19वीं और 20वीं सदी में लंदन के गरीब लोग ताबूत जैसे बिस्तरों पर सोने के लिए पैसे देने को मजबूर थे. जिनके पास पैसे नहीं थे, वे रस्सी के सहारे झपकी लेते थे. वहीं हांगकांग में आज भी लोग कॉफिन होम्स में रहते हैं.
आजकल लोग आरामदायक बिस्तर और गद्दों पर सोते हैं, लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि कभी ऐसा समय भी था जब लोगों को ताबूत जैसे बिस्तर पर सोने के लिए पैसे देने पड़ते थे? 19वीं और 20वीं सदी में, लंदन में गरीब लोग सोने के लिए ऐसे ही जगहों पर सोने को मजबूर थे.
19वीं और 20वीं सदी में लंदन की गलियों में हजारों गरीब लोग रहते थे. उनके पास रहने और सोने के लिए कोई जगह नहीं थी. कम पैसे होने के कारण, वे सस्ते ठिकानों की तलाश में रहते थे. यही वजह थी कि कई गरीब लोग ऐसी जगह पर सोते थे, जहां उन्हें ताबूत जैसा बिस्तर मिलता था.
इन बिस्तरों को कॉफिन बेड कहा जाता था. यह लकड़ी के बने छोटे बक्से होते थे, जो ताबूत जैसे दिखते थे. इनकी लंबाई इतनी थी कि एक इंसान इसमें लेट सकता था, लेकिन ज्यादा हिल-डुल नहीं सकता था. यह देखने में डरावने लगते थे, लेकिन गरीबों के पास कोई और विकल्प नहीं था.
इन ताबूत जैसे बिस्तरों पर सोने के लिए भी लोगों को पैसे देने पड़ते थे. उस समय, लंदन में बहुत से लोग बेघर थे और उन्हें रात गुजारने के लिए किसी भी कीमत पर कोई जगह चाहिए होती थी. इसी वजह से वे इन बिस्तरों के लिए पैसे खर्च करने पर मजबूर हो जाते थे.
इतना ही नहीं, जो लोग ताबूत जैसे बिस्तर के लिए भी पैसे नहीं दे सकते थे, उन्हें रस्सी के सहारे सोना पड़ता था. इसमें लोग एक कमरे में खड़ी रस्सी के सहारे बैठे रहते थे और झपकी लेने की कोशिश करते थे. सुबह होते ही वह रस्सी खोल दी जाती थी और लोग नीचे गिर जाते थे.
लंदन में लोग 19वीं और 20वीं सदी में ताबूत में सोते थे, लेकिन हांगकांग में आज भी महंगाई और जगह की कमी होने के कारण लोगों को ताबूत में रहना पड़ता है, जिसे कॉफिन होम्स भी कहा जाता है.