Turkey Protest: इन दिनों मिडिल ईस्ट में भयंकर उथल-पुथल मचा हुआ है. इजरायल, फिलिस्तीन, सीरिया, यमन और लेबनान के बाद तुर्की भी इसकी जद में आ गया है. हालांकि यहां किसी देश के द्वा्रा हमला नहीं हुआ है. बल्कि तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैएप एर्दोगन ही हैं. हाल ही में उन्होंने इस्तांबुल के मेयर इमामोअलु को गिरफ्तार करवा लिया था. जिसके बाद तुर्की की सड़कों पर हजारों की संख्या में लोग हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं. इस प्रदर्शन को दबाने के लिए एर्दोगन के सुरक्षाकर्मी बल का प्रयोग कर रहे हैं. जिसके तहत अब तक 300 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है.
एर्दोगन का यह एक्शन उन्हें ही कटघरे में खड़ा कर रहा है. यह कोई पहला मौका नहीं है, जब एर्दोगन (Recep Tayyip Erdoğan) सत्ता में बने रहने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रहे हों. इससे पहले, उन्होंने मेयर के पद से शुरू किए राजनीतिक सफर को राष्ट्रपति की कुर्सी तक ले आए. इस बीच उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए, जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया. चाहे उनके प्रतिद्वंदियों की गिरफ्तारी हो या तुर्की के संविधान को बदल देना. ऐसे में एक सवाल उठता है कि क्या दुनिया में एक और तनाशाह की एंट्री होने जा रही है? आइए इस पर नजर डालते हैं.
22 साल से सत्ता पर काबिज एर्दोगन
टाइम की रिपोर्ट के अनुसार, तुर्की के काला सागर तट पर एक मजदूर वर्ग के परिवार में जन्मे एर्दोगन, 13 साल की उम्र में इस्तांबुल चले गए. यहीं से उन्होंने तुर्की की राजनीति में इस्लामी आंदोलन की नींव रखने वाले एर्बाकन की पार्टी के यूथ विंग में शामिल होकर अपना राजनीतिक सफर शुरू किया.
एर्दोगन साल 1994 में इंस्ताबुल के मेयर चुने गए, लेकिन 1997 की एक रैली में, इस्लामिक कट्टरपंथी को बढ़ावा देने वाली कविता पढ़ने के चलते उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद साल 2001 में उन्होंने अपनी पार्टी AKP बनाई और 14 मार्च 2003 को अपनी पार्टी के सहयोगी अब्दुल्ला गुल की जगह प्रधानमंत्री का पद संभाला. तभी से लेकर आज तक एर्दोगन सत्ता से बेदखल नहीं हुए.
इसके बाद एर्दोगन कुल तीन बार, 2003, 2007 और 2011 में प्रधानमंत्री चुने गए और 2014 तक सत्ता में रहे. इस बीच उन्होंने राष्ट्रपति पद को ताकतवर बनाने की भरपूर कोशिश की, इसके लिए कई विधेयक लाए और सफल भी रहे.
2017 में बदल दिया संविधान
10 अगस्त 2014 को एर्दोगन पहली बार प्रत्यक्ष रूप से हुए चुनाव में राष्ट्रपति चुने गए. यह अपने आप में एक अनोखा चुनाव था. चूंकि इससे पहले तुर्की के राष्ट्रपति वहां की संसद (ग्रैंड नेशनल असेंबली) के द्वारा चुने जाते थे, लेकिन इस बार जनता ने मतदान किया. यह उनकी लोकप्रियता का ही ही परिणाम था कि प्रधानमंत्री के बाद राष्ट्रपति की कुर्सी संभाली.
वहीं साल 2017 में हुए संवैधानिक जनमत संग्रह(Constitutional Referendum), जिसे एर्दोगन और उनकी पार्टी AKP (Justice and Development Party - AK Parti) ने लागू किया था. जिसकी मदद से एर्दोगन ने करीब 100 साल पुराने तुर्की के संविधान को बदल दिया. DW की रिपोर्ट के अनुसार इसके लिए तुर्की संविधान के 74 अनुच्छेदों में बदलाव किए गए.
तुर्की में यह पहली बार था, जब पूरी तरीके से प्रधानमंत्री पद को समाप्त कर दिया गया और सभी शक्तियां राष्ट्रपति को सौंप दी गई. जिसके चलते तुर्की में संसदीय प्रणाली के बजाय राष्ट्रपति प्रणाली के तहत चुनाव हुआ.
एर्दोगन ने खुद को बना लिया पॉवरफुल
इस Constitutional Referendum के तहत राष्ट्रपति ही देश का प्रमुख और सरकार का प्रमुख बन गया। राष्ट्रपति को ज्यादा कार्यकारी अधिकार भी मिल गए। जिसके बाद राष्ट्रपति चुनाव सीधे जनता द्वारा होने लगा, जहां जीतने के लिए 50% से ज्यादा वोट जरूरी माने गए. हालांकि इसमें एक नियम और था कि पहले दौर में अगर कोई 50% मत नहीं पाता, तो दूसरे दौर में शीर्ष दो उम्मीदवारों के बीच मुकाबला होगा.
इसके अलावा राष्ट्रपति को अब संसद भंग करने, डिक्री जारी करने, और न्यायपालिका पर प्रभाव डालने की शक्तियां मिल गई. राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 साल का होगा, लेकिन वह दो बार (कुल 10 साल) तक पद पर रह सकता है.
अब तुर्की की हालिया घटना इसी के इर्द गिर्द घूम रही है. चूंकि एर्दोगन पहले से ही तीन बार (साल 2018 और 2023) में भी राष्ट्रपति चुने जा चुके हैं, नए संविधान के तहत 2014 के राष्ट्रपति टर्म को काउंट नहीं किया गया. जिसके चलते संवैधानिक रूप से दो ही बार राष्ट्रपति हुए.
मेयर की गिरफ्तारी के बाद छिड़ी नई जंग
पिछले 22 साल से सत्ता पर काबिज एर्दोगन का नया रूप सामने खुलकर आ चुका है. उनके एक्शन बता रहे हैं कि वह किसी भी कीमत पर, अपने समकक्ष किसी प्रतिद्वंदी को खड़ा नहीं होने देंगे. एर्दोगन के आदेश के बाद, इस्तांबुल के मेयर इकरम इमामोअलु को विद्रोहियों के समर्थन और भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है.
गिरफ्तारी के बाद से ही तुर्की की सड़कों पर भारी विरोध प्रदर्शन जारी है, पुलिस बल द्वारा रबर बुलेट, आंसू गैस के गोले और पेपर स्प्रे का इस्तेमाल किया जा रहा है. प्रदर्शन में शामिल सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. फिर भी एर्दोगन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन रूकने का नाम नहीं ले रहा है. पर एर्दोगन भी पीछे हटने वाले नहीं है. अपने हालिया बयान में उन्होंने, प्रदर्शनकारियों को स्ट्रीट आतंकी कहा है.
वहीं दूसरी ओर, मेयर इमामोअलु साल 2028 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं. इमामोअलु की गिरफ्तारी भी ऐसे वक्त में हुई है, जब पिछले रविवार को विपक्षी रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में नामित किए जाने की उम्मीद थी.
इस तरह विपक्षी चेहरे के दमन के चलते एर्दोगन को तानाशाह कहा जाने लगा है, इससे पहले अल जजीरा की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 में इटली के तत्कालीन पीएम ने भी एर्दोगन को तानाशाह कहा था.
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