को धर्म के आधार पर बांटने की साजिश है. अमित शाह ने जवाब दिया कि ऐसा बिल्कुल नहीं है. बल्कि यह उस गलती को सुधारने की कोशिश है जो 70 साल पहले हुई है. इसी के साथ उन्होंने पाकिस्तान के 70 साल पहले के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान का जिक्र किया. क्यों लिया गया उनका नाम, बहस की सुई आखिर 70 साल पहले क्यों घूमी? 

70 साल का जिक्र क्यों
भाजपा और भाजपाई 2014 से लेकर अब तक कई बार 70 साल-70 साल का जिक्र कर चुके हैं. इसमें कुछ नया नहीं है कि 70 साल पहले देश के प्रधानमंत्री थे पं. जवाहरलाल नेहरू और सत्ता थी कांग्रेस के हाथ में. यह तो तय है कि आज वर्तमान में जो भी हो रहा है उसकी वजहों की नींव 70-60 और 50 साल पहले ही पड़ी है.

नया यह है कि इस बार भारत का ही नहीं पाकिस्तान के भी 70 साल को खींच लाया गया है. जिसकी डोर जुड़ी है वहां तब प्रधानमंत्री रहे लियाकत अली खान से. 

क्या हुआ था तब
यह 1950 का साल था और भारत का संविधान लागू होकर हम गणतंत्र देश बन चुके थे. लेकिन इस दौरान पाकिस्तान-हिंदुस्तान में सब ठीक नहीं चल रहा था. इसी बिगड़े हुए को ठीक करने के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान भारत की राजधानी दिल्ली पहुंचे थे. यहां पं. नेहरू से उनकी 6 दिन लंबी बातचीत चली.

इस द्विपक्षीय बातचीत को दिल्ली समझौते के नाम से जाना जाता है. नेहरू और लियाकत के बीच में बातचीत हुई थी, इसलिए नेहरू-लियाकत समझौता भी कहा जाता है.

क्या हुआ था समझौता
इस समझौते परक लंबी बातचीत का अपनी सीमाओं के भीतर मौजूद अल्पसंख्यकों को पूरी सुरक्षा और उनके अधिकार देना. इस समझौते में कुछ खास बिंदुओं पर बात हुई और उन पर मुहर लगाई गई. इनमें शामिल था कि दोनों देश अपने अल्पसंख्यकों के साथ हुए व्यवहार के लिए ज़िम्मेदार होंगे.

शरणार्थियों के पास अपनी ज़मीन-जायदाद को बेचने या निपटाने के लिए वापस जाने का अधिकार होगा. जबरन करवाए गए धर्म-परिवर्तन मान्य नहीं होंगे. अग़वा महिलाओं को वापस उनके नाते-रिश्तेदारों के हवाले किया जाएगा. दोनों देश अल्पसंख्यक आयोग का गठन करेंगे.

इसकी नौबत क्यों आई? 
नवभारत का इतिहास इस त्रासदी के साथ ही शुरु होता है. साल था 1947, यानी हमारी आजादी का साल. इसी के साथ हमें सौगात में मिला विभाजन और इस विडंबना के बाज लाखों लोग दोनों देशों में शरणार्थी हो गए थे. आना-जाना लगा था और आने-जाने वालों पर मारकाट जारी थी.

आज का बंग्लादेश तब पूर्वी पाकिस्तान था और पंजाब, सिंध और कई इलाकों से हिंदू और सिख बड़ी संख्या में भारत आ रहे थे. पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब का वह हिस्सा जो भारत में आया वहां और भारत के दूसरे हिस्सों से मुसलमान पाकिस्तान जा रहे थे. एक तरीके से यह विश्व का सबसे बड़ा विस्थापन था. 

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दंगे हो रहे थे और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार भी
विभाजन के बाद कई इलाक़ों में बड़े पैमाने पर दंगे हो रहे थे और हिंदू-मुसलमान दोनों ही मारे जा रहे थे. इस दौरान ऐसे भी बहुत सारे मामले सामने आ रहे थे, जिसमें अपना देश छोड़ चुके इन शरणार्थियों की ज़मीन-जायदाद पर कब्जा हो गया था या फिर उसे लूट लिया गया था, बच्चियों-महिलाओं को अगवा कर लिया गया था,

लोगों का जबरन धर्म-परिवर्तन करवाया गया था.1948 में पाकिस्तान की तरफ़ से कश्मीर पर हुए हमले और उसके बाद भारत की तरफ़ से हुए हस्तक्षेप के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते बहुत ख़राब हो चुके थे, दिसंबर 1949 में दोनों के बीच व्यापार भी बंद हो गया. इन्हीं पर लगाम लगाने के लिए नेहरू-लियाकत समझौता या दिल्ली समझौता अमल में लाया गया. 

क्या कहा शाह ने
अमित शाह ने सदन में कहा कि अगर पड़ोसी मुल्क 70 साल पहले हुए समझौते का मान रखता तो आज नागरिकता संशोधन बिल की जरूरत ही नहीं पड़ती.

उन्होंने दो टूक और साफ-साफ कहा कि यह पहले की हुई भूल सुधार की ओर बढ़ता कदम है, इसिलए कांग्रेस यह आरोप न लगाए कि नागरिकता संशोधन विधेयक धर्म के आधार पर देश को बांटने की साजिश है.

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