भारत में एक ऐसी खोज हुई, जिसके बिना दुनिया की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी. आज जिस डिजिटल युग का दंभ पूरी दुनिया भरती है. उसके पीछे भारत की ये सबसे बड़ी खोज है.
भारत ने दुनिया को ऐसी कई चीजें दी हैं. जिससे न केवल दुनिया की तस्वीर बदली, बल्कि कई विषयों पर महारत हासिल की गई. नवपाषाण काल में कृषि भारत की ही देन है. इतना ही नहीं, वास्तुकला और चित्रकला जैसी शैलियों से दुनिया को रूबरू कराया. हालांकि एक ऐसी चीज की भी खोज कि जिसके बिना दुनिया का कोई आस्तित्व ही नहीं होता.
दुनिया में जिस गणितीय प्रतीक ने सबसे क्रांतिकारी बदलाव किया, वह है ‘शून्य’ (Zero). यह कोई साधारण संख्या नहीं बल्कि एक अवधारणा है, जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई. लगभग 5वीं शताब्दी में प्राचीन भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट और बाद में ब्रह्मगुप्त ने शून्य को न केवल एक संख्या के रूप में परिभाषित किया, बल्कि इसे गणना की एक अनिवार्य इकाई भी बनाया.
628 ईस्वी में ब्रह्मगुप्त ने अपनी पुस्तक ब्रह्मस्फुट सिद्धांत में शून्य को स्पष्ट रूप से एक संख्या के रूप में परिभाषित किया और उसके साथ जोड़, घटाव और अन्य गणनाओं के नियम बताए. यह पहली बार था जब किसी गणितज्ञ ने शून्य के साथ बीजगणितीय क्रियाओं को व्यवस्थित किया. यह कार्य वैश्विक गणित की दिशा बदलने वाला था.
शून्य ने न केवल गणितीय दुनिया को नई दिशा दी, बल्कि विज्ञान, खगोलशास्त्र, इंजीनियरिंग और कंप्यूटर विज्ञान जैसे क्षेत्रों में भी क्रांति ला दी. दशमलव प्रणाली (Decimal System) जिसमें संख्याएं 0 से 9 के बीच होती हैं, बिना शून्य के असंभव होती. इसी प्रणाली के कारण बड़े संख्याओं की गणना और रिकॉर्डिंग संभव हो सकी.
अगर शून्य की खोज न हुई होती, तो आज की डिजिटल दुनिया की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. कंप्यूटर की भाषा बाइनरी कोड (0 और 1) पर आधारित है. अंतरिक्ष मिशन, इंटरनेट, बैंकिंग, टाइम मैनेजमेंट, ये सब शून्य के बिना अधूरे होते. यहां तक कि समय का गणना भी शून्य के बिना अकल्पनीय है.
हालांकि शून्य की अवधारणा बाद में अरब देशों और फिर यूरोप तक पहुंची, लेकिन इसकी मूल जड़ें भारत में हैं. अरब विद्वानों ने भारतीय ग्रंथों से शून्य की जानकारी लेकर इसे पश्चिमी दुनिया तक पहुंचाया. इसी कारण इसे ‘हिंदू-अरबी नंबर सिस्टम’ भी कहा जाता है, जो आज पूरी दुनिया में प्रचलित है.
शून्य भारत की बौद्धिक और वैज्ञानिक सोच का प्रतीक है. यह एक ऐसा योगदान है जिसने न केवल भारत को बल्कि पूरी मानवता को एक नई दिशा दी. भारत को गर्व होना चाहिए कि उसने ऐसा विचार दिया जो आज हर वैज्ञानिक उपकरण, हर डिजिटल डिवाइस और हर गणना के केंद्र में है.