भारत की ट्रेनों में कब शुरू हुई शौचालय की सुविधा? हाथों में पैंट लिए भागते एक यात्री की चिट्ठी ने बदली तस्वीर

भारतीय रेलवे देश की जीवनरेखा है, जो करोड़ों लोगों को रोजाना उनकी मंजिल तक पहुंचाती है. इस यात्रा के दौरान कई ऐसी सुविधाएं हैं, जिन्हें हम आज सामान्य मानते हैं, लेकिन उनका भी अपना एक दिलचस्प इतिहास रहा है.

ट्रेन में शौचालय की सुविधा भी उन्हीं में से एक है. क्या आपने कभी सोचा है कि चलती ट्रेन में यह सुविधा कब और कैसे शुरू हुई? इसके पीछे एक यात्री की अनोखी चिट्ठी और एक लंबी जद्दोजहद की कहानी छुपी है.

1 /8

आज ट्रेनों में शौचालय एक बुनियादी सुविधा है, लेकिन ब्रिटिश भारत में ऐसा नहीं था. शुरुआत में भारतीय ट्रेनों में सभी डिब्बों में शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं थी. खासतौर पर निचले दर्जे यानी थर्ड क्लास के डिब्बों में, जहां अधिकांश भारतीय यात्री सफर करते थे, वहां शौचालय नहीं होते थे.

2 /8

उस समय के रेलवे अधिकारियों का मानना था कि भारतीय यात्री कम दूरी की यात्रा करते हैं, और उन्हें शौचालय की आवश्यकता नहीं होगी. यह सोच उस समय के सामाजिक और औपनिवेशिक मानसिकता के बारे में बताते हैं, जो भारतीयों की जरूरतों को कम आंकता थे.

3 /8

ट्रेनों में शौचालय की सुविधा के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साल 1909 में आया. इस साल ओखिल चंद्र सेन नामक एक यात्री ने रेलवे अधिकारियों को एक मार्मिक और हास्यास्पद चिट्ठी लिखी, जिसने सबका ध्यान खींचा.

4 /8

सेन ने अपनी चिट्ठी में बताया कि कैसे साहिबगंज स्टेशन पर ट्रेन रुकने पर वे शौच के लिए नीचे उतरे थे. अचानक गार्ड ने सीटी बजाई और ट्रेन चल पड़ी, जिससे उन्हें बिना कपड़ों के ही दौड़कर ट्रेन में चढ़ना पड़ा. इस घटना ने उन्हें बेहद शर्मिंदा किया, और उन्होंने अपनी पीड़ा को शब्दों में बयां किया.

5 /8

ओखिल चंद्र सेन की यह चिट्ठी इतनी प्रभावशाली थी कि इसे कलकत्ता के रेलवे बोर्ड तक भेजा गया. चिट्ठी में उनकी दलील और अनुभव ने अधिकारियों को इस समस्या की गंभीरता पर विचार करने पर मजबूर किया, जिसे वे पहले नजरअंदाज करते थे.

6 /8

इस चिट्ठी और यात्रियों की बढ़ती मांगों के परिणामस्वरूप, रेलवे बोर्ड ने साल 1909 में एक ऐतिहासिक आदेश जारी किया. इस आदेश में कहा गया कि लंबी दूरी की सभी पैसेंजर ट्रेनों के निचले दर्जे के डिब्बों में भी शौचालय लगाए जाएंगे, जो एक बड़ा सुधार था.

7 /8

शुरुआत में, यह प्रक्रिया धीमी थी और सभी ट्रेनों तक पहुंचने में समय लगा. पहले ये साधारण 'ड्रॉप-च्यूट' शौचालय होते थे, जहां मल सीधे पटरियों पर गिरता था. आज हम अत्याधुनिक बायो-टॉयलेट और अन्य सुविधाओं वाली ट्रेनों में यात्रा करते हैं, जो उस शुरुआती दौर से बहुत आगे निकल आई हैं.

8 /8

इस प्रकार ओखिल चंद्र सेन की एक साधारण लेकिन निराली सी चिट्ठी ने भारतीय रेलवे के इतिहास में एक बड़े बदलाव की नींव रखी. यह एक ऐसा कदम था, जिसने करोड़ों यात्रियों की सुविधा और गरिमा को सुनिश्चित किया, और भारत की ट्रेनों में शौचालय की सुविधा का पूरा इतिहास इसी घटना से जुड़ा है.