कोविड’ के कवच का कोड टूटा तो समझो मिली वैक्सीन

कोविड-19 की वैक्सीन खोजी ही जा रही है. दुनिया भर में करीब 110 वैक्सीन प्रोजेक्ट्स पर काम तेजी से चल रहा है. हर कोई वैक्सीन डेवेलप करने के अलग रास्ते पर काम कर रहा है. उन्हीं रास्तों में से एक है स्पाइक प्रोटीन की डिकोडिंग.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : May 30, 2020, 04:08 PM IST
    • दुनिया भर में करीब 110 वैक्सीन प्रोजेक्ट्स पर काम तेजी से चल रहा है
    • स्पाइक प्रोटीन पाइप से कोविड-19 का RNA हमारे श्वसन तंत्र की कोशिका में वायरस इंजेक्ट कर देता है
कोविड’ के कवच का कोड टूटा तो समझो मिली वैक्सीन

नई दिल्लीः कोरोना वायरस ने हम सभी को अपने शिकंजे में जकड़ लिया है. इस शिकंजे में फंसे हुए हम हिम्मत नहीं हार रहे हैं और इसकी काट खोजने में लगे हुए हैं. मामला यहीं पर आकर अटक गया है. पहले अदृश्य दुश्मन था. जिसने वुहान में लोगों को अपना शिकार बनाया.

खोजबीन हुई तो पता चला नया कोरोना वायरस है- नाम है कोविड-19. किसी ने कहा वायरस ही है न ? फ्लू के जैसा (इन्फ्लुएंजा जिसे कहते हैं) आएगा चला जाएगा, पर कोविड-19 के इरादे खतरनाक थे. आज दुनिया हलकान है. दुनिया की स्वास्थ्य व्यवस्था से लेकर अर्थव्यवस्था तक कोहराम मचा चुका है ये वायरस.

अब वैक्सीन खोजी जा रही है कोविड-19 को ठिकाने लगाने के लिए पर इसका रक्षा कवच तगड़ा है. सारी कोशिशें उसकी कवच के कोड को तोड़ने को लेकर हो रही हैं.

कोविड-19 का कवच क्या है ?
कोविड-19 को तो अब तक टीवी-अखबार में आपने कई बार देखा होगा. एक गोलाकार बॉल है और उसके चारों तरफ लगे स्पाइक. ये जो स्पाइक है ये एक खास प्रोटीन की बनी हुई है. जिसे ग्लाइको प्रोटीन कहते हैं. ये स्पाइक ग्लाइकोप्रोटीन ही वायरस को हमारी श्वांस नलिका से जुड़ने (लॉकिंग) का ज़रिया होती हैं.

ठीक वैसे जैसे किसी जहाज का एंकर. जहाज को बांधने के लिए एंकर को फंसा दिया जाता है. लेकिन बात इतनी भर होती तो भी चल जाता, क्योंकि इससे न तो कोविड-19 की संख्या शरीर के भीतर बढ़ती न कोई ‘रेस्पायरेटरी इनफेक्शन’ हमें होता. वैज्ञानिक कोविड-19 के लॉकिंग के लिए जिम्मेदार इसी स्पाइक प्रोटीन को डिकोड करने में लगे हैं.  

प्रोटीन स्पाइक जेनेटिक मैटेरियल की सप्लाई लाइन

स्पाइक प्रोटीन दरअसल एक पाइप जैसे व्यवहार भी करता है. इसी प्रोटीन पाइप से कोविड-19 का RNA हमारे श्वसन तंत्र की कोशिका में वायरस इंजेक्ट कर देता है. नतीजा ये होता है कि भीतर पहुंचते ही ये तेजी से रेप्लीकेट करना शुरू कर देता है और श्वसन तंत्र के पूरे सिस्टम पर कब्जा जमा लेता है.

श्वसन तंत्र की कोशिकाएं असामान्य व्यवहार करने लगती हैं. जिसकी वजह से – बुखार, सिरदर्द, सूखी खांसी, और सांस फूलने की दिक्कतें शुरु हो जाती हैं.

स्पाइक प्रोटीन का ‘लॉकिंग’ कोड
कोविड-19 की वैक्सीन खोजी ही जा रही है. दुनिया भर में करीब 110 वैक्सीन प्रोजेक्ट्स पर काम तेजी से चल रहा है. हर कोई वैक्सीन डेवेलप करने के अलग रास्ते पर काम कर रहा है. उन्हीं रास्तों में से एक है स्पाइक प्रोटीन की डिकोडिंग.

क्या है ‘डिकोडिंग’ के पीछे का सिद्धांत ?
सिद्धांत सिंपल है, न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. वैज्ञानिक इस दिशा में काम कर रहे हैं कि किसी भी तरह से कोविड-19 के स्पाइक प्रोटीन के स्ट्रक्चर को समझ लिया जाए. ये बिल्कुल वैसा ही जैसे किसी ताले के भीतर फिट हो जाने वाली चाबी को खोजना. एक बार ताले के भीतर का स्ट्रक्चर पता चल जाए तो बड़ी आसानी से उसकी चाबी बनाई जा सकती है.

ताला अगर कोविड-19 का स्पाइक प्रोटीन है तो चाबी है एंटीबॉडी. होता ये है कि जब कोविड-19 हमारे श्वसन तंत्र में पहुंचता है तो फेफड़ों या श्वांस नलिका की कोशिकाओं के साथ जुड़ जाता है. इसके जुड़ने मदद करता है स्पाइक प्रोटीन. वैज्ञानिक ये मानते हैं कि अगर स्पाइक प्रोटीन के कोड को तोड़कर उसके खिलाफ एंटीबॉडी को विकसित कर लिया जाए या फिर उसे विकसित करने का संदेश वैक्सीन के ज़रिए एंटीजन (T-सेल) तक पहुंचाया जाए तो इससे फायदा हो सकता है.

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स्पाइक का कोड टूटा तो क्या फायदा होगा?

फायदा ये होगा कि हमारा इम्यून सिस्टम कोविड-19 के हमले के तुरंत बाद उसके स्पाइक प्रोटीन को डिकोड कर के एंटीबॉडी पैदा करेगा. एंटीबॉडी फौरन आगे बढ़कर कोविड-19 की स्पाइक्स को कवर कर लेंगे, जिससे उसका किसी कोशिका से अटैच होना नामुमकिन हो जाएगा.

अब जब अटैचमेंट ही नहीं होगा तो जेनेटिक इन्फारमेशन (यानि गड़बड़ी फैलाने वाला RNA) भी ट्रांसफर नहीं हो सकेगा. नतीजा ये होगा न शरीर के भीतर कोविड-19 की संख्या बढ़ेगी और न ही उसका संक्रमण.

हालांकि जितना सरल ये सिद्धांत दिखता है इसका प्रयोग उतना ही जटिल है, क्योंकि कई स्टडी में स्पाइक प्रोटीन के स्ट्रक्चर में भी बदलाव दर्ज किया गया है. फिर भी एक बार कोविड-19 के कवच या कोड टूटने भर की देर है उम्मीद है कि इसके बाद कोविड-19 चाहे जितने बदलाव कर ले एक मुकम्मिल फॉर्मूला वैज्ञानिकों के हाथ में कोविड-19 को शिकस्त देने का होगा. 

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