पटना: कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है. लेकिन कहते हैं कि आपत्ति से ही अविष्कार का जन्म होता है. कोशी के युवाओं के प्रयोगों ने यह बार-बार साबित किया है.
इस दिन आगाज होगा KSS के दूसरे संस्करण का
कोशी क्षेत्र के सहरसा में पिछले वर्ष की जून में एक सम्मेलन आयोजित किया गया था जिसका नाम था कोशी शिखर सम्मेलन. आने वाले वर्ष यानी 2020 के फरवरी महीने में उसका दूसरा संस्करण फिर से आयोजित किया जा रहा है. 1 और 2 फरवरी को सहरसा के कला भवन में कोशी शिखर सम्मेलन के दूसरे संस्करण का आगाज होने वाला है.
इस कार्यक्रम को युवा सांसद के तर्ज पर गढ़ा गया है जिसमें कोशी क्षेत्र के सभी जिलों समेत बिहार के कुछ अन्य इलाके के छात्र भी संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया को समझते हैं और उनके तकनीकी पक्ष से लेकर सदन की गरिमा को बनाए रखने के गुर सिखाए जाते हैं.
क्या-क्या प्रोग्राम है इस सम्मेलन में ?
सम्मेलन को दो भागों में बांटा गया है जिसमें लोकसभा में "जनसंख्या वृद्धि एवं जल संरक्षण हेतु संभव वैधानिक उपाय" विषय पर चर्चा और कानूनी पक्षों पर बहस-मुबाहिसों होंगी तो वहीं विधानसभा में "बिहार में बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था की समीक्षा एवं इसमें सुधार के आसार" (चमकी बुखार के विशेष संदर्भ में).
मिथिला की संस्कृति की खुशबू मिलती है यहां
इसके अलावा, पर्यावरण संरक्षण, नशा मुक्ति, युवा राजनीति का वर्तमान एवं भविष्य, कोसी क्षेत्र में उद्यमिता एवं रोजगार पर बातचीत होगी. सम्मेलन की खास बात यह है कि इसमें कोशी क्षेत्र के विभिन्न सांस्कृतिक और ऐतिहासिक किस्से और कहानियों पर चर्चा-परिचर्चा का आयोजन किया जाता है. मिथिला की संस्कृति को प्रदर्शित करती यह कॉन्क्लेव इसकी महत्ता को परिभाषित करती है.
इसके लिए कोसी की कहानी का विशेष सत्र आयोजित होगा, जिसमें कोसी की समस्याओं पर लंबे समय से कार्यरत प्रोफेसर दिनेश मिश्र का व्याख्यान होगा. विभिन्न प्रदर्शनी के माध्यम से कोसी एवं मिथिला की संस्कृति और परंपरा को प्रदर्शित किया जाएगा.
युवा जो हर क्षेत्र में करते हैं झंडा बुलंद
कोशी शिखर सम्मेलन का आयोजन पिछले साल प्रयोग की दृष्टि से पहला संस्करण था जो काफी सफल रहा था. इस बार भी इसके लिए आयोजनकर्ता लगे हुए हैं. दिलचस्प बात यह है कि इस सम्मेलन का आयोजन किसी बड़े गैर-सरकारी संगठन या ख्याति प्राप्त संगठनों की ओर से नहीं बल्कि कोसी के कुछ जुझारू युवाओं की ओर से किया जाता है. उन युवाओं का मानना है कि बदलाव की असली इमारत की नींव चर्चा-परिचर्चा से ही शुरू होती है.
सोमू आनंद, राजा रवि, ऋषि राज, मोनू झा, बमबम मिश्रा और कृष्णा भारद्वाज के अलावा कोसी के अन्य कई ऐसे युवाओं के प्रयास की बदौलत ही आज इसकी नींव खड़ी की जा सकी है. इन युवाओं ने बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार के दौरान भी और राजधानी पटना में भारी जलजमाव के वक्त राहत व बचाव कार्य के जरिए यह भी दिखाया कि बदलाव सिर्फ आयोजनों और लिखने वाली बात नहीं होती यह एक करनी जैसी सतत प्रक्रिया का भी नाम है.