क्या सचमुच आतंकियों जितनी खतरनाक है भारत की CPI-M, अमेरिकी रिपोर्ट में दावा

विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में वामपंथी आंदोलन का बड़ा चेहरा माना जाने वाली पार्टी CPI-M  को दुनिया के सबसे खतरनाक चरमपंथी संगठनों की सूची में रखा गया है. हालांकि भारत में इसकी राजनीतिक शाखा भी मौजूद है. इसके बावजूद अमेरिकी रिपोर्ट में राजनीतिक दलों को शामिल क्यों किया गया, इसका जवाब जानने के लिए देखें आगे की कहानी-  

Last Updated : Nov 6, 2019, 07:14 PM IST
    • आंकड़ों के आधार पर बताया गया CPI-M खतरनाक
    • कब और क्यों अलग हुए लेफ्ट के दो धड़े ?
    • चरमपंथी संगठनों की लिस्ट में राजनीतिक पार्टी भी
    • क्या अमेरिका चल रहा है कोई चाल
क्या सचमुच आतंकियों जितनी खतरनाक है भारत की CPI-M, अमेरिकी रिपोर्ट में दावा

नई दिल्ली: बंदूक हो या राजनीति CPI-M ने भारत में व्यवस्था परिवर्तन के लिए हमेशा संघर्ष किया है. कुछ लोग इसे बुरा कहते हैं तो कुछ लोग इन्हें अपना तारणहार समझते हैं. लेकिन अमेरिकी रिपोर्ट- Press review ने दल को खूंखार चरमपंथियों की लिस्ट में नामित कर दिया है. इस रिपोर्ट में CPI-M को छठा सबसे खतरनाक संगठन करार दिया है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारत इस उग्रवादी घटनाओं से बुरी तरह से प्रभावित होने वाला चौथा देश है, जहां इस तरह की घटनाएं बहुत ज्यादा है. रिपोर्ट में अकेले जम्मू कश्मीर में 57 फीसदी से ज्यादा चरमपंथी घटनाओं के रिकॉर्ड मिले हैं.

आंकड़ों के आधार पर बताया गया CPI-M खतरनाक  

अमेरिका की स्वायत संस्था प्रेस रिव्यू ने कुछ रिपोर्ट इकठ्ठे किए जिसमें भारत की रिएक्शनरी पार्टी और लेफ्ट की मजबूत आवाज सीपीआई-माओ को उग्रवादी संगठनों के लाइन में ला खड़ा किया. अमेरिकी विदेश मंत्रालया के जारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में सीपीआई-माओ 177 चरमपंथी घटनाओं में सम्मिलित रही और कम से कम 311 लोगों की जान तक चली गई. हालांकि, गृह मंत्रालय के आंकड़े इससे कुछ अलग हैं पर एक ही तस्वीर बयान कर रहे हैं. गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पार्टी 240 हत्या और 833 घटनाओं में किसी न किसी तरह नामित हुई है. 

चरमपंथी संगठनों की लिस्ट में राजनीतिक पार्टी भी

अमेरिकी रिपोर्ट में CPI-M को जिन चरमपंथी संगठनों के साथ रखा गया है उनमें आफगानिस्तान का तालिबान, ईराक और सीरिया का इस्लामिक स्टेट, अफ्रीका का अल शबाब, अफ्रीका में बोको हराम और फिलीपिंस की CPP यानी कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ फिलीपींस शामिल है. अमेरिका के इस रिपोर्ट में विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की राजनीतिक पार्टी को आतंकी और उग्रवादी संगठनों की श्रेणी में रखना कितना सही है, ये तो अमेरिकी विदेश मंत्रालय ही जाने. 

क्या अमेरिका चल रहा है कोई चाल ?

