नई दिल्लीः विनायक दामोदर सावरकर. यह नाम भारत के उस क्रांतिकारी का है भारत में जिसकी बात दाएं और बाएं दोनो ही धड़ों में धड़ल्ले से की जाती है. दोनों ही सिरे उनके उपनाम को उठाते हैं. दाहिनी ओर खड़े लोग इसमें आगे वीर जोड़ देते हैं और बाईं ओर के लोग इस वीर के आगे सवालिया निशान लगा देते हैं. आजादी के बाद से अब तक समय गुजरते हुए तीसरी पीढ़ी तक पहुंचा है. विंडबना है कि इन तीन पीढ़ियों में ये Question Mark ज्यों का त्यों है.
सावरकर पर सवालिया निशान क्यों?
सावरकर के बारे में वामपंथी धड़े ने कालापानी की सजा से 'माफीनामा' प्रकरण को कुछ अधिक ही प्रचारित किया. बिना यह बताए कि आखिर क्या वजह रही होंगी कि सावरकर को ब्रिटानी हुकूमत ने ऐसी सजा दी थी.
जबकि इसी काला पानी के कई अन्य कैदी या तो शहीद घोषित हुए या फिर क्रांतिकारी, लेकिन सावरकर जब यहां से निकले तो सवालिया निशान लेकर.यह निशान इतना बड़ा हो जाता है कि महात्मा कहलाने वाले गांधी की भी बात इसके आगे बौनी साबित होती है.
गांधी ने सावरकर पर क्या लिखा
गांधी ने सावरकर को चतुर क्रांतिकारी कहा था और अपने एक लेख में लिखते हैं कि अगर भारत इसी तरह सोया पड़ा रहा, तो मुझे डर है कि उसके ये दो निष्ठावान पुत्र (सावरकर के बड़े भाई भी कैद में थे) सदा के लिए हाथ से चले जाएंगे. एक सावरकर भाई (विनायक दामोदर सावरकर) को मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूं. मुझे लंदन में उनसे भेंट का सौभाग्य मिला है. वे चतुर हैं, वीर हैं और क्रांतिकारी हैं.
लेकिन सावरकर पर किसी और का ही प्रभाव था
गांधी के जरिए क्रांतिकारी कहने के बाद सावरकर में दिलचस्पी और बढ़ती है. इस सिरे को पकड़ कर चलें तो सावरकर अपने साथ सीधे लंदन ले जाते हैं. यहां वह लॉ के छात्र तो दिखते ही हैं, इससे अलग उनमें एक नीतिज्ञ दिखता है जो गुप्त रूप से अभिनव भारत सोसायटी चला रहा था.
एक विचारक दिखता है, जो भारत के वैचारिक स्वरूप को अपने शब्दों में गढ़ता है, दुनिया में हर ओर हो रहे बदलावों पर नजर रखने वालों में भी सावरकर दिखते हैं, जिनके हाथ में उन दिनों माजिनी की आत्मकथा दिखाई दे जाती थी.
अगला सवाल, कौन हैं माजिनी?
इटली के इतिहास में माजिनी की जगह काफी अहम है. इटली को राष्ट्रीय-एकीकरण का आदर्श देने वाले मैजिनी ही थे. जिनेवा में 1805 को जन्मे माजिनी शायद सामान्य जीवन ही जीते अगर उनके पिता का असर उन पर नहीं पड़ा होता. घर में क्रांतिकारी माहौल, फ्रांस की क्रांति से प्रभाव को बताने वाली किताबों ने माजिनी पर ऐसा असर डाला कि बचपन से ही उसका स्वभाव एक उदार विद्रोही का सा हो गया.
उदार विद्रोही शब्द का इस्तेमाल इसलिए क्योंकि इसके बाद भी क्रांतिकारी बन पाने की सिर्फ एक संभावना होती है. इस रास्ते पर कोई भी गलती आपकी जिंदगी से उदारता को खत्म कर सकती है और आप सिर्फ विद्रोही बने रह सकते हैं.
1830 में गिरफ्तार हुए माजिनी
लेकिन इस मामले में माजिनी का गोल क्लियर था. पढ़ाई खत्म होते-होते वह कार्बोनरी (इटली के एकीकरण की कोशिश में जुटी समितियां) में शामिल हो गया. विद्रोह और विरोध के कारण वह प्रशासनिक आंखों में चुभने लगा और 1830 में उसे गिरफ्तार कर लिया गया. उसे सिनोना की जेल में भेजा गया. कुछ दिन वहां रहने के बाद जब माजिनी बाहर आया तो उसने विचार किया कि वह कहां पर गलत है.
उसने इटली की जनता को सन्देश दिया तथा राष्ट्रीय जीवन में चेतना जाग्रत की. 1830 ई. तक की अपनी यात्रा और उसे असफल मानते हुए मेजिनी ने दो निष्कर्ष निकाले. पहला तो यह कि इटली का सबसे प्रबल शत्रु ऑस्ट्रिया है. एकीकरण को पूरा करने के लिए कार्बोनरी अपर्याप्त है.
यह भी पढ़िएः नेहरू का वो माफीनामा जो साबित करता है कि सावरकर वीर क्यों हैं?
इटली की एकता-स्वाधीनता का अग्रदूत है माजिनी
माजिनी ने 'यंग इटली' नाम से दल बनाया. इटली की जनता को समझाया कि बनावटी राजनीतिक सीमाओं ने हमारे देश के टुकड़े कर दिए हैं. लेकिन इटली एक राष्ट्र है और उसमें एकता है. उस एकता को जिंदा रखना हर इटैलियन का कर्तव्य है.
माजिनी कहता था कि "जब तक काम और उद्देश्य अलग-अलग हैं, तब तक सफलता अनिश्चित है." तीन साल में यंग इटली के 60 हजार सदस्य हो गए. इस तरह माजिनी इटली की स्वाधीनता और उसकी एकता अग्रदूत बन गया.
वीर सावरकर ने इसी से प्रभावित होकर माजिनी की आत्मकथा का मराठी में अनुवाद किया. इस अनुवाद ने ही भारत में पहली बार और प्रारंभिक तौर पर लोगों में राष्ट्रवाद की भावना पनपने की प्रेरणा दी.
Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.