नई दिल्लीः साल था 1469, विक्रमी संवत में देखें तो 1527 विक्रमी. रावी नदी का यह किनारा तलबंडी नाम का गांव कहलाता था. यह वह समय था कि एक तरफ तो विदेशी ताकतें हिंदुस्तानी जमीन पर अपना झंडा बुलंद कर रही थीं और दूसरी तरफ आवाम जो थी वह बेचारी बनकर कभी इस शासक के हाथों कठपुतली बन रही थी तो कभी उस. कुल मिलाकर जीवन की डोर अनिश्चित ही थी.
तिस पर हर वक्त बनी रहने वाली युद्धों की मार का असर ऐसा कि फरेब, झूठ, चोरी-चकारी और अमानत में खयानत करना न सिर्फ लोगों की जरूरत बन रही थी, बल्कि आदत में शुमार हो रही थी.
कार्तिक पूर्णिमा को हुआ जन्म
इसी बिगड़े माहौल में, दीवाली के ठीक पंद्रह दिन बाद जब आकाश बिल्कुल साफ था और धवल चंद्र की उजास किरणें रावी की लहरों से हिल-मिल रही थीं, तलबंडी गांव एक अलौकिक प्रकाश से प्रकाशित हो गया. इसकी वजह थी कि खत्री खानदान में कालू चंद्र खत्री के घर उनकी पत्नी तृप्ता माता ने एक दिव्य संतान को जन्म दिया और परम शांति का अनुभव किया.
कहते हैं कि नाना के घर जन्म लेने के कारण सहज ही उनका नाम नानक हो गया और आगे जब तृप्ता माता ने पुत्री को जन्म दिया तो भाई के नाम का अनुसरण करते हुए नानकी नाम उन्हें प्राप्त हुआ. तलबंडी गांव का नाम आज ननकाना साहिब है और विभाजन के बाद पाकिस्तान में है.
सच्चे ज्ञान की खोज की प्यास जगी
दिन बीते पर नानक के भाव न बीते, जिस तीन-चार बरस की उम्र में बालक वाचाल होते हैं, नानक देव इससे परे रहते थे. परिवार और गांव-समाज इस अनोखे स्वभाव को देख कभी परेशान होता तो कभी आश्चर्य करता. दिन-रात बदलते जाते और एक दिन विद्या आरंभ करने की बेला आई. नानक देव गुरु के पास भेजे गए. वहां उन्होंने अपने गुरु जी से गणित विषय में शून्य का रहस्य पूछा, आकाश का अर्थ पूछा, वायु का कारण पूछा लेकिन किसी उत्तर से संतुष्ट न हुए.
भाषा की कक्षा में शब्द का तात्पर्य पूछा, प्रथम शब्द की उत्पत्ति का आधार पूछा लेकिन किसी उत्तर से संतुष्ट न हुए तो नानक देव ने कहा कि यह सच्चा ज्ञान नहीं है, सच्चा ज्ञान कहां मिलेगा? यह सुनना था कि गुरुदेव अपनी जगह से उठे और ससम्मान नानक देव को घर छोड़ आए. कहते हैं कि इसके बाद पाठशाला के वह गुरुजी भी सच्चे ज्ञान की खोज में निकल गए.
उनके उपदेशों की बढ़ने लगी ख्याति
सांसारिक विषयों का चिंतन न होने के बाद भी नानक परिवार व्यवस्था में बंधे. 16 वर्ष की उम्र में विवाह हुआ. देवी सुलक्खनी ने दो पुत्रों श्रीचंद और लखमीदास को जन्म दिया. इसके बाद वह यात्राओं पर निकल गए. अब तक गांव और आस-पास के लोग उनके साथ लोक व्यवहार में हुए चमत्कारों से परिचित हो चुके थे और धीरे-धीरे उनका अनुसरण करने लगे.
नानक देव की सहज ही कही बातों का असर ऐसा होता कि लोग बुराई का मार्ग छोड़ देते. सच को जानने की कोशिश करते और धीरे-धीरे सामाजिक कुरीतियों में सुधार आने लगा. उनसे प्रभावित होने वालों में हिंदू और मुसलमान दोनों ही मतों को मानने वाले आम लोग थे.
कबीर दास जी को बताते हैं गुरु
यहां पर गुरु नानक देव की स्थिति ठीक कबीर दास की तरह देखी जा सकती है. यह भी मान्यता है कि कबीर दास जी नानक देव के गुरु थे. हालांकि कई विद्वान इसे बहुत सटीक नहीं मानते हैं. पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब में उल्लिखित है कि कबीर जी गुरु नानक देव जी के गुरु थे.
इसका आधार एक वाणी को कहा जाता है. नानक जी अपनी वाणी में कहते हैं
यक अर्ज गुफतम पेश तो दर गोश कुन करतार,
हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदिगार.
सामाजिक व्यवस्था को नानकदेव ने सुधारा
भ्रमण करते हुए नानक देव ने सबसे अधिक सामाजिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने पर जोर दिया. उन्होंने कर्मकांड में उलझे समाज, बेगारी और दास प्रथा जैसी कुरीतियां दूर करने और ऊंच-नीच का भेद मिटाने की कोशिश पर जोर दिया. किसी गांव में पूजा स्थल पर सोते हुए उनके पैर देव प्रतिमा की ओर हो गए. पुजारी ने विरोध किया तो नानक देव बोले, मेरे पैर उधर कर दे, जिधर तेरा काबा न हो. किसी मजदूर और किसी सेठ ने उनके लिए भोजन परोसा.
