Europe Strategy Against Russia: अमेरिका ने यूरोप विरोधी रुख अपना लिया है, जिसके बार यूरोपीय देश भी एकजुटता दिखा रहे हैं. रूस से लड़ने के लिए यूरोप के छोटे-छोटे देश साथ आ रहे हैं. ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है, लेकिन इस बार यूरोप का साथ 'बिग ब्रदर' यानी अमेरिका नहीं दे रहा है. यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ हुई तल्खी के बाद से ही ट्रंप यूरोप के देशों से नाराज हैं. चर्चा है कि अमेरिका जल्द ही NATO भी छोड़ सकता है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि बिना अमेरिका के यूरोप रूस से लोहा कैसे लेगा?
जेलेंस्की को समर्थन, बेल्जियम में बैठक
जैसे ही यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बीच ओवल ऑफिस में बहस हुई, सभी यूरोपीय देश एकजुट हो गए. यूरोप के देशों ने तुरंत जेलेंस्की और यूक्रेन को समर्थन दे दिया. जेलेंस्की का यूरोप लौटने के बाद विराट स्वागत भी हुआ, ऐसा लगा मानो वे जंग जीत गए हों. इसके बाद बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में एक आपातकालीन वार्ता बुलाई गई. इसमें यूरोपीय देशों के कई प्रमुख नेता शामिल हुए और बड़े फैसले लिए.
यूरोप के देशों ने क्या फैसले लिए?
ब्रुसेल्स में हुई मीटिंग में यूरोपियन यूनियन ने ये मान लिया कि अमेरिका अब रूस के खिलाफ हो रही जंग में उनका साथ नहीं देगा. लिहाजा, अब उन्हें स्वयं ही अपनी रक्षा करनी होगी. इसके लिए रक्षा बजट में इजाफा करना होगा. इन देशों ने संयुक्त रूप से कहा कि बयान में कहा है कि उन्होंने सभी सदस्य देशों में राष्ट्रीय स्तर पर सैन्य खर्च को सुविधाजनक बनाने के यूरोपीय कमीशन से नए तरीके खोजने का निवेदन किया. अलजजीरा की रिपोर्ट बताती है कि यूरोपियन यूनियन का अनुमान है कि रक्षा के लिए 650 बिलियन यूरो ($702bn) अलग से रखे जा सकते हैं.
फ्रांस का न्यूक्लियर छतरी बनाने का सुझाव
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने न्यूक्लियर अंब्रेला बनाने का सुझाव दिया. फ्रांस के पास न्यूक्लियर हथियारों की ताकत है, मैक्रों चाहते हैं कि ये ताकत पूरे यूरोप के काम आए और सभी देशों को बचाकर रखे. गौर करने वाली बात ये है कि पूरे यूरोप में केवल फ्रांस और यूके के पास ही न्यूक्लियर वेपन हैं, ऐसे में सभी देश इनकी छत्रछाया में सुरक्षित रहने का प्लान बना सकते हैं.
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