सीपीआई-माओ भारत में लेफ्ट की वो पार्टी है जो चीन के माओ जेडोंग विद्रोह के सिद्धांतों पर चलती आई है. पार्टी रूस के लेनिनवादी सिद्धांत और विचारों को न मानते हुए चीन के संघर्षशील उग्रवादी रवैये को अपना मूल मानती है. वहीं अमेरिका जिसका विरोध लेफ्ट की तमाम पार्टियां या यूनियन करते आए हैं, इन दलों से खार खाया हुआ रहता है. लेफ्ट या कोई भी वामपंथी संगठन अमेरिका के पूंजीवादी विचारधारा का मुखर हो कर विरोध करते हैं. जाहिर है अमेरिका का कोई न कोई रिएक्शन इसपर होगा ही. कहा तो यह भी जाता है कि अमेरिका रूस के मार्क्स, लेनिन और स्टालिन या चीन के माओ जेडोंग के विचारों से प्रभावित किसी भी पार्टी के अस्तित्व से नाखुश रहता है. हाल के दिनों में तो कम्युनिस्टों के सबसे बड़े गढ़ों में से एक रहे चीन से भी अमेरिका की नहीं जमती. ऐसे में इन दलों के खिलाफ प्रोपांगंडा चलाने में भी यह बलशाली देश पीछे नहीं हटता. माना तो ऐसा ही जा रहा है.

कब और क्यों अलग हुए लेफ्ट के दो धड़े ?

भारत में CPI-M का उदय 1964 में अपनी गार्जियन पार्टी CPI से थोड़े-बहुत विचारधाराओं से विवाद के बाद अलग होने के बाद हुआ. इसे मार्क्स-लेनिन के विचारधाराओं और सिद्धांतों पर चलने वाली पार्टी के रूप में देखा जाता है. अस्तित्व में आते ही पार्टी ने संघर्ष की राजनीति को नए सिरे से लागू करना शुरू किया. नए सदस्य जोड़े, सरकारों का घेराव किया अलग-अलग मुद्दों पर, जागरूकता फैलाने की कोशिश भी की. पार्टी की एक विशेषता यह भी है कि राजनीतिक भागीदारी को सुनिश्चित कराने और दल लोगों को जागरूक करने के लिए इस्तेमाल की जानी वाली पारंपरिक तरीके जैसे कि नुक्कड़ नाटक, डफली बजाकर, गीत के माध्यम से यह आम लोगों तक बहुत तेजी से पहुंचते हैं. शायद यहीं कारण है कि पार्टी ने बहुत जल्द देश के केरल, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अपनी अच्छी पैठ बना ली. केरल और बंगाल में तो पार्टी लंबे समय से सरकार में है.

क्या है CPI और CPI-M  में मुख्य विवाद

दरअसल, CPI और CPI-M का बिखराव पार्टी के अंदर ही दो गुटों या यूं कहें कि दो विचारधाराओं के बीच का अंतर्संघर्ष के कारण हुआ. CPI-M का मानना था कि लेफ्ट कही जाने वाली पार्टी में भी एक दक्षिणपंथी विचारधारा बन गई थी. सीपीआई-एम का मानना था कि पार्टी में वर्ग-संघर्ष को लेकर नोंक-झोंक होने लगी थी. पुरानी या Parent party CPI सोवियत विचारधाराओं पर आधारित थी जो थोड़ा Right wing  कहा जाने लगा था. वहीं चीन के माओ जेडोंग की विचारधाराओं से प्रभावित पार्टी CPI-M एक उग्र राजनीतिक विचारधारा वाली पार्टी मानी जाती है जो वर्ग संघर्ष के लिए हिंसा को भी सही ठहराती है. फिर चाहे वह अपने हक के लिए नक्सली हिंसा की ही बात क्यों न हो.

लेकिन गांधीवादी सिद्धांतों पर चलने वाली भारतीय व्यवस्था में हिंसा का कोई स्थान नहीं. ऐसा कई वामपंथी धड़े स्वीकार कर चुके हैं. CPI-M को भी आहिस्ता आहिस्ता यह बात समझ में आ जाएगी. लेकिन वर्ग संघर्ष में विश्वास रखने वाली पार्टी किसी भी सूरत में आतंकवादी नहीं हो सकती. यह तो तय है. 

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