नागरिकता संशोधन विधेयक पर मोदी सरकार और विपक्ष में तकरार जारी

राजनीतिक रूप से विवाद का प्रमुख कारण बन चुके नागरिकता संशोधन विधेयक को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है.  पीएम मोदी की अध्यक्षता में संसद भवन में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में इसे मंजूरी दी गयी. अब इसे कानून बनाने के लिये संसद में कभी भी पेश किया जा सकता है.  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Dec 4, 2019, 12:55 PM IST
    • पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का बिल में प्रावधान
    • संसद में पास कराने के लिये पहले भी पेश हो चुका है विधेयक
    • विपक्ष लगा रहा है मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने का आरोप
नागरिकता संशोधन विधेयक पर मोदी सरकार और विपक्ष में तकरार जारी

दिल्ली : नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) इन दिनों देश भर में चर्चा का विषय बना है. माना जा रहा है कि कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद इसे सदन में अगले हफ्ते सदन के पटल पर रखा जा सकता है. एक तरफ जहां मोदी सरकार इस बिल को देश से घुसपैठियों को बाहर निकालने का तरीका बता रही है, वहीं दूसरी तरफ विपक्ष का आरोप है कि इसमें धर्म के आधार पर नागरिकता देने का प्रावधान है जो देश के धर्मनिरपेक्ष ढ़ांचे पर चोट कर रहा है. कांग्रेस का कहना है कि गैर मुस्लिमों को भारत की नागरिकता देना मुसलमानों के साथ अन्याय है.

पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का बिल में प्रावधान

नागरिकता संशोधन विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाना है. मौजूदा समय में किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 12 सालों में से 11 सालों तक यहां रहना अनिवार्य है. इस नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक साल से लेकर 6 साल किया जायेगा.

दिसंबर 2014 के बाद से इन तीनों देशों के जो गैर मुस्लिम भारत में शरण लेकर बसे हैं, उनको इसके माध्यम से भारत की नागरिकता मिल सकेगी. नागरिकता संशोधन विधेयक में नागरिकता कानून, 1955 में संशोधन का प्रावधान है. सरकार का उद्देश्य है कि इस बिल के माध्यम से भारत के तीन पड़ोसी मुस्लिम बहुसंख्यक देशों में धार्मिक रूप से प्रताड़ित गैर मुस्लिमों को भारत की नागरिकता देने के नियम को आसान बनाना है.

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संसद में पास कराने के लिये पहले भी पेश हो चुका है विधेयक 

आपको बता दें कि इस विधेयक को 19 जुलाई, 2016 को लोकसभा में पेश किया गया था और 12 अगस्त, 2016 को इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया था. कमिटी ने 7 जनवरी, 2019 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. उसके बाद अगले दिन यानी 8 जनवरी, 2019 को विधेयक को लोकसभा में पास किया गया, लेकिन उस समय राज्यसभा में यह विधेयक पेश नहीं हो पाया था. इस विधेयक को शीतकालीन सत्र में पास कराने के लिये सरकार पूरी तैयारी कर रही है. संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद ही यह कानून बन पाएगा. पीएम मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में इसे बुधवार को मंजूरी दी गयी. 

विपक्ष लगा रहा है मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने का आरोप

नागरिकता संशोधन विधेयक का विपक्ष लगातार विरोध कर रहा है. कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार इस बिल के माध्यम से देश के मुसलमानों को निशाना बना रही है. तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, जो समानता के अधिकार की बात करता है. सरकार इस बिल को लाकर 1985 के असम अकॉर्ड का भी उल्लंघन कर रही है.असम में बीजेपी की पूर्व सहयोगी असम गण परिषद भी नागरिकता संशोधन बिल को स्थानीय लोगों की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान के खिलाफ बताते हुए इसका विरोध कर रहा है. राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा कि ये गांधी का हिंदुस्तान है इसमें सभी की स्वीकार्यता होनी चाहिये.

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