नानक देव मजदूर की रोटियां खाने लगे. सेठ ने कहा कि आप इस तुच्छ की रोटियां कैसे खा सकते हैं. इस पर नानक देव ने दोनों की रोटियां अपने हाथ से निचोड़ दीं. सेठ की रोटी से खून और मजदूर की रोटी से दूध टपकने लगा. नानक देव ने यह समझाया कि असली धन मेहनत करके ही कमाया जाता है, किसी का हक मारकर नहीं. ऐसे कई प्रेरक प्रसंग आज भी प्रचलित हैं.
सिख पंथ की स्थापना की
सबसे महत्वपुर्ण है, गुरु नानक देव जी के द्वारा सिख पंथ की स्थापना. सिख का तात्पर्य है सीख या शिक्षा. साथ ही पंजाबी में सिख शब्द शिष्य के लिए भी प्रयोग होता है. गुरु नानक देव ने इस पंथ को स्थापित करते हुए जीवन के सार को फिर से लोगों के व्यवहार में लाने का काम किया. सिख ईश्वर के वे शिष्य हैं जो दस सिख गुरुओं के लेखन और शिक्षाओं का पालन करते हैं.
क्या सिख एक अलग धर्म है?
आज समाज जिस तरीके से धार्मिक आधार पर बंट रहा है, इस बीच में ऐसा एक प्रश्न और खड़ा करना भारत की सामाजिक शक्ति को कम करना ही है. यह धार्मिक षड्यंत्र कहा जा सकता है. सिख पंथ, भारत के चार अलग-अलग धर्मों में से एक है, लेकिन इसे अलग न मानते हुए पंथ की एक शाखा मानना चाहिए.
उस पंथ की एक शाखा जो वैदिक ज्ञान के साथ-साथ गीता के सार में जीवन का ध्येय खोजती है. बौद्ध और जैन मत के साथ भी ऐसा ही अलगाव स्थापित करने की कोशिश की गई है. जबकि भगवान कृष्ण, महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, ऋषभदेव प्रभु सभी ने जीवन जीने का एक ही प्रकार का मार्ग बताया है. महामुनि व्यास ने अठारह पुराण रचे, लेकिन उन्होंने भी जीवन के दो ही सत्य बताए हैं. वह लिखते हैं,
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयं,
परोपकाराय पुण्यायः, पापायः परपीडनम्.
यानी कि अठारह पुराणों में व्यास जी ने दो ही वचन कहे हैं, परोपकार करना ही पुण्य है और प्राणिमात्र को जरा सी भी पीड़ा देना पाप है.
गुरु नानक देव ने भी यही कहा है कि जीवन और मृत्यु यही दो जीवन के सत्य हैं. इसमें अगर मनुष्यता की सेवा नहीं कि तो कुछ नहीं किया और अगर किसी को जरा भी कष्ट दिया तो जन्म बरबाद कर लिया. समय-समय पर सूर, तुलसी, कबीर-रहीम जैसे संत कवियों की वाणी यह सिखाती रही है.
संत परंपरा के अग्रणी कवि भी हैं नानक देव
संत कवियों का नाम आया तो यह भी बताना जरूरी है कि हिंदी साहित्य में गुरुनानक देव भक्तिकाल के अतंर्गत आते हैं. वे भक्तिकाल में निर्गुण धारा की ज्ञानाश्रयी शाखा से संबंध रखते हैं.
उनकी कृति के संबंध में आचार्य रामचंद्र शुक्ल 'हिंदी साहित्य का इतिहास' में लिखते हैं कि- "भक्तिभाव से पूर्ण होकर वे जो भजन गाया करते थे उनका संग्रह (संवत् 1669) ग्रंथ साहब में किया गया है.
उनके भावुक और कोमल हृदय ने प्रकृति से एकात्म होकर जो अभिव्यक्ति की है, वह निराली है. उनकी भाषा "बहता नीर" थी जिसमें फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी के शब्द समा गए थे.
पवित्र स्थल करतारपुर
जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने करतारपुर नामक एक नगर बसाया. यह भी अब अब पाकिस्तान में है. यहां उन्होंने एक बड़ी धर्मशाला भी बनवाई. इसी स्थान पर आश्वन कृष्ण 10, संवत् 1527 (22 सितंबर 1539 ईस्वी) को परमात्मा में नानक देव की ज्योति विलीन हो गई.
करतारपुर स्थित गुरुद्वारा इसी स्मृति चिह्न को संजोये पवित्र स्थलों में एक है. उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए.
नानक देव का जीवन दर्शन सरल और सहज है. बस कठिन इतना ही है कि मनुष्य को इस दर्शन पर आगे बढ़ना है. आज का आदमी यही नहीं कर पाता है. जो सौभाग्यपुरुष यह कर लेता है, उसके लिए फिर तो नानक नाम जहाज है, चढ़ै सो उतरे पार.
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