Kiran Bedi Life Story: 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है. इस मौके पर हम एक ऐसी साहसी महिला की कहानी लेकर आए हैं, जिन्होंने अपनी बहादुरी के दम पर धाक जमाई. एक साधारण घर से निकलकर भारत की पहली महिला IPS बनीं. यह कहानी किरण बेदी की है, जिन्होंने इंडियन पुलिस सर्विस में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया
टेनिस खिलाड़ी की बेटी हैं किरण
किरण बेदी का जन्म 9 जून, 1949 को अमृतसर, पंजाब में हुआ. उनके पिता टेनिस खिलाड़ी थे, इस कारण किरण को भी खेलों में रुचि थी. किरन ने सेक्रेड हार्ट कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ाई की और NCC कैडेट रहीं. बाद में उन्होंने बीए (अंग्रेजी ऑनर्स) की डिग्री ली, फिर पॉलिटिकल साइंस में मास्टर डिग्री की. दिल्ली यूनिवर्सिटी से कानून और आईआईटी दिल्ली से सोशल साइंस में पीएचडी की. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा है कि जब किरण बेदी स्कूल में पढ़ा करती थीं, तब उन्होंने मनचलों की बाजार में धुनाई कर दी थी. इन्होंने किरण की बहन के साथ छेड़खानी की थी.
बैच में 80 पुरुष, किरण इकलौती महिला
किरण बेदी ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लॉन टेनिस खेला और कई चैंपियनशिप जीतीं. 1972 में उन्होंने यूपीएससी परीक्षा पास कर भारत की पहली महिला आईपीएस बनने का गौरव हासिल किया. उनके बैच में 80 पुरुष थे और वह इकलौती महिला थीं.
प्रधानमंत्री ने नाश्ते पर बुलाया
किरण बेदी की पहली पोस्टिंग दिल्ली के चाणक्यपुरी में हुई. पहली पोस्टिंग में भी किरन बेदी ने खूब नाम कमाया. वे अपनी ईमानदारी और कर्मठता के लिए जानी जाती थीं. 1975 में गणतंत्र दिवस के मौके पर किरण बेदी ने राजपथ पर होने वाली परेड को लीड किया था. इस परेड के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें सुबह के नाश्ते पर आने का न्योता दिया.
जब पूरे देश में हुआ किरण बेदी का नाम
1982 में कुछ ऐसा हुआ, जिससे किरण बेदी पूरे देश में फेमस हो गईं. दरअसल, हुआ यूं कि प्रधानमंत्री कार्यालय की एक गाड़ी गलत जगह खड़ी थी. दिल्ली पुलिस के सब-इंस्पेक्टर निर्मल सिंह ने इस गाड़ी को क्रेन से हटवाया और उसका चालान किया. तब किरण बेदी ट्रैफिक DCP हुआ करती थीं. सबको लगा कि SI निर्मल सिंह को ऊपर से डांट पड़ेगी. लेकिन किरण बेदी ने सराहना की और उन्हें सम्मानित करने की बात भी कही.
तिहाड़ में किए एतिहासिक सुधार
किरन बेदी ने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो और मिजोरम पुलिस में भी सेवा दी. इसके बाद वे तिहाड़ जेल की आईजी बनीं. तब उन्होंने कैदियों के लिए शिक्षा और सुधार कार्यक्रम शुरू किया. इससे तिहाड़ जेल में सकारात्मक बदलाव आया. 35 साल तक पुलिस सेवा में रहने के बाद उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली. फिर पुडुचेरी की उप राज्यपाल बनीं.