रूस से बढ़ते समुद्री खतरे को देखते हुए NATO सदस्य डेनमार्क ने 26 नए नौसैनिक जहाज तैयार करने का बड़ा ऐलान किया है. डेनमार्क की सरकार इस प्रोजेक्ट पर लगभग 4 अरब क्रोन (करीब ₹5,100 करोड़) खर्च करेगी. ये जहाज समुद्री निगरानी, तेल रिसाव नियंत्रण और अंडरसी केबल्स की सुरक्षा जैसे कामों में लगेंगे. साथ ही, ड्रोन और सोनार सिस्टम भी तैनात किए जाएंगे ताकि समुद्र में हो रही संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखी जा सके. यह फैसला नॉर्ड स्ट्रीम गैस पाइपलाइन में हुए कथित रूसी तोड़फोड़ के बाद लिया गया है.
डेनमार्क बनाएगा 26 नौसैनिक जहाज
डेनमार्क सरकार ने ऐलान किया है कि वह 26 नए नौसैनिक जहाजों का निर्माण करेगी, जिनका उपयोग समुद्री गश्त, तेल रिसाव रोकथाम और अंडरसी केबल्स की सुरक्षा के लिए किया जाएगा. डेनमार्क के रक्षा मंत्री ट्रोल्स लुंड पौलसन ने बताया कि इस प्रोजेक्ट पर करीब 4 अरब क्रोन ($614 मिलियन) यानी ₹5,100 करोड़ की लागत आएगी.
इस परियोजना का उद्देश्य डेनमार्क के समुद्री इलाकों को सुरक्षित करना और रूसी गतिविधियों पर नजर रखना है. जहाजों की डिजाइन और निर्माण प्रक्रिया में NATO सहयोगियों के साथ मिलकर काम किया जाएगा, जिससे रणनीतिक भागीदारी भी मजबूत होगी.
ड्रोन और सोनार सिस्टम भी होंगे शामिल
इस प्रोजेक्ट के तहत केवल जहाजों से ही नहीं, बल्कि डेनमार्क आधुनिक निगरानी तकनीक के तौर पर ड्रोन और सोनार सिस्टम भी शामिल करेगा. इनका इस्तेमाल समुद्र के भीतर हो रही संदिग्ध गतिविधियों की पहचान और निगरानी के लिए किया जाएगा.
डेनमार्क सरकार का कहना है कि इससे ‘शैडो फ्लीट’ जैसे रूसी जहाजों पर कड़ी नजर रखी जा सकेगी, जो प्रतिबंधों को दरकिनार कर तेल, हथियार और अन्य सामग्री एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं.
रूस की समुद्री धमकियों से निपटने की तैयारी
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बाल्टिक सागर क्षेत्र में पावर केबल्स, गैस पाइपलाइनों और टेलीकॉम लिंक्स में आई गड़बड़ियों ने क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. हाल ही में, नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन के साथ हुई तोड़फोड़ ने समुद्री निगरानी की आवश्यकता को और बढ़ा दिया.
बता दें, डेनमार्क का यह कदम NATO की साझा रणनीति का हिस्सा है, जिसमें समुद्री निगरानी को मजबूत किया जा रहा है. फ्रिगेट्स, एयरक्राफ्ट्स और नेवल ड्रोन पहले से ही क्षेत्र में तैनात हैं.
समुद्री केबल्स को नुकसान पहुंचाता है रूस
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि रूस की रणनीति समुद्री केबल्स को निशाना बनाकर पूरे क्षेत्र को अस्थिर करने की है. ऐसे में अंडरसी केबल्स और पाइपलाइनों की सुरक्षा अहम हो जाती है, क्योंकि ये ऊर्जा और संचार का मूल आधार हैं.
डेनमार्क की प्लानिंग न केवल रूसी एक्टिविटी की निगरानी ही नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण है. तेल रिसाव जैसी घटनाओं पर तुरंत प्रतिक्रिया देना इन जहाजों का एक अहम उद्देश्य होगा.
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