1980 के दशक में भारत के एक राज्य में हालात तेजी से बिगड़ने लगी थी. अलगाववादी गतिविधियां, हथियारों का जमावड़ा और धार्मिक स्थलों में छिपे उग्रवादियों के कारण देश की आंतरिक सुरक्षा को गंभीर चुनौती मिलने लगी. ऐसे में सरकार और सेना को मिलकर एक बेहद संवेदनशील कदम उठाना पड़ा.
भारतीय सेना हमेशा से देश की रक्षा के लिए समर्पित रही है. चाहे बात सीमाओं की हो या फिर देश के अंदरूनी हालात की, हमारी सेना ने हर मोर्चे पर खुद को साबित किया है. कई बार ऐसे हालात बनते हैं, जब सैन्य कार्रवाई करना जरूरी हो जाता है, लेकिन फैसला लेना आसान नहीं होता. खासकर तब, जब मामला धर्म, राजनीति और समाज तीनों से जुड़ा हो. 1980 के दशक में भारत ने एक ऐसा ही फैसला लिया था, जिसने इतिहास में अपनी एक अलग छाप छोड़ी.
भारतीय सेना ने समय-समय पर कई महत्वपूर्ण ऑपरेशन किए हैं. 1971 का युद्ध, कारगिल विजय, सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयरस्ट्राइक जैसी कार्रवाइयों ने भारत की ताकत को पूरी दुनिया में दिखाया. इनमें से अधिकतर मिशन सीमाओं पर हुए, लेकिन कुछ ऑपरेशन ऐसे भी रहे, जो देश के अंदर ही चलाए गए. इन ऑपरेशनों में हालात ज्यादा जटिल थे क्योंकि दुश्मन सामने नहीं बल्कि अपने ही बीच छिपा हुआ था.
1980 के दशक की शुरुआत में पंजाब में हालात तेजी से बिगड़ रहे थे. कुछ समूह 'खालिस्तान' नाम का एक अलग देश बनाने की मांग कर रहे थे. यह आंदोलन धीरे-धीरे उग्र रूप लेने लगा. लोगों में डर का माहौल बनने लगा था. आम नागरिकों की सुरक्षा खतरे में थी और प्रशासन की पकड़ कमजोर होती जा रही थी. इन हालात में केंद्र सरकार को स्थिति नियंत्रण में लाने के लिए सख्त कदम उठाने पड़े.
इस आंदोलन का नेतृत्व 'जर्नेल सिंह भिंडरांवाले' कर रहा था. उसने अपने समर्थकों के साथ अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर परिसर में डेरा जमा लिया था. मंदिर के भीतर भारी मात्रा में हथियार जमा किए गए थे. यह स्थान जोकि आस्था का प्रतीक था, अब आतंक और हिंसा की योजना का अड्डा बन चुका था. सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि आस्था को ठेस पहुंचाए बिना हालात पर काबू पाना था.
सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए एक विशेष सैन्य अभियान की योजना बनाई, जिसे 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' नाम दिया गया. इसे आज भी भारत का सबसे संवेदनशील और गंभीर ऑपरेशन माना जाता है. इस मिशन की तैयारी पूरी तरह से गुप्त रखी गई थी. सेना, खुफिया एजेंसियों और सरकार के बीच महीनों तक गंभीर बातचीत चली. मिशन का उद्देश्य था मंदिर परिसर से हथियारबंद उग्रवादियों को बाहर निकालना और राज्य में शांति स्थापित करना.
यह ऑपरेशन 3 जून 1984 को शुरू हुआ था. शुरुआती घेराबंदी के बाद 5 जून की रात सेना ने मुख्य कार्रवाई शुरू की. यह मुठभेड़ करीब तीन दिन चली. पूरे मंदिर परिसर को खंगालना पड़ा. जर्नेल सिंह भिंडरांवाला मारा गया, लेकिन इस ऑपरेशन में कई सैनिकों और आम नागरिकों की जान भी गई. मंदिर को भी नुकसान पहुंचा, जिससे देशभर में नाराजगी और भावनात्मक उबाल देखने को मिला.
ऑपरेशन ब्लू स्टार के कुछ ही महीनों बाद, 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई. यह हत्या उनके ही सिख बॉडीगार्ड ने की थी. इसके बाद देश में भयानक दंगे भड़क उठे, खासकर दिल्ली और उत्तर भारत के कई हिस्सों में. हजारों सिखों को अपनी जान गंवानी पड़ी. यह समय देश के इतिहास में सबसे दुखद और शर्मनाक घटनाओं में से एक माना जाता है.
ऑपरेशन ब्लू स्टार को लेकर आज भी चर्चा होती है. यह सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं थी, बल्कि धर्म, राजनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने की कोशिश थी. सरकार और सेना दोनों ने यह कदम मजबूरी में उठाया, लेकिन इसका सामाजिक और राजनीतिक असर बहुत गहरा था. आज भी यह ऑपरेशन इतिहास के उन पन्नों में दर्ज है, जिन्हें पढ़ना आसान नहीं होता.