Mahatma Gandhi and Nobel Prize: पूरी दुनिया में इस सप्ताह नोबेल पुरस्कार विजेताओं की चर्चा हो रही है. यह एक ऐसा पुरस्कार है, जिसे दुनिया का हर व्यक्ति जीतना या पाना चाहता है. इसमें अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी शामिल हैं. शांति के नोबेल पुरस्कार को लेकर इससे पहले विवाद भी हो चुके हैं. क्योंकि शांति का पुरस्कार दुनिया को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा गांधी को भी नहीं दिया गया था. जबकि वो 5 बार नॉमिनेट हुए थे.
इसके अलावा 1973 में पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर को शांति का नोबेल पुरस्कार मिला तो नोबेल कमेटी पर सवाल खड़े हुए. जिसपर जमकर बवाल हुआ था. किसिंजर पर आरोप था कि उन्होंने अमेरिका में तानाशाही का समर्थन किया और कंबोडिया में बमबारी का फैसला भी उन्हीं का था.
महात्मा गांधी को नोबेल पुरस्कार न देने और हेनरी किसिंजर को पुरस्कार देने पर नोबेल कमेटी पर दुनिया की कई दिग्गज हंस्तियों ने सवाल उठाए थे. लोगों ने पक्षपात तक के आरोप लगाए थे. ऐसे में इस खबर में जानते हैं कि महात्मा गांधी को नोबेल पुरस्कार किस वजह से नहीं दिया गया.
गांधी और नोबेल का अजीब रिश्ता
महात्मा गांधी जीवित रहते हुए नोबेल पुरस्कार के लिए 1937, 1938, 1939, 1947 में नॉमिनेट हुए. इसके अलावा मौत के बाद 1948 में
भी नॉमिनेट हुए. ऐसे में गांधी नोबेल पुरस्कार के लिए 5 बार नॉमिनेट हुए थे. हालांकि उन्हें एक बार भी पुरस्कार नहीं मिला. दुनिया का शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जिसे 5 बार नॉमिनेशन के बाद भी नोबेल पुरस्कार नहीं मिला.
चार बार क्यों चूके गांधी?
1937, 1938, 1939, 1947 में नोबेल कमेटी ने कहा कि महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा की बात करते हैं, लेकिन उनके सत्याग्रह से कभी-कभी हिंसा हो जाती है. इसके अलावा यह भी तर्क दिया गया कि गांधी सिर्फ भारत की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उन्होंने दुनिया के किसी अन्य देश में मनावता के लिए कुछ नहीं किया है. जबकि यूरोप और अफ्रीका में अश्वेत लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा हैं. हालांकि ऐसा नहीं है, गांधी ने हिटलर को पत्र लिखकर यहूदियों के नरसंहार को रोकने और द्वितीय विश्वयुद्ध को रोकने की अपील की थी.
1948 में गांधी की हत्या के बाद क्या बोली नोबेल कमेटी?
वहीं 1948 में महात्मा गांधी की नाथूराम गोडसे ने हत्या कर दी थी. हत्या के बाद महात्मा गांधी के नाम पर नोबेल कमेटी विचार कर रही थी, लेकिन उस समय तक नहीं था कि मृतक व्यक्ति को नोबेल का पुरस्कार दिया जाए या नहीं. इस वजह से 1948 में शांति का नोबेल पुरस्कार किसी को नहीं दिया गया था. नोबेल कमेटी द्वारा कहा गया कि गांधी के अलावा कोई उपयुक्त व्यक्ति नहीं है जिसे शांति का नोबेल पुरस्कार दिया जा सके. इसलिए 1948 का नोबेल शांति पुरस्कार किसी को भी नहीं दिया गया, यह एक प्रकार से गांधीजी को समर्पित मौन श्रद्धांजलि थी.
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