नई दिल्लीः रावण के भूशायी हो जाने के बाद राम ने अपने शिविर में लक्ष्मण से कहा- हे लक्ष्मण जो हमसे युद्ध कर रहा था, वह कोई अहंकारी और अभिमानी था. उसमें भक्ति नहीं थी, केवल हठ की शक्ति थी और गुरु विश्वामित्र से बड़ा हठी इस धरती पर कौन? जब उन्होंने हमें बला-अतिबला जैसी शक्तियों का ज्ञान दे दिया तो स्मरण है उन्होंने क्या कहा था?
लक्ष्मण जो अब तक उनकी बातें सुन रहे थे, उन्होंने कहा- जी भैया, स्मरण है. उन्होंने कहा था, हे सौमित्र (सुमित्रा के पुत्र) कभी भी हठ मत करना, हठ, लोभ का ही एक अत्यंत घातक रूप है. फिर उन्होंने अपनी हठ धर्मिता की कथा भी सुनाई थी. जो
श्रीराम ने लक्ष्मण को रावण के पास भेजा
बहुत अच्छा अनुज, हां, मुझे भी यह कथा याद है. धन्य है हम दोनों कि गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र जैसे संतों-महर्षियों की शरण में रहे. दोनों एक से बढ़कर एक. अब सोचो कि हमारे महान गुरुवर का हठ भी ऋषि वशिष्ठ के आगे न टिका तो रावण का हठ कैसे टिकता? इसलिए मेरे भाई,
अब तुम भी रावण के प्रति अपना हठीला क्रोध त्याग दो और मेरी ओर से जाकर उनसे ज्ञान की ज्योति ले आओ. निश्चित ही उनका ज्ञान हमें बड़ा ज्ञान आएगा. आज जो इस धरा से विदा ले रहा है वह महान विद्वान है. इसलिए कोई अशुभ हो, उससे पहले शीघ्र जाओ.
लक्ष्मण, रावण के पास गए
श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण चले और युद्ध भूमि में उस स्थान पर पहुंचे जहां कल का महाप्रतापी रावण आज अपनी देह से रिस रहे बीते काल को देख रहा था. वह देख रहा था कि कैसे उनसे शनि को बंदी बनाया, यम को पैरों के नीचे रखा, नवग्रहों और नक्षत्रों को अपने अनुसार चाल चलने पर विशेष कर देता था.
कैसे शनि की वक्री और मंगल की दशा को उनसे मजबूर कर अपनी कुंडली से प्रभावहीन कर दिया था. रावण यह सब सोच रहा था कि एक कर्कश आवाज से उसका मन भंग हुआ.
रावण ने लक्ष्मण को नहीं दिया जवाब
महाराज रावण, मैं लंकाविजयी श्रीराम का अनुज हूं. भैया ने मुझे आपसे ज्ञान लेने को भेजा है. हतभाग्य रावण के, कंधों पर 10 बार शर प्रहार से उसकी गर्दन में भयंकर पीड़ा थी. इसलिए वह इसे घुमाने में अक्षम था. रावण ने एक बार संकेत करना चाहा कि सामने आओ, लेकिन कर न सका.
लिहाजा वह चुप ही रहा. लक्ष्मण ने एक बार फिर कहा- हे राक्षसराज रावण मुझे राजनीति की शिक्षा दीजिए. इस बार उनके शब्दों का ओज और भी तीखा था. रावण पुनः चुप रहा. लक्ष्मण ने एक-दो बार और अनचाही कोशिश की और शिविर में लौट आए.
वापस लौटे लक्ष्मण
आते ही उन्होंने श्रीराम से कहा-भैया, वह तो कुछ बोल ही नहीं रहे, उन्होंने शायद सुना भी नहीं, मैंने कई कोशिश की लेकिन उन्होंने उत्तर नहीं दिया. अच्छा, तुमने क्या कहा था? मैंने कहा कि हे राक्षसराज रावण, आप मुझे राजनीति की शिक्षा दीजिए. हम्मम, और तुम किधर खड़े थे अनुज, श्रीराम ने पूछा. मैं सिर के पास ताकि उन्हें सुनाई दे.
