आख़िर कौन जगाता है कुंभ में शिव पुराण का अलख ?

जंगम साधुओं के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि इनकी उत्पत्ति भगवान शिव के जांघ से हुई है. यही वजह है कि इन्हें जंगम साधु कहा जाता है और कहा जाता है कि ऐसा तब हुआ जब भगवान शिव के दिए दान को ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने लेने से इनकार कर दिया, तब मां पार्वती के आश्चर्य का जवाब देते हुए भगवान शिव ने जांघ में चीरा लगा कर इन साधुओं की उत्पत्ति की. जंगम साधुओं की ये शैली अपने ख़ास अंदाज की वजह से कुंभ में लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच रही है. एक और बात जो इन्हें तमाम साधुओं से अलग करती है वो ये कि इन साधुओं को अखाड़ों के पुजारी के तौर पर जाना जाता है. ये सिर्फ अखाड़ों से मिला प्रसाद ही ग्रहण करते हैं. अपनी संगीत साधना के ज़रिए जंगम साधु न केवल अखाड़ों और कुंभ में शिवनाम का अलख जगाते हैं, बल्कि वो शिव पुराण भी सुनाते हैं.

जंगम साधुओं के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि इनकी उत्पत्ति भगवान शिव के जांघ से हुई है. यही वजह है कि इन्हें जंगम साधु कहा जाता है और कहा जाता है कि ऐसा तब हुआ जब भगवान शिव के दिए दान को ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने लेने से इनकार कर दिया, तब मां पार्वती के आश्चर्य का जवाब देते हुए भगवान शिव ने जांघ में चीरा लगा कर इन साधुओं की उत्पत्ति की. जंगम साधुओं की ये शैली अपने ख़ास अंदाज की वजह से कुंभ में लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच रही है. एक और बात जो इन्हें तमाम साधुओं से अलग करती है वो ये कि इन साधुओं को अखाड़ों के पुजारी के तौर पर जाना जाता है. ये सिर्फ अखाड़ों से मिला प्रसाद ही ग्रहण करते हैं. अपनी संगीत साधना के ज़रिए जंगम साधु न केवल अखाड़ों और कुंभ में शिवनाम का अलख जगाते हैं, बल्कि वो शिव पुराण भी सुनाते हैं.

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