नई दिल्लीः कोरोना को लेकर चीन संदेह के घेरे में है ही, लेकिन इस बीच भी वह अपनी विस्तारवादी नीति को नहीं भूला है. धीरे से एक शिगूफा छेड़कर उस पर सियासी रुख बनाना चीन की पुरानी आदत है और इस बार भी इसने ऐसा ही किया है.
चीन चीन के सरकारी टीवी चैनल चाइना ग्लोबल टेलीविजन नेटवर्क (सीजीटीएन) की आधिकारिक वेबसाइट ने माउंट एवरेस्ट की कुछ तस्वीरें पोस्ट की हैं. इसके साथ में ही इसने एक ट्वीट भी किया है. इस ट्वीट में चीन के मंसूबे साफ झलक रहे हैं कि वह पूरे ऐवरेस्ट पर अपनी नजरें गड़ाए बैठा है.
China trying to consolidate position in Tibet by highlighting Mt. Everest on Tibetan side, says expert
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— ANI Digital (@ani_digital) May 10, 2020
यहां देखिए, ट्वीट में क्या लिखा
चाइना ग्लोबल टेलीविजन नेटवर्क (सीजीटीएन) की वेबसाइट ने अपने ट्वीट में लिखा, शुक्रवार को माउंट चोमोलुंगमा पर सूर्य की रोशनी का शानदार नजारा. इसे माउंट एवरेस्ट भी कहा जाता है. दुनिया की यह सबसे ऊंची चोटी चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में स्थित है. इस ट्वीट के जरिए चीन पूरे माउंट ऐवरेस्ट को अपना बता रहा है. इसका नेपाल में विरोध हो रहा है.
In pictures: An extraordinary sun halo was spotted on May 1 in the skies over Mount #Qomolangma, the world's highest peak located on the China-Nepal border pic.twitter.com/TMEY5aT4yl
— CGTN (@CGTNOfficial) May 10, 2020
नेपाल जता रहा है नाराजगी
चीन द्वारा माउंट एवरेस्ट को चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में स्थित बताए जाने पर नेपाल ने नाराजगी जाहिर की है. नेपाल में चीन के खिलाफ आवाज उठ रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक, 1960 में चीन और नेपाल ने चल रहे सीमा विवाद के समाधान के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.
इस समझौते के हिसाब से माउंट एवरेस्ट को दो हिस्सों में बांटा जाएगा. समझौते के मुताबिक माउंट एवरेस्ट का दक्षिणी हिस्सा नेपाल जबकि उत्तरी हिस्सा तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के पास रहेगा.
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आधा चीन और आधा नेपाल का है ऐवरेस्ट
जानकारों के मुताबिक चीन और नेपाल नें 1960 में सीमा विवाद के समाधान के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. सीजीटीएन के ट्वीट के बारे में जानकार कहते हैं कि चीन की विस्तारवादी नीति के तहत यह कोई नई बात नहीं है. चीन तिब्बत और एवरेस्ट पर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहा है.
एवरेस्ट बेहद दुर्गम है और चीन की तरफ से इसका बहुत कम इस्तेमाल होता है. वहां से पर्वतारोही चढ़ाई नहीं करते हैं. उस तरफ से खड़ी चढ़ाई है और वीजा मिलना भी एक समस्या है.