भारत में कई ऐसे प्राचीन मंदिर हैं, जो न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र हैं, बल्कि भारतीय इतिहास, संस्कृति और कला की मिसाल भी हैं. ये मंदिर हजारों साल पुराने हैं और आज भी पूरी श्रद्धा के साथ पूजे जाते हैं, जो हमारी परंपराओं की गहराई को दर्शाते हैं.
भारत एक ऐसा देश है जहां हर राज्य, हर शहर और गांव में मंदिरों की अपनी एक खास पहचान है. लेकिन कुछ मंदिर ऐसे भी हैं, जो हजारों साल पुराने हैं और आज भी वैसी ही श्रद्धा के साथ पूजे जा रहे हैं. ये मंदिर न सिर्फ धार्मिक स्थान हैं, बल्कि हमारी सभ्यता, संस्कृति और इतिहास की मजबूत नींव भी हैं. आइए जानते हैं भारत के 5 सबसे पुराने और प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में, जो समय की कसौटी पर आज भी अडिग खड़े हैं.
भारत के इन प्राचीन मंदिरों में लाखों लोग दर्शन के लिए आते हैं. ये मंदिर हमारी आस्था के साथ-साथ भारतीय विरासत की पहचान हैं. इनमें न केवल धार्मिक शांति मिलती है, बल्कि इतिहास और संस्कृति को भी करीब से जानने का मौका मिलता है.
बिहार के कैमूर जिले में स्थित मुंडेश्वरी देवी मंदिर को भारत का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है, जहां आज भी पूजा-पाठ उसी होती है. यह मंदिर देवी दुर्गा और भगवान शिव को समर्पित है. इतिहासकारों के अनुसार, यह मंदिर 108 ईस्वी में बनाया गया था. मंदिर पहाड़ पर स्थित है और इसकी बनावट बहुत ही साधारण लेकिन प्रभावशाली है. यहां सालभर श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.
सोमनाथ मंदिर गुजरात के वेरावल शहर में स्थित है और यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला है. माना जाता है कि यह मंदिर चंद्र देव ने बनवाया था और इसकी पहली संरचना 1000 ईसा पूर्व के आसपास की मानी जाती है. यह मंदिर कई बार नष्ट किया गया लेकिन हर बार इसे फिर से बनाया गया. आज जो मंदिर खड़ा है, वह 1951 में दोबारा बनाया गया था और यह आस्था के साथ-साथ भारत के संघर्ष और पुनर्निर्माण की कहानी भी कहता है.
ओडिशा के पुरी जिले में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर 13वीं शताब्दी में राजा नरसिंह देव प्रथम द्वारा बनवाया गया था. यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है और इसकी संरचना एक विशाल रथ की तरह है, जिसमें पत्थर के 24 पहिए और 7 घोड़े हैं. मंदिर की वास्तुकला बहुत सुंदर और कलात्मक है. हालांकि, अब यहां पूजा नहीं होती, लेकिन यह एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में पूरी दुनिया में मशहूर है.
पुरी का जगन्नाथ मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है. यह मंदिर 12वीं शताब्दी में राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा बनवाया गया था. यह मंदिर अपनी विशाल रथ यात्रा के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें हर साल लाखों लोग भाग लेते हैं. यहां की रसोई को दुनिया की सबसे बड़ी मंदिर रसोई माना जाता है. यह मंदिर ओडिशा की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है.
तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित बृहदेश्वर मंदिर 11वीं शताब्दी में राजा राजराज चोल प्रथम ने बनवाया था. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे दक्षिण भारत के सबसे भव्य मंदिरों में गिना जाता है. इसकी विशाल शिखर और दीवारों पर बनी कलाकृतियां आज भी चोल काल की कला और आर्किटेक्चर को दर्शाती हैं. यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में भी शामिल है.
इन मंदिरों को देखने पर साफ पता चलता है कि भारत का इतिहास सिर्फ किताबों में नहीं, बल्कि इन पत्थरों में भी दर्ज है. हर मंदिर की अपनी एक कहानी है, जो उस समय की सोच, कला और परंपराओं को दर्शाती है. ये मंदिर न सिर्फ धार्मिक स्थल हैं, बल्कि एक तरह से हमारे पूर्वजों की सोच और जीवनशैली के जीवित उदाहरण भी हैं.