नई दिल्लीः सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के फैसले के खिलाफ दाखिल की गई पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने बड़ी बेंच के पास भेज दी है. अदालत ने पुराना फैसला भी बरकरार रखा है. उस पर कोई स्टे नहीं लगाया है. पांच में से तीन जजों ने मामले को बड़ी बेंच में भेजने के लिए सहमति जताई थी. इस तरह केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश देने का मामला लटक गया है. 2 जजों- जस्टिस नरीमन और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इसके खिलाफ अपना निर्णय दिया था. इस मामले में सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि धार्मिक प्रथाओं को सार्वजनिक आदेश, नैतिकता के अन्य प्रावधानों के खिलाफ नहीं होना चाहिए.
#SabarimalaTemple review petitions in Supreme Court:
Chief Justice of India, said, "the entry of women into places of worship is not limited to this temple, it is involved in the entry of women into mosques and Parsi temples." https://t.co/ha1jh4JPxl— ANI (@ANI) November 14, 2019
केरल सरकार ने पुनर्विचार याचिका का किया था विरोध
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में जस्टिस आरएफ नरीमन, एएन खनविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदू मल्होत्रा की बेंच ने यह फैसला सुनाया. फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर अपने फैसले पर पुनर्विचार याचिका की सुनवाई करने के बाद निर्णय सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी हटा दी थी. केरल सरकार ने पुनर्विचार याचिका का विरोध करते हुए कोर्ट में कहा कि महिलाओं को रोकना हिन्दू धर्म में अनिवार्य नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सबरीमाला मंदिर में दो महिलाएं किसी तरह पहुंच पाई थीं. हालांकि इनके प्रवेश से केरल में व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था. जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस फ़ैसले पर विस्तृत असहमति जताई है.
Supreme Court refers to larger bench, the review petitions against the verdict allowing entry of women of all age groups in the #SabarimalaTemple. pic.twitter.com/IC6qH6FmUF
— ANI (@ANI) November 14, 2019
सबरीमाला के विवाद पर डालते हैं एक नजर
केरल में स्थित सबरीमाला मंदिर में प्रवेश का विवाद भी तकरीबन अयोध्या मामले जितना पुराना है. पठनामथिट्टा में बना यह मंदिर करीब 800 साल पुराना है और यहां 1950 से महिलाओं के प्रवेश करने को लेकर विवाद है. 1991 में मामला कोर्ट गया था.
2008 में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) की सरकार बैन के खिलाफ डाली गई जनहित याचिका के समर्थन में हलफनामा दिया. 2017 में मामला सुप्रीम कोर्ट में गया जहां संवैधानिक पीठ को सौंपा गया. 2018 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दी गई कि महिलाओं को पूजा न करने देना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. एलडीएफ सरकार ने इसका समर्थन किया. 28 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दी.
जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस चंद्रचूड़ की टिप्पणी खास है
सबरीमला के मामले में फैसला सुनाने के दौरान जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस चंद्रचूड़ ने खास टिप्पणियां कीं. उन्होंने कहा कि अच्छी नीयत के साथ किसी फैसले की आलोचना की अनुमति जरूर है, लेकिन इसके लिए लोगों को उकसाने की हमारी संविधानिक व्यवस्था में गुंजाइश नहीं है.
हमने संविधान के मुताबिक़ क़ानून का शासन अपनाया है. लोग याद रखें कि संविधान वो पवित्र किताब है जिसे लेकर भारत के लोग एक राष्ट्र के तौर पर आगे बढ़ते हैं. उन्होंने कहा कि कानून के शासन का संरक्षण ज़रूरी है. उऩ्होंने फैसला आने के पहले और यहां तक कि इसके बाद भी अदालत में जाना का सभी का हक बताया.
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