मुगल बेगमों का काम सिर्फ पर्दे के पीछे रहना ही काम नहीं था, बल्कि उनकी दरबार और शासन में भी महत्वपूर्ण भूमिका होती थी.
भारतीय इतिहास में मुगल दरबार और उसमें रानियों व बेगमों के काम को लेकर कई तरह की बातें प्रचलित हैं. लेकिन असलियत इससे कहीं ज्यादा दिलचस्प थी. मुगल हरम सिर्फ एक निजी आवास नहीं था, बल्कि यह एक छोटी सी दुनिया थी, जहां बेगमों का प्रभाव बादशाह के फैसलों और साम्राज्य की नीतियों पर भी पड़ता था. आइए जानते हैं, मुगल काल में बेगमों की क्या भूमिका थी.
मुगल बेगमों का मुख्य काम हरम की पूरी व्यवस्था देखना था. हरम में सैकड़ों से लेकर हजारों महिलाएं होती थीं, जिनमें रानियां, राजकुमारियां, दासियां और उनके बच्चे शामिल होते थे. इन सबकी देखरेख, उनके रोजमर्रा के इंतजाम, भोजन, कपड़े और सुरक्षा का जिम्मा बेगमों पर होता था. यह अपने आप में एक बड़ा प्रशासनिक कार्य था.
कई मुगल बेगमों के पास बड़ी जागीरें और संपत्तियां होती थीं, जिनसे उन्हें अच्छी-खासी आय होती थी. वे इन संपत्तियों को मैनेज करती थीं और अक्सर व्यापारिक गतिविधियों में भी शामिल होती थीं. कुछ बेगमों ने तो बंदरगाहों पर भी अपने अधिकार स्थापित किए थे और अंतरराष्ट्रीय व्यापार से खूब पैसा कमाया था.
मुगल बादशाह अपनी बेगमों पर भरोसा करते थे और उनसे राजनीतिक मामलों पर सलाह भी लेते थे. बेगम अक्सर दरबार के भीतर और बाहर के विवादों को सुलझाने में मध्यस्थ की भूमिका निभाती थीं. वे राजकुमारों और दरबारियों के बीच सुलह कराने में भी सहायक होती थीं.
कई बेगमों को कला, साहित्य और शिक्षा में गहरी रुचि थी. उन्होंने मस्जिदें, मकबरे, बगीचे और शैक्षणिक संस्थान बनवाए. वे कवियों, कलाकारों और विद्वानों को संरक्षण देती थीं. इससे मुगल कला और संस्कृति को बढ़ावा मिलता था.
कुछ बेगमों के पास न्यायिक अधिकार भी होते थे, खासकर हरम के भीतर के मामलों में उन्हीं का फैसला आखिरी होता था. वे गरीबों और जरूरतमंदों की मदद के लिए दान-पुण्य के काम भी करती थीं.
नूरजहां- जहांगीर की पत्नी नूरजहां मुगल इतिहास की सबसे प्रभावशाली बेगमों में से एक थीं. उन्होंने शासन में सक्रिय भूमिका निभाई. उनके नाम के सिक्के भी जारी हुए थे. जहांआरा बेगम- शाहजहां की सबसे बड़ी बेटी जहांआरा एक कुशल प्रशासक और व्यापारी थीं. उन्होंने कई इमारतें बनवाईं और व्यापार में बड़ा मुनाफा कमाया. जेबुन्निसा- औरंगजेब की बेटी जेबुन्निसा एक कवयित्री थीं और उन्हें साहित्य में गहरी रुचि थी. वह विद्वानों को संरक्षण देती थीं.
'डॉटर ऑफ द सन: रीइमैजिनिंग द मुगल हरम' की लेखक इरा मुखोती के मुताबिक, मुगल हरम केवल मनोरंजन या आराम की जगह नहीं था. यह एक जटिल संस्था थी जहां मुगल बेगमों का न केवल व्यक्तिगत जीवन पर बल्कि शाही प्रशासन, राजनीति और संस्कृति पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव था. उनका काम सिर्फ हरम तक सीमित नहीं था, बल्कि वे शाही शक्ति का एक अभिन्न अंग थीं.