क्यों टोपियां बेचता था यह मुगल बादशाह, शाही खजाने के लिए पिता की नहीं बख्शी जान!

इन दिनों देश में औरंगजेब की चर्चा हर जुबान पर है. हाल ही में आई विक्की कौशल और अक्षय खन्ना द्वारा अभिनीत, फिल्म छावा को लेकर चर्चा जोरों पर है. नागपुर में तो औरंगजेब की कब्र को लेकर दंगा भी भड़क गया.

औरंगजेब फिजूलखर्ची से बचता था. यहां तक कि उसने शाही खजाने को बचाने के नाम पर, पिता शाहजहां को उनकी आखिरी सांस तक कैद में रखा. वहीं, औरंगजेब साल 1658 में मुगल सल्तनत की तख्त पर बैठा. औरंगजेब की क्रूरता के किस्से इतिहास में दर्ज हैं. इतनी क्रूरता कि उसने भाई दारा शिकोह की गर्दन तक कटवा दी थी. हालांकि, औरंगजेब का एक दूसरा भी रूप था, जिससे बहुत लोग आज भी अनजान हैं.

 

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इतिहास में कहा जाता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने, अपने जीवन के आखिरी समय में मुगल कोष से एक भी रूपया नहीं लिया था. वह टोपियां बुनता था और उसी को बेचकर कुछ पैसे जमा करता था. आइए ऐसे में जानते हैं कि मुगल बादशाह औरंगजेब टोपियां बेचकर कितने रूपए कमा लेता था?

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इतिहासकारों की मानें तो औरंगजेब शाही खर्चे के इस्तेमाल के खिलाफ था. यही कारण था कि उसने अपने पिता शाहजहां को आखिरी सांस तक आगरा के किले में कैद रखा. औरंगजेब अपना कुछ वक्त नमाज के लिए टोपियां बुनने और हाथ से कुरान लिखने में बिताया करता था.

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औरंगजेब इन्हीं टोपियों को बेच कर अपना निजी खर्च चलाता था. हालांकि, इतिहासकारों का मानना है कि इस्लामी शिक्षा के अनुसार औरंगजेब सादा जीवन जीने की परंपरा का पालन करता था.

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कुछ रिपोर्ट्स की मानें तो औरंगजेब अपनी मामूली सी कब्र बनाने के लिए धन इकट्ठा करता. उस वक्त वे टोपियां 14 रूपए 12 आना में बिकती थीं.  उस दौर में पैसों का लेन-देन सोने की मोहरें, चांदी और तांबे के सिक्के के रूप में होता था.

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औरंगजेब को अपने हाथों से बुनी हुई टोपी को बेचने के लिए 14 चांदी के सिक्के और 12 आने मिलते थे. यही उसकी कमाई का जरिया था. औरंगजेब ने अपनी मौत के बाद पक्की कब्र न बनाने के लिए कहा था. ताकि शाही खजाने की फिजूलखर्ची न हो.