इटली के इतिहास में माजिनी की जगह काफी अहम है. इटली को राष्ट्रीय-एकीकरण का आदर्श देने वाले Giuseppe Mazzini ही थे. वीर सावरकर उनके विचारों से बेहद प्रभावित थे.
विनायक दामोदर सावरकर शुरू से हिंदुत्व के झंडाबरदार नहीं थे बल्कि एक सोची समझी रणनीति के तहत उन्होंने हिंदू धर्म और हिंदू आस्था को राष्ट्रीयता का चोला ओढ़ाकर राजनीतिक हिंदुत्व की अवधारणा रखी.
वीर सावरकर ने हिंदुत्व को इस तरह से परिभाषित किया था कि वह सभी के लिए स्वीकार करने लायक बन सके. गांधी के करीबी होते हुए भी नेहरू इस तरह के विचारों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते हैं. संविधान बनने के साथ और कई अलग-अलग योजनाओं के लागू होने में सावरकर के यही चिंतन दिखाई देते हैं. वीर सावरकर की पुण्य तिथि पर पढ़िए पहले पीएम नेहरू पर सावरकर का कैसा था प्रभाव-
Veer Savarkar Punyatithi: लंदन में एक शाम जब गांधी, सावरकर से मिलने उनके पास गए तो दोनों के बीच अहिंसा, सत्याग्रह और भारतीयों की स्थिति को लेकर कई तर्क-वितर्क हुए. महात्मा गांधी की पुस्तक 'स्वराज हिंद' लिखे जाने की भूमिका तभी तैयार हुई थी. वीर सावरकर की पुण्य तिथि पर पढ़िए इसी खास मुलाकात का ब्यौरा.
इस बात की आशंका जाहिर की जाती हैं कि बीरबल नाम का इस्तेमाल अकबर की धर्मनिरपेक्षता को साबित करने और उसे 'महान' बनाने के लिए किया गया था. अकबर ने दीन-ए-इलाही नाम का एक धर्म चलाया था. इसे मानने वालों में बीरबल भी बताए जाते हैं.
साल 1923 में नाभा रियासत में गैर कानूनी ढंग से प्रवेश करने पर औपनिवेशिक शासन ने जवाहरलाल नेहरू को 2 साल की सजा सुनाई गई थी. तब नेहरू ने भी कभी भी नाभा रियासत में प्रवेश न करने का माफीनामा देकर दो हफ्ते में ही अपनी सजा माफ करवा ली थी.
लेफ्ट लिबरल गैंग को बेशक ये बात समझ में न आई हो कि सावरकर ब्रितानी हुकूमत के लिए कितनी बड़ी चुनौती थे लेकिन फिरंगी उसी समय समझ गए थे कि जिस शख्स का नाम विनायक दामोदर सावरकर है वो अकेले अपने दम पर ही ब्रितानी हुकूमत की चूलें हिलाने का माद्दा रखता है. सावरकर की पुण्य तिथि 26 फरवरी से पहले पढ़िए वीर क्यों हैं सावरकर.
जिन सावरकर को अंग्रेजों ने अपनी हुकूतम के लिए इतना खतरनाक माना था कि डबल कालापानी की सजा दी थी वो लेफ्ट लिबरल गैंग की नजर में कायर थे और जो लोग औपनिवेशिक काल में फ्रेंडली जेल जाते थे उन्हें इस गैंग ने परमवीर स्वतंत्रता सेनानी घोषित कर दिया. 26 फरवरी को वीर सावरकर की पुण्यतिथि है. उन्हें याद करते हुए जानिए कि आखिर किस साजिश का शिकार हुए वीर सावरकर-
कविता के छंद से स्वतंत्र निराला, अपने जीवन में भी स्वतंत्र ही थे. हालात ऐसे रहे कि परिवार के बंधनों से उन्हें दैवीय आपदाओं ने मुक्त कर दिया और फिर कष्ट इतने सहे कि सामाजिक बंधनों से खुद ही स्वतंत्र हो गए. पत्नी की मृत्यु हुई, पुत्री सरोज भी चल बसी, पिता-चाचा, भाभी, भतीजे एक-एक करके कई अर्थियां निराला के ही कांधों पर होकर निकलीं.
बसंत पंचमी के दिन लाहौर में हुआ वीर हकीकत राय का बलिदान पहला बलिदान माना जाता है जो धर्म परिवर्तन के खिलाफ हुआ था. 14 साल के इस बच्चे ने निर्भीकता और निडरता की ऐसी मिसाल पेश कर दी थी कि हर भारतीय मां अपने बच्चे से कहने लगी कि बनना हो तो हकीकत जैसा वीर बन.
हिन्दुस्तान के गौरवशाली इतिहास को औपनिवेशिक काल में अंग्रेज इतिहासकारों ने और आजादी के बाद वामपंथी इतिहासकारों ने एक मुहिम के तहत बदनाम किया. प्राचीन काल के विश्वगुरु रहे भारत को आत्महीनता के भाव से भर देने में आत्ममुग्ध अंग्रेजों और उनके वामपंथी पिट्ठुओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी.
4 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा में घटना हो जाने के बाद सबसे पहली प्रतिक्रिया महात्मा गांधी की ओर से हुई. उन्होंने अपना असहयोग आंदोवन वापस ले लिया और कहा, अब असहयोग का रास्ता भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कारने के योग्य नहीं रहा. महात्मा गांधी के इस फैसले को लेकर क्रांतिकारियों का एक दल नाराज हो गया था.
गणतंत्र दिवस का सबसे पहला साल भव्य परेड के लिए नहीं बल्कि भव्य परेड न होने के लिए याद रखा जाता है. यह इसलिए भी अहम है क्योंकि 1950 की उस 26 जनवरी को आज की तरह राजपथ पर परेड नहीं हुई थी.
जापान और जर्मनी का सरेंडर नेताजी की दिल्ली चलो की मुहिम पर सबसे बड़ा आघात साबित हुआ. जनरल टोजो ने सरेंडर कर दिया. हिटलर ने आत्महत्या कर ली, लेकिन भारत का महामानव सुभाष न तो झुकने वाला था और न ही टूटने वाला.
पीएम रहे नेहरू के स्टेनोग्राफर श्यामलाल जैन ने खोसला आयोग के सामने गवाही दी थी कि 1945 में नेहरू ने उनसे ब्रिटेन के तत्कालीन पीएम क्लेमेंट एटली के नाम एक पत्र टाइप करवाया जिसमें लिखा था आपका वॉर क्रिमिनल रूस के कब्जे में है.
सारी चुनौतियों, सारी बाधाओं को हराकर कर 11 मई 1943 को ये महामानव जापान की राजधानी टोक्यो पहुंच गया. न किसी देश का राष्ट्राध्यक्ष, न किसी सेना का कमांडर, न किसी देश का राजदूत, लेकिन जापान पहुंचकर सुभाष ने साफ कह दिया कि वो सीधा प्रधानमंत्री जनरल टोजो से मिलेंगे.
जर्मनी में नेताजी ने उस हिटलर से सीधे मुलाकात की जिससे अंग्रेजों की रूह कांपती थी. हिटलर से नेताजी का मिलना फिरंगियों के लिए नाकाबिले बर्दाश्त हो गया. जर्मनी में सुभाष चंद्र बोस तकरीबन 2 साल रहे.
अपने एक भाषण में उन्होंने जीत और हार का अर्थ समझाया और राष्ट्रवाद की भी बात की है. उनके वाक्य को आज भी समझना चाहिए. उन्होंने कहा 'राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्श सत्य, शिव और सुन्दर से प्रेरित है