नई दिल्ली: अमेरिका और अफगानिस्तान प्रशासन तथा तालिबान प्रतिनिधियों के बीच दोहा में शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुआ. इसमें भारत की भी सहमति है.
US-Taliban sign 'peace deal' aimed at ending war in Afghanistan
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— ANI Digital (@ani_digital) February 29, 2020
तालिबान के साथ वार्ता से पहले ही अमेरिका और अफगानिस्तान ने संयुक्त घोषणापत्र जारी किया था. जिसमें यह ऐलान किया गया कि समझौते पर दस्तखत होने से 135 दिन यानी साढ़े चार महीनों में अमेरिका और उसके सहयोगी अपने 8600 सैनिकों को बुला लेंगे. इसके बाद के अगले 14 महीनों में सभी फौजें लौटा ली जाएंगी.
दोहा में हुआ समझौता
कतर के शहर दोहा में तालिबान के प्रतिनिधियों के साथ अमेरिकी और अफगान प्रशासन ने एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किया. ये एक ऐतिहासिक मौका था. जब अफगान धरती पर खून खराबा रुकते हुए देखने के लिए 30 देशों के विदेश मंत्री और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधि वहां पहुंचे. इसमें भारत के राजदूत पी.कुमारन भी शामिल थे.
अमेरिका के दो अहम मंत्रालय प्रक्रिया में शामिल
अमेरिका के लिए ये समझौता कितना महत्वपूर्ण है. ये इसी बात से समझा जा सकता है कि एक तरफ अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो दोहा में हस्ताक्षर प्रक्रिया में शरीक हैं. उधर रक्षा मंत्री मार्क एस्पर अपने साथ नाटो महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग के साथ काबुल में डेरा डाले बैठे हुए हैं.
भारत की सहमति से हुआ समझौता
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से इस समझौते पर सहमति हासिल की थी. इसलिए भारत के विदेश सचिव हर्षवर्द्धन श्रृंगला शुक्रवार की रात को ही काबुल पहुंच गए थे. उन्होंने वर्तमान राष्ट्रपति अशरफ गनी और अफगान सरकार के उच्च अधिकारियों से मुलाकात की और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लिखा हुआ पत्र भी उन्हें सौंपा.
Foreign Secretary @HarshShringla called on President @AshrafGhani and handed over congratulatory letter from PM @narendramodi. President appreciated India’s consistent support for democracy and constitutional order in Afghanistan. @IndianEmbKabul pic.twitter.com/uAYQHQelBn
— Raveesh Kumar (@MEAIndia) February 28, 2020
अमेरिका ने भारत से सहमति पाने के बाद ही तालिबान से शांति वार्ता के लिए कदम उठाया है. क्योंकि अफगानिस्तान के विकास के लिए वहां भारत के बहुत सी परियोजनाएं चल रही हैं. जिन्हें लेकर भारत की अपनी चिंताएं हैं.
ट्रंप के लिए तालिबान समझौता था बड़ा मुद्दा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए ये समझौता निजी तौर पर बड़ी जिम्मेदारी की तरह था. इसलिए उन्होंने इसपर पीएम मोदी की हां सुनने के लिए दिल्ली तक यात्रा की. दरअसल अफगानिस्तान की जमीन पर अमेरिका के अब तक 2352 सैनिक मारे जा चुके हैं. डोनाल्ड ट्रंप इस शांति समझौते को अपने चुनाव प्रचार के दौरान भुनाने और और हजारो फौजियों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए पूरा करना चाहते थे. इसके लिए उसकी अफगान सरकार और तालिबान प्रतिनिधियों के साथ लंबे वक्त से चर्चा चल रही थी. शांति समझौते को लेकर राष्ट्रपति ट्रम्प ने शुक्रवार रात डील को अंतिम रूप देने के लिए सहमति दी.
भारत और तालिबान के संबंध अच्छे नहीं रहे हैं
अफगान तालिबान का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान संचालित रहता है. जिसकी वजह से भारत से उसके संबंध बहुत अच्छे नहीं हैं. भारतीय विमान का अपहरण करके अफगानिस्तान ही ले जाया गया था. तालिबान ने 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर शासन किया था. भारत ने कभी तालिबान से बातचीत को प्राथमिकता नहीं दी.
लेकिन 24-25 फरवरी को भारत दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने नरेंद्र मोदी से शांति समझौते को लेकर चर्चा छेड़ दी थी. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, ‘मैंने प्रधानमंत्री मोदी से इस संबंध में बात की है, हम समझौते के बेहद करीब हैं. भारत इस मामले में साथ देगा और इससे सभी लोग खुश होंगे.’
अमेरिका ने पहली बार भारत को तालिबान के साथ किसी बातचीत के लिए आधिकारिक तौर पर न्योता दिया था. इसीलिए कतर के दोहा शहर में समझौते के दौरान भारतीय राजदूत पी कुमारन भी मौजूद रहे.
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