वो क्रांतिकारी नायक जिसके नाम से थर्र-थर्र कांपती थी अंग्रेजी हुकूमत? जानें नेताजी के बारे में...

फिरंगियों को जिस बात का डर था वही हुआ. आजाद हिन्द फौज जापानी सैनिकों के साथ रंगून से 18 मार्च 1944 को कोहिमा और इम्फाल के मैदानी क्षेत्रों तक पहुंच गई. 22 सितम्बर 1944 को बोस ने सैनिकों से सबसे बड़ी हुंकार भरी, कहा कि हमारी मातृभूमि स्वतन्त्रता की खोज में है. तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा. आजाद हिंद फौज ने जापानियों के साथ मिलकर भारत की पूर्वी सीमा और बर्मा से युद्ध लड़ा. पहली बार कोहिमा में भारतीय झंडा लहराया. देखना ना भूलें ज़ी हिन्दुस्तान की खास पेशकश 'बायोग्राफी' सोमवार से शुक्रवार रात 10.25 बजे...

फिरंगियों को जिस बात का डर था वही हुआ. आजाद हिन्द फौज जापानी सैनिकों के साथ रंगून से 18 मार्च 1944 को कोहिमा और इम्फाल के मैदानी क्षेत्रों तक पहुंच गई. 22 सितम्बर 1944 को बोस ने सैनिकों से सबसे बड़ी हुंकार भरी, कहा कि हमारी मातृभूमि स्वतन्त्रता की खोज में है. तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा. आजाद हिंद फौज ने जापानियों के साथ मिलकर भारत की पूर्वी सीमा और बर्मा से युद्ध लड़ा. पहली बार कोहिमा में भारतीय झंडा लहराया. देखना ना भूलें ज़ी हिन्दुस्तान की खास पेशकश 'बायोग्राफी' सोमवार से शुक्रवार रात 10.25 बजे...

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