नई दिल्ली: वैश्विक मंदी का असर इस साल धनतेरस पर भी खूब पड़ने वाला है. बाजार के सुस्त पड़ जाने से सोने की चमक-धमक कम हो गई है. लोग खरीददारी कम कर रहे हैं और सोने के दाम आसमान छू रहे हैं. यह न तो अर्थव्यस्था के लिहाज से सही है और न ही त्यौहार के रौनक के लिहाज से.
सोने के चढ़ते दाम और बाजार की घटती साख इस बार धनतेरस पर सोने की खरीददारी में 50 फीसदी तक की कमी ला सकती है, ऐसा बुलियन बाजार के विशेषज्ञों का मानना है.
दरअसल, इंडियन बुलियन ऐंड ज्वेलर्स असोसिएशन (IBJA) के राष्ट्रीय सचिव सुरेंद्र मेहता की मानें तो हर साल धनतेरस को तकरीबन 40 टन सोने की बिक्री होती है. अब मुश्किल ये है कि सोने की कीमतें तो बढ़ ही रही है साथ ही आयात पर करों का अतिरिक्त दबाव बाजार में सोने की मौजूदगी पर भी असर डाल रहा है. यही कारण है कि सोने के आयात को भी प्रभावित कर रहा है. एक आंकड़े के मुताबिक भारत ने इस साल सितंबर में केवल 26 टन सोना आयात किया है, जबकि पिछले साल 81 टन सोना आयात किया गया था. देखा जाए तो पिछले साल की तुलना में इस बार के आयात में 68.18 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है.
डिमांड-सप्लाई का ग्राफ हो गया है पस्त
इस आर्थिक मंदी के असर पर सभी विशेषज्ञों के अपने-अपने सुझाव हैं, अपने-अपने विचार हैं. कुछ बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार द्वारा जुलाई में आयात शुल्क 10 फीसदी से बढ़ाकर 12.5 फीसदी तक बढ़ाने के बाद सोने का आयात पिछले कई सालों के निचले स्तर पर पहुंच चुका है. सुरेंद्र मेहता ने बताया कि बाजार में तीन तरह के सोने की मांग होती है, जरूरतों के हिसाब से. एक शादी के लिए, दूसरा त्यौहारों में और तीसरा उसकी रोजाना की मांग के लिए. और यही समस्या का कारण भी है कि मौजूदा सोने की संपत्ति पहले ही बहुत कम है. अब इसकी बढ़ी हुई कीमतों की वजह से लोग सोने में निवेश भी नहीं करना चाह रहे हैं. इससे बाजार का डिमांड-सप्लाई स्तर भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है.
हालांकि, सरकारी तंत्र तमाम उधेड़-बुन में लगे हुए हैं. बैंक दरों से ले कर कामगरों के वेतन तक में बढ़ोतरी कर सरकार मांग को बढ़ाने की कोशिश में लगी हुई है.