उत्तराखंड की देवभूमि में स्थित माणा गांव न सिर्फ भारत का पहला गांव कहलाता है, बल्कि यह ऐतिहासिक, धार्मिक और प्राकृतिक दृष्टि से भी बेहद खास है. यहां की प्राकृतिक खूबसूरती और संस्कृति हर पर्यटक को अपनी ओर आकर्षित करती है.
माणा गांव न केवल भारत का पहला गांव है, बल्कि यह आध्यात्मिकता, प्रकृति और संस्कृति का अनोखा संगम भी है. पौराणिक कथाओं, भव्य दृश्यों और सीमावर्ती जीवन से भरा यह गांव हर भारतीय को कम से कम एक बार ज़रूर देखना चाहिए.
माणा गांव उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है और यह भारत-तिब्बत सीमा के बेहद करीब है. यह बद्रीनाथ धाम से केवल 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. समुद्र तल से लगभग 3,200 मीटर की ऊंचाई पर बसा माणा, ‘भारत का पहला गांव’ कहलाता है क्योंकि इससे पहले कोई अन्य स्थायी बस्ती भारत में नहीं है.
माणा का धार्मिक महत्व भी अत्यधिक है. यह माना जाता है कि पांडव अपने स्वर्गारोहण के अंतिम चरण में इसी रास्ते से गुजरे थे. यहां भीम पुल नामक एक स्थान है, जहां पौराणिक मान्यता के अनुसार भीम ने एक विशाल शिला रखकर सरस्वती नदी पर पुल बनाया था, ताकि द्रौपदी उसे पार कर सके.
माणा गांव के निवासी भोटिया जनजाति से ताल्लुक रखते हैं, जो तिब्बती मूल की मानी जाती है. यहां की संस्कृति, भाषा और पहनावा तिब्बती प्रभाव से गहराई से जुड़ा है. गर्मियों में लोग खेती और बुनाई का काम करते हैं, वहीं सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण गांव खाली कर दिया जाता है और लोग नीचे के इलाकों में चले जाते हैं.
यह गांव अपने प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण के कारण पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है. हरे-भरे पहाड़, बहती नदी, और बादलों से ढकी चोटियां इसे एक स्वर्ग जैसे अनुभव में बदल देती हैं. यहां से ‘वसुधारा झरना’ तक की ट्रेकिंग भी बेहद लोकप्रिय है.
माणा केवल एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि यह भारत की सीमाओं पर बसी उस चेतना का प्रतीक है जहां लोग कठिन परिस्थितियों में भी देशभक्ति की भावना के साथ जीवन जीते हैं. गांव के प्रवेश द्वार पर लिखा गया है ‘भारत का पहला गांव’, जो हर भारतीय को गर्व का अनुभव कराता है.