काला जादू, अंधविश्वास और जबरन धर्मांतरण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर

एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में काला जादू, अंधविश्वास और जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून बनाने की मांग करते हुए एक जनहित याचिका दायर की है. 

Written by - Sumit Kumar | Last Updated : Apr 1, 2021, 04:37 PM IST
  • जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून बनाने की मांग
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा हाईकोर्ट का मत देखना जरूरी
काला जादू, अंधविश्वास और जबरन धर्मांतरण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर

नई दिल्ली: काला जादू, अंधविश्वास और जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून बनाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है.

दरअसल, ये जनहित याचिका बीजेपी प्रवक्ता व वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है. याचिका में काला जादू, अंधविश्वास और जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए उपयुक्त कदम उठाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश देने की मांग की गई है.

याचिका में कहा गया है कि पूरे देश में हर हफ्ते जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है, समाजिक और आर्थिक स्थिति से कमजोर लोगों का जबरन धर्मांतरण किया जा रहा है.

याचिका में ये भी कहा गया है कि सरकारें ऐसे लोगों के खिलाफ कोई ठोस कदम उठाने में नाकाम रही है. इसके अलावा याचिका में कहा गया है कि जबरन धर्मांतरण न केवल संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 25 का उल्लंघन करता है बल्कि धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के भी खिलाफ है जो संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न अंग है.

यूपी और एमपी के कानून को SC में दी गई थी चुनौती
धर्म परिवर्तन के खिलाफ उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश सरकार द्वारा बनाए गए कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.

पहले तो सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर रोक लगाने से इंकार करते हुए यूपी और एमपी सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था लेकिन बाद में कुछ और याचिकाओं के आने के बाद सीजेआई एसए बोबड़े ने याचिकाकर्ताओं को हाई कोर्ट जाने को कहा था.

सुप्रीम कोर्ट का मानना था कि पहले हाईकोर्ट इस मसले को सुने और अपना मत दे फिर मामला अगर सुप्रीम कोर्ट आएगा तो इस पर विचार किया जाएगा.

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हाईकोर्ट का मत देखना जरूरी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में वह हाई कोर्ट का मत देखना चाहता है लिहाजा याचिकाकर्ता मामले में हाई कोर्ट का रूख कर सकता है.

कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस मामले में दाखिल याचिका वापस लेने की अनुमित दे दी थी और इस बात की अनुमति दी थी कि वह मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर सकते हैं.

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