भारत का वो विश्वविद्यालय, जो ऑक्सफोर्ड से भी 600 साल पहले दुनिया को ज्ञान दे रहा था

प्राचीन भारत में एक ऐसा विश्वविद्यालय था, जो विश्वभर से आए विद्यार्थियों को ज्ञान देता था. यह जगह उच्च शिक्षा, शोध और दर्शन का केंद्र थी, जो अपने समय में वैश्विक शिक्षा प्रणाली से कहीं गुना आगे थी.

शिक्षा का इतिहास बहुत पुराना है और दुनिया में कई ऐसे संस्थान रहे हैं, जो ज्ञान के केंद्र माने जाते हैं. आमतौर पर लोग ऑक्सफोर्ड या कैम्ब्रिज जैसे विश्वविद्यालयों को सबसे पुराने और प्रभावशाली विश्वविद्यालय मानते हैं. लेकिन भारत में एक ऐसा प्राचीन विश्वविद्यालय है, जो इन सभी से सैकड़ों साल पहले स्थापित हुआ था. यह संस्थान ना केवल भारत, बल्कि दुनिया भर से आए छात्रों के लिए शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र था.

1 /7

प्राचीन भारत में शिक्षा का एक सफलऔर संगठित ढांचा था. गुरुकुलों के साथ-साथ कुछ बड़े शिक्षा के संस्थान भी मौजूद थे, जहां उच्च स्तर की पढ़ाई करवाई जाती थी. इन संस्थानों में विचार-विमर्श, शोध और अध्ययन की परंपरा थी. यह शिक्षा केवल धार्मिक ज्ञान तक सीमित नहीं थी, बल्कि व्यवहारिक और वैज्ञानिक विषयों को भी शामिल करती थी.

2 /7

उस समय जब दुनिया के कई हिस्सों में शिक्षा का कोई विशेष ढांचा नहीं था, भारत का नालंदा विश्वविद्यालय एक ऐसा संस्थान था, जहां व्यवस्थित रूप से उच्च शिक्षा दी जा रही थी. यहां आने वाले छात्र केवल भारत से नहीं, बल्कि कई अन्य देशों से भी होते थे. यह संस्थान उस दौर में एक अंतरराष्ट्रीय शिक्षा केंद्र बन चुका था.

3 /7

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में हुई थी. यह आज के बिहार राज्य में स्थित था. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की स्थापना 11वीं शताब्दी में मानी जाती है, यानी नालंदा उससे लगभग 600 साल पहले शुरू हो चुका था. नालंदा में कई विषयों की पढ़ाई होती थी और यह एक सुव्यवस्थित विश्वविद्यालय था जिसमें हजारों छात्र और शिक्षक एक साथ अध्ययन करते थे.

4 /7

नालंदा में बौद्ध दर्शन, तर्कशास्त्र, गणित, चिकित्सा, व्याकरण, खगोलशास्त्र आदि विषयों की पढ़ाई होती थी. यहां शिक्षा का तरीका संवाद और समझ पर आधारित था. विद्यार्थी केवल पढ़ते नहीं थे, बल्कि सवाल पूछते, तर्क करते और गहराई से विषयों को समझते थे. यह एक खुला और व्यावहारिक शिक्षा तंत्र था.

5 /7

नालंदा में एक बहुत बड़ी पुस्तकालय थी, जिसे 'धर्मगंज' कहा जाता था. इसमें लाखों पांडुलिपियां रखी गई थीं. यहां तीन मुख्य पुस्तकालय भवन थे, रत्नसागर, रत्नरंजक और रत्नोदधी. इन भवनों में विभिन्न विषयों पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध थी, जो विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए बड़ा संसाधन थीं.

6 /7

12वीं शताब्दी के अंत में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नालंदा पर हमला किया. इस दौरान विश्वविद्यालय को जला दिया गया और बड़ी संख्या में पुस्तकें नष्ट हो गईं. यह हमला भारत की शिक्षा और संस्कृति के लिए एक बड़ी क्षति थी. इसके बाद नालंदा जैसी व्यवस्थित शिक्षा प्रणाली कई सदियों तक नहीं बन सकी.

7 /7

भारत सरकार ने 21वीं सदी में नालंदा को फिर से जीवित करने की दिशा में काम शुरू किया. 2014 में इसका नया परिसर बिहार में खोला गया, जहां विभिन्न देशों के छात्र फिर से पढ़ाई कर रहे हैं. यह प्रयास उस प्राचीन विरासत को आगे बढ़ाने का प्रयास है, जो कभी शिक्षा का वैश्विक केंद्र रही थी.