300 हिंदू vs 10 हजार मुगल! पावनखिंड में बही थी खून की नदियां, जानें किसकी हुई थी जीत

battle of pawankhind: भारत में कई युद्ध हुए जहां खून की नदियां बही थीं, पर आज हम आपको ऐसे एतिहासिक जंग के बारे में बताएंगे जिसे पावनखिंड की लड़ाई भी कहा जाता है.

 

battle of pawankhind: पावनखिंड की लड़ाई में बाजी प्रभु देशपांडे और उनके 300 योद्धाओं ने 10 हजार आदिलशाही सैनिकों को रोके रखा और अपने प्राणों का त्याग देकर छत्रपति शिवाजी महाराज को सुरक्षित विशालगढ़ पहुंचने का समय दिया था.

 

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जिस समय क्रूर मुगलिया सल्तनत का परचम लहरा रहा था, उस समय रोकने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगलों को कड़ा टक्कर दिया था, भारतीय इतिहास में कई युद्ध ऐसे हुए हैं जिन्होंने आने वाली पीढ़ियों को साहस और बलिदान का संदेश दिया. इन्हीं में से एक है पावनखिंड की लड़ाई, जो 13 जुलाई 1660 को छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना और आदिलशाही सल्तनत के बीच लड़ी गई थी.  

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सन् 1660 में दक्षिण भारत की राजनीति में अहम बदलाव हो रहे थे. बीजापुर की आदिलशाही सेना ने मराठों को कमजोर करने के लिए विशाल सेना भेजी थी. अफजल खान की मृत्यु के बाद आदिलशाही दरबार शिवाजी महाराज से और अधिक चिढ़ा हुआ था. इसी क्रम में सिद्दी जौहर नामक सेनापति ने विशालगढ़ यानी कोल्हापुर को घेर लिया और, उस समय शिवाजी महाराज और उनके साथी इस किले में फंसे हुए थे.  

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मराठों की स्थिति बेहद नाजुक थी, एक ओर विशालगढ़ की घेराबंदी और दूसरी ओर मराठा सेना की संख्या कम होना. पर ऐसे हालात में शिवाजी महाराज को अपने प्राण बचाते हुए किले से बाहर निकलने की योजना बनानी पड़ी.  

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छत्रपति शिवाजी का जीवन भर साथ देने वालों की बात करें तो सेनापति बाजीप्रभु देशपांडे, जाधवराव बंदाल, यसाजी कंक और तान्हाजी मालुसरे जैसे नाम शामिल है. शिवाजी महाराज ने अपने सबसे भरोसेमंद सेनापति बाजी प्रभु देशपांडे को यह जिम्मेदारी दी कि वह अपने छोटे से दल के साथ दुश्मन की सेना को रोकें, ताकि शिवाजी महाराज सुरक्षित विशालगढ़ पहुंच सकें.   

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इसके लिए पावनखिंड घाटी को चुना गया, जो एक छोटा दर्रा था और युद्ध के लिए अनुकूल जगह मानी जाती थी. बाजी प्रभु और उनके लगभग 300 सैनिकों ने घाटी को बंद कर दिया और लगभग 10 हजार की संख्या में आई आदिलशाही सेना का सामना किया.  

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पावनखिंड की संकरी घाटी में मराठों ने दुश्मनों को एक-एक कर मार गिराया. बाजी प्रभु गंभीर रूप से घायल हो गए, लेकिन उन्होंने तब तक लड़ना जारी रखा जब तक कि विशालगढ़ किले से तोप दागकर यह संकेत नहीं मिला कि शिवाजी महाराज सुरक्षित पहुंच गए हैं. इतिहासकारों के मुताबिक, जब तक तोप की आवाज नहीं आई, बाजी प्रभु ने अपनी अंतिम सांस तक तलवार चलाते हुए दुश्मनों को रोककर रखा. उनके अद्भुत बलिदान की वजह से शिवाजी महाराज सुरक्षित विशालगढ़ पहुंचे थें. Disclaimer यहां दी गई जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. Zee Bharat इसकी पुष्टि नहीं करता है.