बुलबुल के कहर से बचाने वाले मैंग्रोव को अब इंसानों से ही खतरा

पिछली बार बुलबुल से तो बच गए अब जंगल काट रहे हैं तो कौन बचाएगा ? सुंदरबन भारत और बांग्लादेश के विभाजन के बाद एक संरक्षित क्षेत्र बन गया था. जिसका एक तिहाई हिस्सा पर्यटन के लिहाज से खोला गया है. यह यूनेस्को के विश्व धरोहरों की सूची में शामिल है. लेकिन अब इस धरोहर को भी नुकसान पहुंचाया जाने लगा है. मैंग्रोव जंगलों की कटाई इस स्तर पर की जा रही है कि जल्द ही वहां खतरे की घंटी बजने लग सकती है.  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Dec 5, 2019, 07:45 PM IST
    • मछली पालन के लिए हो रही जंगलों की अवैध कटाई
    • राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत का आरोप
    • इंसानियत का सुरक्षा कवच हैं वृक्ष
    • मैंग्रोव के जंगल खुद आ गए हैं खतरे की जद में
    • पहले ही तबाहियों से बचा चुके हैं मैंग्रोव
बुलबुल के कहर से बचाने वाले मैंग्रोव को अब इंसानों से ही खतरा

कोलकता:  कुछ दिनों पहले बुलबुल तूफान का कहर लोगों पर बरसा था लेकिन मैंग्रोव जंगलों की वजह से इस तूफान की जद और खतरे को काफी हद तक टाला लिया गया था. अब सुंदरबन के जंगलों की अवैध तरीके से कटाई की जाने लगी है, वह भी अंधाधुन. सुंदरबन के जंगल अब आपको कुछ दिनों के बाद सघन न दिख कर जर्जर अवस्था में दिखने लगें तो कोई हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए. हैरानी तब भी नहीं होनी चाहिए जब बुलबुल तूफान जैसी कुछ भयानक प्राकृत्तिक त्रासदियां आए और उससे हर तरफ तबाही का मंजर दिखने लगे. क्योंकि इस बार तो मैंग्रोव के जंगलों ने बचा लिया, लेकिन जब अगली बार तक यहीं नहीं बचेंगे तो आपदा से बचाव राम भरोसे ही तो होगी.

मछली पालन के लिए हो रही जंगलों की अवैध कटाई

सुंदरबन पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के बीच एक खूबसूरत जगल है. जिसे धरोहर का दर्जा मिला है और इसे सुरक्षित ही रखा गया है. जानकारी मिली कि पिछले कुछ दिनों से सुंदरबन के जंगलों में खासकर दक्षिण परगना के कुलतली में मैंग्रोव के पेड़-पौधें बिना किसी रोक-टोक काटे जा रहे हैं. न राज्य सरकार ही कुछ कह रही है और न स्थानीय प्रशासन का कोई जोर ही चल पा रहा है.

मछली पालन के लिए मैंग्रोव की कटाई की जा रही है वह भी अवैध तरीके से. ग्रामीणों ने जब इसका विरोध करना शुरू किया तो उन्हें जान से मारने की धमकी दी जाने लगी. मैंग्रोव पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए सरकारी प्रयास निकम्मे साबित हो रहे हैं.
 
राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत का आरोप

ह कहा जा रहा है कि सुंदरबन में पेड़ों की कटाई तृणमूल कांग्रेस के नुमांइदे ही करा रहे हैं. जब सरकार ने कुछ नहीं किया तो ग्रामीणों ने खुद ही मोर्चा संभाला और मैंग्रोवों की कटाई करने वाले लोगों से भिंड़ने चले गए. लेकिन हुआ ठीक ऊल्टा ही. ग्रामीणों को ही धमका कर भेज दिया गया. अब इसके बाद ग्रामीण पहुंचे वन विभाग और फिर कुलतुली थाने में इस मामले के एवज में पहुंचे. जांच का कह कर लोगों को भेज दिया गया. तृणमूल कांग्रेस पर लगाए गए आरोपों को हालांकि पार्टी ने खारिज कर दिया. 

मैंग्रोव की खासियत

मैंग्रोव जंगल समुद्री तटों पर पाए जाने वाले जंगल होते हैं. यह जंगल ज्यादातर तटीय इलाकों में पाए जाते हैं जो समुद्र से आने वाली तेज हवाओं को रोकते भी हैं. मैंग्रोव की एक खासियत यह है कि इनके पेड़-पौधे सघन होते हैं. 


ये जंगल भारी बारिश के समय मिट्टी को मजबूती से बांधे रखने की क्षमता रखते हैं जिसके कारण तेज बारिश के चलते भी मिट्टी के कटाव से नुकसान नहीं होता.

इंसानियत का सुरक्षा कवच हैं वृक्ष

मैंग्रोव के जंगल सुरक्षा कवच का काम करती है. सुंदरबन लगभग 10 किलोमीटर में फैला हुआ है जिसका करीब 40 प्रतिशत हिस्सा भारत में है. सुंदरबन पूरी दुनिया में अपनी जैव विविधता के लिए पहचानी जाती है और इसमें करीब 102 छोटे-बड़े द्वीप हैं. इस डेल्टा में मैंग्रोव जंगल 4,263 वर्गकिलोमीटर में फैला हुआ है. लेकिन पिछले एक शताब्दी में लगभग 40 प्रतिशत मैंग्रोव जंगल साफ किया जा चुका है. 

मैंग्रोव के जंगल खुद आ गए हैं खतरे की जद में

2014 में ISRO की सेटलाइट से एक तस्वीर ली गई थी जिससे पता चला था कि सुंदरबन का मैंग्रोव जंगल करीब 3.7 प्रतिशत खत्म किया जा चुका है. इसमें स्थानीय लोग भी रोजगार व जलावन के लिए अवैध पेड़ों की कटाई कर रहे हैं. स्थानीय सरकार की तरफ से कोई विशेष कदम नहीं उठाया जा रहा है. लेकिन बुलबुल के कहर से बचाने के बाद अब राज्य सरकार की भी नींद खुलती हुई नजह आ रही है.

सरकारी अधिकारियों का बयान आया है कि बुलबुल के कहर से मैग्रोव ने हमें बचा लिया है. पौधारोपण को जंगलों को बचाने के लिए सरकार काम कर रही हैं. साथ ही यह भी कहा कि 10 साल पहले से आयला तूफान के बाद ही सरकार पड़े पैमाने पर पौधारोपण का काम कर रही हैं.

पहले ही तबाहियों से बचा चुके हैं मैंग्रोव

इससे पहले भी आइला तूफान के खतरे से मैंग्रोव के जंगल ने कोलकाता व उसके आसपास के क्षेत्रों को भारी नुकसान से बचाया था. उस समय भी स्थिति काफी गंभीर थी लेकिन मिट्टी की पकड़ मजबूत कर हवा की गति को रोक कर इन जंगलों ने जान माल की क्षति से पूरे कोलकाता का बचाव किया था. बावजूद इसके लोग पेड़-पोधों को कटाव जारी रखा है.

पर्यावरणविदों ने कटते हुए पेड़ों और कम होते जंगल के फीसदी पर चिंता जताई हैं. साथ ही मैंग्रोव जंगल पर पर्यावरणविदों ने कहा कि जलवायु परिवरर्तन की मार झेलने वाले सुंदरबन में मैंग्रोव के पौधे लगाना ही काफी नहीं है. इन पौधों को जंगल में बदलने में वर्षों लग जाते हैं इसलिए इसके साथ इलाके में मैंग्रोव के हजारों साल पुराने घने जंगलों को बचाना भी जरूरी है.

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