वक्त आ गया है, अब भारतीय सेना को चाहिए नया रूप (भाग-4)
समय के साथ स्थितियां और परिस्थितियां बदलती हैं जिस तरह से शत्रु और मित्र बदलते हैं. ऐसी स्थिति में परिवर्तन को स्वीकार करना ही बुद्धिमानी है. जिस समय के परिवर्तन ने अंग्रेजों की गुलामी के बाद कांग्रेस की गुलामी से देश को स्वतंत्र कराया है, उस परिवर्तन ने ही देश को आज एक मजबूत नेतृत्व दिया है और एक पराक्रमी सैन्य शक्ति भी. ऐसे समय में सेना को बेहतर बनाने के लिए कदम नहीं उठाये जाएंगे तो कब उठाये जाएंगे !
नई दिल्ली. किसी भी सेना के लिए सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है उसका आंतरिक शौर्य और पराक्रम. सौभाग्य से भारतीय सेना अपने योद्धा रूप के इन दोनों ही मूल तत्वों की धनी है. किन्तु चीन के साथ सीमा पर जो अनुभव रहे हैं उनको दृष्टि में रख कर सरकार को और सैन्य प्रबंधन को देशहित में भारतीय सेना के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे.
अधिकाधिक महिला शक्ति को जोड़ा जाए
महिला शक्ति पूर्णता है राष्ट्र के लिए भी और समाज के लिए भी. अब सेना को भी पूर्ण करने का समय आ गया है. सेना में महिला सैनिकों की अलग से बटालियंस बनानी होंगी. इनको सेना में हर स्तर पर तैयार किया जाना होगा -शान्ति के समय के लिए भी और युद्ध के समय के लिए भी. इज़राइल का उदाहरण है दुनिया में जहां हर परिवार की एक महिला सेना में है. इस देश में महिला और पुरुष सैनिक साथ साथ काम करते हैं. हम भी ऐसा कर सकते हैं और/अथवा इनकी बटालियंस अलग अलग भी बना सकते हैं.
सीमावर्ती गांवों को दिया जाए विशेष दर्जा
साउथ एशिया के सबसे बड़े देश भारत की सीमा छह देशों से मिलती है. इनमें पाकिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान, म्यांमार और बांग्लादेश शामिल हैं. भूटान और म्यांमार को छोड़ कर भारत को शेष सभी चारों सीमाओं पर सतर्क रहना होगा. इन सीमाओं के पास जितने भी गांव हैं उनको विशेष दर्जा देते हुए इन ग्रामवासियों को भावी युद्ध की स्थिति हेतु पहले से तैयार किया जाए और सेना अपनी आवश्यकतानुसार इनसे युद्ध की स्थिति में और शान्ति की स्थिति में भी यथासंभव सहायता ले और बदले में सरकार इनको यथायोग्य आर्थिक तथा अन्य समर्थन नियमित तौर पर दे.
सेना को दिया जाये एक आकर्षक प्रोफेशन का रूप
सेना को एक आकर्षक प्रोफेशन का रूप दे कर देश से बाहर जाने वाली मेधा को सेना में आमंत्रित करना होगा. भारत की जन-शक्ति में मेधा भी है और शौर्य भी. इन दोनों की ही समग्र उपादेयता पर हमें विचार करना होगा. इस हेतु सेना का वेतनमान भी बेहतर करना ही होगा ताकि भावनात्मक गौरव के साथ ही आर्थिक-सुविधा भी सेना अपने जवानों को दे सके.
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