रवि दहिया के पिता किसान, बेटा बना दंगल का 'सुल्तान': 6 साल की उम्र से लगाई अखाड़े में दहाड़

रवि दहिया का ये पहला ओलंपिक था. अपने पहले ही ओलंपिक में उन्होंने सिल्वर मेडल जीतकर अपनी ताकत का लोहा मनवाया है. रवि दहिया सोनीपत के एक नहारी गांव के रहने वाले हैं, महज 10 साल की उम्र में ही अपना गांव छोड़कर रवि दिल्ली कुश्ती सीखने आ गए. 13 साल की कड़ी मेहनत का बाद आज उन्होंने देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया.

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Aug 5, 2021, 08:09 PM IST
  • अखाड़े का 'सुल्तान' रवि दहिया
  • पहले ओलंपिक में 'सिल्वर' दांव
रवि दहिया के पिता किसान, बेटा बना दंगल का 'सुल्तान': 6 साल की उम्र से लगाई अखाड़े में दहाड़

नई दिल्ली: टोक्यो ओलंपिक में भारत को आज कुश्ती में सिल्वर मेडल मिला. ये मेडल सोनीपत के शेर रवि दहिया ने दिलवाया. 57 किलोग्राम भार वर्ग में आज रवि दहिया का मुकाबला दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी रूस के  जावुर युगुऐव से हुआ. बेहद कड़े मुकाबले में रवि दहिया को भले ही रूस के खिलाड़ी से हार मिली, लेकिन  उन्होंने 130 करोड़ से ज्यादा भारतियों का दिल जीत लिया.

6 साल की उम्र में ही दंगल में दहाड़ा

हरियाणा के सोनीपत के नहारी गांव को अब पूरा भारत जान गया है, क्योंकि यहां के छोरे ने टोक्यो ओलंपिक में कमाल कर दिखाया है. नहारी ओलंपिक मेडलिस्ट पहलवान रवि दहिया का गांव है. इसी गांव की गलियों में रवि दहिया ने कुश्ती के अपने सपने को सच करने के लिए पसीना बनाया है.

जिस उम्र में बच्चे क्रिकेट खेलने के लिए बैट उठाते हैं. उस उम्र में रवि दहिया कुश्ती के दांव पेंच पसंद करने लगे थे. पड़ोसियों के मुताबिक सिर्फ 6 साल की उम्र में ही रवि दहिया ने कुश्ती के लिए मेहनत करनी शुरू कर दी थी. 

किसान का बेटा बना दंगल का सुल्तान

गांव के लोगों ने कहा कि यह जब छोटा था तभी से मेहनत करने लगा 6 साल का था तभी से लग गया था इसके पिता जी ने भी खूब मेहनत की है. इसने बहुत मेहनत की है बचपन से ही उसके माता पिता किसान थे. रवि दहिया के गांव वालों ने ये भी बताया कि इनके परिवार की पहले बहुत ही नाजुक स्थिति थी यह बहुत गरीब परिवार से था अब जाकर इनकी हालत थोड़ी ठीक हुई है.

रवि के पिता एक साधारण किसान हैं. किसान परिवार से होने के बावजूद रवि दहिया ने बचपन से ही दंगल में अपना भविष्य देखना शुरू कर दिया था. बचपन में रवि ने आर्थिक तंगी भी देखी है.

वर्ष 2009 में किया था दिल्ली का रुख

10 साल की उम्र में रवि ने अपने गांव को छोड़ दिया और दिल्ली आ गए. दिल्ली का ये छत्रसाल स्टेडियम पहलवानों का सबसे बड़ा ट्रेनिंग सेंटर है. इस स्टेडियम में पहलवानों को कुश्ती सिखाई जाती है.

वर्ष 2009 में पहली बार रवि दहिया छत्रसाल स्टेडियम में पहलवानी के दांव पेंच सीखने आये थे. यहां उनकी ट्रेनिंग रेसलिंग (Wrestling) कोच प्रवीण दहिया की निगरानी में हुई थी. ओलंपिक में क्वालीफाई करने के बाद भी रवि दहिया ने छत्रसाल स्टेडियम में ही ट्रेनिंग ली.

छत्रसाल स्टेडियम में रवि दहिया ने अपने कमरे में दो पोस्टर लगा रखे थे, दोनों पोस्टर पर लिखा था कि उन्हें टोक्यों ओलंपिक में जीत कर ही आना है. रवि दहिया भले ही गोल्ड न जीत पाए हों, लेकिन उन्होंने सिल्वर मेडल जीतकर अपने इस लक्ष्य को काफी हद तक हासिल कर लिया.

रोज 3-4 घंटे जिम ट्रेनिंग करते थे दहिया

कोरोना काल में भी रवि दहिया ने ओलंपिक के लिए अपनी तैयारियां कम नहीं की थीं. छत्रसाल स्टेडियम के इसी GYM में रवि दहिया रोज 3-4 घंटे ट्रेनिंग करते थे. ट्रेनिंग के दौरान वो अपने खान-पान का भी बहुत ध्यान रखते थे. अपनी कड़ी मेहनत की बदौलत ही रवि दहिया ने कई मेडल अपने नाम किया है.

साल 2018 में अंडर 23 वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में उन्होंने सिल्वर मेडल जीता. 2019 के वर्ल्ड चैंपियनशिप में उन्होंने ब्रॉन्ज जीता. 2020 के एशियन चैंपियनशिप में रवि दहिया ने गोल्ड मेडल अपने नाम किया और अब टोक्यो ओलंपिक के 57 किलोग्राम भार वर्ग में सिल्वर मेडल अपने नाम किया.

पिता राकेश दहिया की मेहनत लाई रंग

छत्रसाल स्टेडियम में रवि की ओलंपिक की तैयारियां कम ना पड़े इसके लिये दिल्ली सरकार के खेल और शिक्षा विभाग की ओर से काफी मदद मिली. सोनीपत के शेर रवि दहिया ने टोक्यो ओलंपिक में जो झंडा गाड़ा है उससे छत्रसाल स्टेडियम में उनके साथी भी बेहद खुश हैं.

एक वक्त था, जब रवि दहिया के पिता राकेश दहिया सोनीपत से दिल्ली दूध और फल लेकर छत्रसाल स्टेडियम आते थे. ताकि उनका लाल देश का नाम रोशन कर सके आज एक पिता की मेहनत रंग लाई और उनका बेटा आज ओलंपिक मेडलिस्ट बन गया.

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