नई दिल्ली: पहले गिलगिट-बलूचिस्तान इलाके में आजादी की आवाज को दबाना फिर खाइबर पख्तुनख्वा में पश्तूनों पर किए जा रहे अत्याचार और अब अहमदिया मुस्लिमों से हिंसक बर्ताव करना, यह सब दिखाता है कि पाकिस्तान में बगावत की आवाज को कैसे दबा दिया जाता है. दरअसल पिछले दिनों पाकिस्तान के लाहौर से 400 किमी दूर किसी एक कस्बे में पंजाब प्रांत के अधिकारियों ने 70 साल पुरानी एक अहमदिया मस्जिद का विध्वंस कर दिया.
इमरान के शासनकाल में कहीं नहीं न्याय
अहमदिया समुदाय के नेता सलीमुद्दीन ने ट्वीट कर ये कहा कि लाहौर से करीब 400 किलोमीटर दूर बहावलपुर जिले के हासिलपुर गांव में अहमदियों की पूर्वजों की प्राचीनतम मस्जिद को ढ़ाह दिया गया. दिलचस्प बात है कि ये काम सरकारी बाबुओं ने सरकार के आदेश पर किया. सलीमुद्दीन ने आगे बताया कि पुलिस का बर्ताव इतना गैर-जिम्मेदाराना था कि मस्जिद ढ़ाहे जाने वाले लोगों के खिलाफ कोई कारवाई करने की बजाए उन्होंने एक अहमदिया मुस्लिम को ही गिरफ्तार कर लिया. उन्होंने यह भी कहा कि जिस अहमदिया धर्म के प्रतीक को ध्वस्त किया गया वह इबादतखाना समुदाय के मालिकाना जमीन पर ही बनी थी.
कौन हैं अहमदिया मुस्लिम ?
बता दें कि ये वहीं अहमदिया हैं जिनके समुदाय से पैगम्बर का अंतिम दूत गुलाम अहमद को माना जाता है. हालांकि, इस्लाम इस बात को खारिज करता है और मानता है कि खुदा के भेजे गए पैगम्बर मोहम्मद ही अंतिम दूत थे. अहमदियों के साथ पाकिस्तान में बड़ा गलत बर्ताव किया जाता है. ये न सिर्फ सरकार करती है बल्कि वहां के बहुसंख्यक इस्लाम धर्म के लोग भी. दरअसल, इस्लामिक मुल्लों और मौलवियों का मानना है कि अहमदी मु्स्लिम हैं ही नहीं. शायद यहीं कारण है कि 1974 में पाकिस्तान की संसद में संविधान संशोधन कर के इन्हें गैर-मुस्लिम का दर्जा दे दिया गया. इतना ही नहीं पाक में अहमदियों के रीति-रिवाजों को इस्लाम धर्म के तौहीन के रूप में देखा जाता है. यहां तक की अहमदियों के सऊदी अरब के मक्का-मदीना जैसी धार्मिक यात्राओं पर जाने की भी पाबंदी लगा दी गई है.
अहमदिया आंदोलन से बदली तस्वीर
अहमदिया आंदोलन के बारे में आपने भी सुना होगा. 1889 में गुरूदासपुर के कादियान कस्बे में इस्लाम के अंदर ही गुटबाजी होने लगी जिसके बाद अहमदिया मुस्लिम का उदय होता है. 1891 तक गुलाम अहमद खुद को पैगम्बर की ओर से भेजे गए मसीहा ऐलान कर देते हैं. देखा जाए तो अहमदिया मु्स्लिम समुदाय के लोगों की रीति-रिवाज, पहनावा-ओढ़ावा, कुरान शरीफ, बातचीत के लहजे में इस्लाम धर्म के जैसे ही हैं. सिर्फ एक मान्यता कि पैगम्बर के आखिरी दूत गुलाम अहमद थे, यह धार्मिक मान्यता ही दोनों धर्मों को अलग-थलग कर देता है. इस मुख्य बिंदु के अलावा भी कुछ ऐसे धार्मिक मान्यताएं हैं जिसके चलते इस्लाम धर्मी अहमदियों का घोर विरोध करते हैं. इतना ही नहीं ये दबाव भी बनाते हैं कि अहमदिया खुद को मु्स्लिम न कहा करें.
अल्पसंख्यकों की दुश्मन है इमरान सरकार
पाकिस्तान में तकरीबन 40 लाख लोग अहमदिया मुस्लिम जो विश्व में सबसे अधिक है. बावजूद इसके ये पाक में अल्पसंख्यक ही माने जाते हैं. पाकिस्तान की इमरान सरकार इन अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करते नजर आ रही है. अहमदी कार्यकर्ता ने इमरान सरकार की आलोचना करते हुए ट्वीट किया कि "पाकिस्तान की सरकार का यह एक शर्मनाक रवैया है. कहां हैं आपका नया पाकिस्तान ? क्या यहीं हैं नया पाकिस्तान ? शर्म आनी चाहिेए आपको इमरान खान." जिस तरह से पाकिस्तान की हालिया सरकार के अंदर अल्पसंख्यकों की आवाज को दबाया जा रहा है और उन पर अत्याचार किया जा रहा है, इसके साइड-इफेक्ट्स जल्द देखने को न मिल जाएं.