मुंबई: बेटे का मोह और सत्ता का लालच चाहे जो न करा दे. आज शिवसेना का प्रमुख राजनीतिक महत्वकांक्षा की पूर्ति के लिए मातोश्री छोड़कर बाहर निकल गया. उद्धव ठाकरे एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार से मिलने उनके घर पहुंचे. दोनों नेताओं के बीच महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर चर्चा हुई. लेकिन खास बात यह रही कि यह वही मातोश्री है और यह वही शिवसेना प्रमुख का पद है, जो हमेशा से एक खास रसूख का प्रतीक रहा है. शिवसेना प्रमुख रहते हुए बाल ठाकरे कभी मातोश्री से बाहर किसी से मिलने नहीं गए. यहां तक कि प्रधानमंत्री और बड़ी बड़ी हस्तियां उनसे मिलने के लिए मातोश्री ही पहुंचती थीं. लेकिन उद्धव ठाकरे ने इस दशकों पुराने सियासी हनक के तिलिस्म को तोड़ दिया. वह महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए मातोश्री छोड़कर शरद पवार के घर पहुंच गए.
Mumbai: NCP Chief Sharad Pawar leaves after meeting Shiv Sena Chief Uddhav Thackeray https://t.co/FJ2RXjpUB5 pic.twitter.com/krPDIKZ1Rj
— ANI (@ANI) November 11, 2019
उधर केन्द्र में भी पिछले दो दशकों से एक दूसरे के साथ रही शिवसेना और भाजपा के बीच गठबंधन टूट गया है. केन्द्र में भी शिवसेना के कोटे से बने मंत्री ने इस्तीफा दे दिया है. इस्तीफा देते ही सावंत ने केन्द्र सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि ऐसे झूठों के साथ नहीं रह सकते इसलिए वो इस्तीफा दे रहे हैं.
Shiv Sena MP Arvind Sawant has tendered his resignation as Union Minister for Heavy Industries and Public Enterprises https://t.co/b0Wv4FvHvc pic.twitter.com/fzcaVonqw9
— ANI (@ANI) November 11, 2019
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अरविंद सावंत उसी मांग की तरफ इशारा कर रहे हैं, जिस आधार पर शिवसेना महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद की मांग कर रही थी. सावंत ने भाजपा को 50-50 के फॉर्मूले की याद दिलाने की कोशिश की है.
लेकिन भारतीय जनता पार्टी बहुत पहले ही इस तरह के किसी फॉर्मूले से इनकार कर चुकी है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने बार बार स्पष्ट किया है कि 50-50 के फॉर्मूले पर उन्होंने या भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने शिवसेना को किसी तरह का आश्वासन नहीं दिया है.
उद्धव ठाकरे का मातोश्री छोड़कर शरद पवार के घर जाना और भाजपा से दशकों पुराने संबंध तोड़ लेना यह दिखाता है कि शिवसेना अब बाल ठाकरे के समय जैसी नहीं रही. उसकी नीतियां अब सत्ता के हिसाब से बदलने लगी हैं. नए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अपने पिता बाल ठाकरे के स्थापित सिद्धांतो को काफी पीछे छोड़ चुके हैं. उनके लिए कुर्सी ही प्राथमिकता है.
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