श्रीराम ने कराया भूल का अहसास
यही तो गलती हुई अनुज. जब हमें किसी से कुछ सीखना हो तो हमें उसके पांव के निकट होना चाहिए. भाषा विनम्र रखनी चाहिए. सेवक की तरह प्रस्तुत होना चाहिए. मैंने कहा था न कि वे अब राक्षसराज नहीं महा ब्राह्मण हैं. ब्राह्मण के चरणों में झुकना को ब्रह्मदेव की पूजा है.
अब फिर से जाओ लक्ष्मण और पुत्र की भांति, शिष्य की तरह याचना करो, विनती करो वह तुम्हारी जरूर सुनेंगें.
लक्ष्मण दोबारा रावण के पास गए
इस बार लक्ष्मण जब पहुंचे तो उनको अपने चरणों में बैठा देख महापंडित रावण ने लक्ष्मण को संबोधित किया. कहा-तुम धन्य हो रघुकुल भूषण, सुमित्रा नंदन, रामानुज तुम धन्य हो लक्ष्मण. वैसे तुम जिनकी शरण में हों तुम्हें किसी और ज्ञान की आवश्यकता ही नहीं है.
वह तो भवसागर से पार करने का ज्ञान रखते हैं. फिर भी इस बार मैं तुम्हें खाली हाथ नहीं लौटाकर श्रीराम का एक और अपमान नहीं करूंगा. सुनो लक्ष्मण, अधिक कहने का समय नहीं, इसिलए तीन बातें बताता हूं, यही राजनीति का आधार भी है और समाज की मर्यादा भी. इन्हें गांठ बांध लो.
रावण की सीख, शुभस्य शीघ्रम
पहली बात तो यह कि शुभ कार्य जितनी जल्दी हो, कर डालना चाहिए और अशुभ को जितना टाल सकते हो, टाल देना चाहिए अर्थात शुभस्य शीघ्रम. इसे ऐसे ही देख लो कि अभी जो समय तुमने बिता दिया उससे ज्ञान पाने का समय और कम हो गया. और मुझे देखो, मैं प्रभु श्रीराम को पहचान नहीं सका और उनकी शरण में आने में देर कर दी. इसी कारण मेरी यह हालत हुई. यह मैं पहले ही पहचान लेता तो मेरी यह गत नहीं होती.
शत्रु को छोटा न समझो
फिर लंकेश ने कहा कि अपने प्रतिद्वंद्वी, अपने शत्रु को कभी भी अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए. मैंने जिन्हें साधारण वानर और भालू समझा, उन्होंने मेरी पूरी सेना को नष्ट कर दिया. मैंने जब ब्रह्माजी से अमरता का वरदान मांगा था तब मनुष्य और वानर के अतिरिक्त कोई भी मेरा वध न कर सके ऐसा वर मांगा था, क्योंकि मैं मनुष्य और वानर को तुच्छ समझता था.
रहस्य को रहस्य ही रहने दो.
रहस्य को रहस्य ही रहने दो. अपने जीवन का रहस्य किसी से भी न कहो और पता भी न चलने दो. यदि कोई बात रहस्य है तो वह अवश्य ही शुभ नहीं होगी, इसलिए ही रहस्य रखी गई होगी, यदि यह रहस्य बाहर आया तो अशुभ और विष ही फैलाएगा. यही राज्य के साथ भी है. राज्य में कई गुप्त बातें होती हैं, जिन्हें गुप्त ही रखना चाहिए.
यहा पढ़ें पहला भाग-Vijayadashmi Special: इतना महान था रावण की श्रीराम भी हो गए थे कायल
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