मोदी राज में गोधन से मालामाल हुआ देश, लेकिन चिंता का एक कारण भी है मौजूद

प्राचीन भारत में गायों को ही धन माना जाता था. सबसे ज्यादा गायों वाला व्यक्ति सबसे अमीर होता था. पिछले कुछ वर्षों में हमारा देश भी फिर से अपनी पुरानी संपन्नता की तरफ लौट रहा है. देश में गोधन की संख्या बढ़ गई है.   

Last Updated : Oct 17, 2019, 10:35 AM IST
    • देश में बढ़ा गोधन
    • गायों की संख्या बढ़ी
    • लेकिन देसी गाएं हो रही हैं कम
मोदी राज में गोधन से मालामाल हुआ देश, लेकिन चिंता का एक कारण भी है मौजूद

नई दिल्ली: देश में हुई ताजा पशु गणना के मुताबिक गायों की संख्या में 18 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. देश में अब 14.5 करोड़ गाएं हैं. जबकि बैलों और सांड़ों की संख्या 4.7 करोड़ है. पशुधन के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में कुल पशुधन 53.5 करोड़ है. जिसमें भैंसें 10.9 करोड़, बकरियां 14.8 करोड़, घोड़े 3.4 करोड़, सुअर 90 लाख, ऊंट 2.5 लाख खच्चर 84 हजार और गधे 1.2 लाख हैं. इसके अलावा मुर्गे मुर्गियों की संख्या 85 करोड़ है. 

चिंता की एक वजह है मौजूद
देश में पशुधन की संख्या बढ़ना अच्छी खबर है. लेकिन इसके अंदर एक छिपी चिंताजनक बात यह है कि नई पशुगणना के मुताबिक देसी गायों की संख्या घट गई है. जबकि विदेशी नस्ल की गायों की संख्या बढ़ गई है. जहां पहले देसी नस्ल का गोवंश 15.1 करोड़ था, वहीं अब उनकी संख्या घटकर 14.2 करोड़ रह गई है. 
यह स्थिति अच्छी नहीं है. क्योंकि विदेशी नस्ल की गाएं ए-1 श्रेणी का दूध देती हैं, जो कि पचने में मुश्किल होता है और डायबिटीज, दिल की बीमारी, कई तरह की एलर्जी, मोटापा, सिजोफ्रेनिया जैसी बीमारियों का कारण बनता है.  इसके विपरीत हमारी देसी नस्ल की गाएं ए-2 श्रेणी का दूध देती हैं. जो कि पचने में आसान होता है और उसमें प्रोलिन नाम का एमीनो एसिड होता है जो कि इसे मां के दूध की तरह उपयोगी बनाता है. 
देसी गायों का घटना और विदेशी गायों का बढ़ना अच्छी स्थिति नहीं है. हालांकि ज्यादा दूध के लालच में पशुपालक विदेशी गाएं पालने लगे हैं. लेकिन गुणवत्ता के मामले में उनका दूध देसी गायों का मुकाबला नहीं कर सकता. यही वजह है कि देशी गाय के संवर्धन के लिए केन्द्र सरकार राष्ट्रीय गोकुल मिशन और राष्ट्रीय गोकुल ग्राम कार्यक्रम चला रही है.

फिर भी पशुधन का बढ़ना है अच्छी खबर
इसके पहले भारत में पशुधन की गणना साल 2012 में हुई थी. देश में आजादी के पहले से पशुधन की गणना की शुरुआत की गई थी. साल 1919-20 और फिर 1924-25 में पशुगणना की गई थी. जिसके बाद साल 1951 से लगातार देश में पशुधन की गणना की जाती है. पिछले सात सालों में भारत में गायों की संख्या में 18 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. जबकि सारे पशुधन में 4.6 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. हालांकि इसी दौरान गधों की संख्या में कमी आई है. क्योंकि मशीनी युग में सामान ढोने के लिए गधे अनुपयोगी होते जा रहे हैं. 

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