भारत के साथ धोखेबाजी का एक और चीनी 'पैंतरा'! 1962 वाली चली 'चाल'

चीन ने साल 1962 वाली चाल चलकर धोखाधड़ी का पैंतरा अपननाने की कोशिश में जुट गया है. जैसे उसने उस वक्त जवाहरलाल नेहरू को झांसा दिया था, इस बार अपनी इस चालबाजी में कामयाब नहीं हो पाएगा..

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : May 27, 2020, 10:15 PM IST
    • इस बार पैंतरेबाजी नहीं होगी कामयाब
    • चालबाजी, धोखाधड़ी और पैंतरेबाजी असल नीति
    • ..जब चीन के झांसे में आए जवाहरलाल नेहरू
    • भारत के गोरखा सैनिकों को तोड़ने की कोशिश
    • अचानक से हमला करना चीन का मंसूबा
भारत के साथ धोखेबाजी का एक और चीनी 'पैंतरा'! 1962 वाली चली 'चाल'

नई दिल्ली: पीठ पर छुरा घोंपना चीन की फितरत रही है. लेकिन ये नया हिन्दुस्तान है, जो रुकना और झुकना नहीं जानता है. चीन के झांसे में इस बार भारत नहीं आने वाला है. चाहें वो कितनी भी नौटंकी कर ले. चीन ने एक बार फिर 1962 वाली चाल चली है.

इस बार पैंतरेबाजी नहीं होगी कामयाब

भारत का तेवर देखकर 24 घंटे के भीतर चीन ने नई चाल चली है. भारत के साथ सीमा विवाद पर चीन के विदेश मंत्रालय की सफाई सामने आई है. जो किसी पैंतरेबाजी से कम नहीं है. वो कैसे ये आपको हम समझाते हैं. 

लद्दाख में चीन से बढ़ते तनाव के बीच पीएम मोदी की अहम बैठक हुई. जिसमें भारत ने अपना रुख साफ किया और ये कहा कि इंच भर भी पीछे हटने का सवाल नहीं है. वहीं रविशंकर प्रसाद ने कहा पीएम मोदी के रहते कोई देश को आंख नहीं दिखा सकता. भारत के इसी तेवर को देखकर चीन ने झुकने का नाटक करना शुरू कर दिया. ये वही चाल है, जो उसने 62 की लड़ाई से पहले किया था.

चालबाजी, धोखाधड़ी और पैंतरेबाजी असल नीति

चालबाजी, धोखाधड़ी और पैंतरेबाजी चीन की सदियों पुरानी नीति है. ऐसे में उसने इस बार भारत को 1962 की तरह अचानक झटका देने का प्लान बनाया है. एक तरफ तो वो सीमा पर तैनाती कर रहा है, वहीं दूसरी ओर दलील दे रहा है.

चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत के साथ कोई सीमा विवाद नहीं है. भारत के साथ सीमा पर हालात नियंत्रित और स्थिर हैं. चीन के विदेश मंत्रालय ने ये भी कहा कि भारत के साथ हर मुद्दे का हल चर्चा से करेंगे. वहीं भारत में चीन के राजदूत ने भी कहा है कि दोनों देश बातचीत के जरिए मतभेदों को सुलझाएंगे. चीन के राजदूत ने कहा, मतभेदों का असर भारत और चीन के संबंधों पर नहीं पड़ेगा. 

ये भी चीन का एक ढोंग है, जिससे वो अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए हथियार का इस्तेमाल करना चाहता है. लेकिन वो ये बात भूल रहा है कि इस बार उसकी कोई भी चालाकी चलने वाली नहीं है.

देश के तत्कालिक प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को चीन ने जिस तरह से धोखा दिया था. वो वाकई देश के लिए बहुत बड़ा झटका था. नेहरू को झांसा देकर चीनियों ने भारत को ऐसा घाव दिया जो अबतक भर नहीं पाया है. और अब चीन एक दूसरे हमले की तैयारी कर रहा है. सबसे हैरानी की बात तो ये है कि वो 1962 की जरह ही धोखेबाजी करने के फिराक में है.

जब चीन के झांसे में आए नेहरू

सीमा विवाद को लेकर भारत और चीन हमेशा से आमने सामने आते रहे हैं. भारत ने उस वक्त कभी ये सोचा भी नहीं था कि उसका पड़ोसी देश चीन उस पर हमला करेगा, लेकिन पड़ोसी देश ने ऐसा किया. क्योंकि नेहरू उस वक्त चीन के झांसे में आ गए थे. जवाहरलाल नेहरू ने 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' का नारा दिया. चीन ने 20 अक्टूबर 1962 को भारत पर अचानक से हमला कर दिया.

उस वक्त भारत युद्ध के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था. उस वक्त भारत के सिर्फ 10-20 हजार सैनिक चीन के करीब 80 हजार जवानों का मुकाबला करने के लिए जंग के मैदान में थे. ये युद्ध पूरे एक महीने चला, जब तक चीन ने 21 नवंबर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा नहीं कर दी थी.

1954 में भारत और चीन ने पंचशील समझौता किया, जिसमें 5 सिद्धांतों को आधार मानकर संधि का गठन हुआ. इसी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा दिया था. 1962 के युद्ध का सबसे बड़ा कारण तिब्बत में चीनी शासन को कायम करने का मंसूबा था, जिसके लिए चीन भारत को खतरा मानता था.

भारत के गोरखा सैनिकों को तोड़ने की कोशिश

1962 में कई बार चीन ने भारत को अपनी धमक दिखाने की कोशिश की, झगड़े भी हुए, साल 1962 के 10 जुलाई को तकरीबन 350 चीनी सैनिकों ने कुसूल में भारतीय पोस्ट को घेर लिया था. इतना ही नहीं उन्होंने लाउडस्पीकर से भारत के गोरखा सैनिकों को संदेश दिया कि उन्हें भारत की तरफ में लड़ाई नहीं करनी चाहिए.

चीन ने इस बात का भरपूर फायदा उठाया था कि भारत जंग के बारे में नहीं तैयार है. चीन ने एक तो अचानक से हमला किया. उसके बाद भारतीय टेलीफोन लाइनों को भी काट दिया. इससे सीमा पर मौजूद सैनिक बल अपने मुख्यालय से संपर्क नहीं कर पा रहे थे. युद्ध के पहले ही दिन पीछे से भारत पर हमला कर दिया.

अचानक से हमला करना चीन का मंसूबा

1962 वाली रणनीति को अपनाकर इस बार भी चीन अचानक से भारत पर हमला करना चाहता है. वो भूल रहा है कि उसके झांसे में अमेरिका आ सकता है, दुनिया भी आ सकती है, उस वक्त नेहरू भी आ गए. लेकिन इस हिन्दु्स्तान उसे इस पैंतरेबाजी का मौका ही नहीं देगा.

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नये हिन्दुस्तान को धोखा देना, उसके साथ पैंतरेबाजी करना और उसे उलझाने की कोशिश करना चीन के लिए खतरे से खाली नहीं है. वो अपने बयान से भारत को ये बताना चाहता है कि उसकी मंशा युद्ध की नहीं है. लेकिन इस बार भी वो 1962 जैसी चाल चलकर धोखा दे सकता है. इसीलिए भारत पहले से ही तैयार है. चीन के हर चाल को बेहाल करने के लिए, उसे उसकी हद बताने के लिए..

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