कैसे जिन्ना के विश्वासघात से खड़ी हुई BLA! जानें- क्यों बलूचिस्तान के लोग मानते हैं पाकिस्तान को दुश्मन और क्या है मांग?

Muhammad Ali Jinnah Balochistan History: बलूचिस्तान, पाकिस्तान से आजादी चाहता है. मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा कलात नामक रियासत को धोखा देकर पाकिस्तान में मिलाना ही बलूच लोगों द्वारा आजादी के लिए भयंकर लड़ाई का एक कारण है.

Written by - Nitin Arora | Last Updated : Mar 12, 2025, 01:49 PM IST
कैसे जिन्ना के विश्वासघात से खड़ी हुई BLA! जानें- क्यों बलूचिस्तान के लोग मानते हैं पाकिस्तान को दुश्मन और क्या है मांग?

How Balochistan Liberation Army BLA born: पाकिस्तान के चार प्रांतों में सबसे बड़े और सबसे कम आबादी वाले बलूचिस्तान ने शायद ही कभी शांति देखी होगी और ना ही यहां विकास हो पाया. 11 मार्च को, पाकिस्तान से अलग होने के लिए लड़ रहे बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) के आतंकवादियों ने एक ट्रेन को हाईजैक कर लिया और सुरक्षाकर्मियों सहित 100 यात्रियों को बंधक बना लिया. लेकिन BLA के विद्रोह की मुख्यतः वजह क्या है? बता दें कि पाकिस्तान के संस्थापक पिता मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा बलूच लोगों के साथ किया गया विश्वासघात ही विद्रोह की जड़ है.

1948 से ही बलूच राष्ट्रवादी पाकिस्तानी राज्य के खिलाफ हथियार उठाते रहे हैं. बलूचिस्तान ने 1958-59, 1962-63, 1973-77 में हिंसक स्वतंत्रता आंदोलन के दौर देखे हैं और सबसे ताजा आंदोलन का दौर 2003 से चल रहा है. इसी दिशा में 11 मार्च को BLA के उग्रवादियों ने क्वेटा-पेशावर जाफर एक्सप्रेस को रोक लिया और सैकड़ों यात्रियों को बंधक बना लिया. बुधवार को दूसरे दिन बलूच विद्रोहियों ने अभी भी सौ से ज्यादा लोगों को बंधक बना रखा है.

बलूचिस्तान एक सूखा क्षेत्र है, लेकिन खनिज-समृद्ध प्रांत है. यहां के लोग ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान की पंजाब-प्रधान राजनीति द्वारा दूर महसूस करते रहे हैं. बलूच लोगों को आर्थिक रूप से प्रताड़ित किया जाता रहा है, जबकि उनकी भूमि की खनिज संपदा को संघीय सरकार को निधि देने के लिए निकाला जाता रहा है.

बलूच लोगों के गुस्से का एक लक्ष्य ग्वादर बंदरगाह है जिसे पाकिस्तान चीन की सहायता से विकसित कर रहा है. चीनी इंजीनियरों पर बलूच उग्रवादी समूहों द्वारा कई बार हमला किया गया है. ग्वादर बंदरगाह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का हिस्सा है.

इंटरनेशनल अफेयर्स रिव्यू में छपे एक लेख के अनुसार, 'बलूच राष्ट्रवादी आंदोलन का नेतृत्व बहुत ज्यादा बिखरा हुआ है. नतीजतन, बलूच राष्ट्रवादी आंदोलन अपने लक्ष्यों या अपनी रणनीति में एकतापूर्ण नहीं है.'

सशस्त्र विद्रोह का नवीनतम दौर 2004 में शुरू हुआ और 2006 में पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रभावशाली बलूच आदिवासी नेता अकबर खान बुगती की हत्या के बाद इसमें तेजी आई. बुगती अधिक स्वायत्तता, संसाधन नियंत्रण और बलूचिस्तान के प्राकृतिक गैस राजस्व में उचित हिस्सेदारी की मांग कर रहे थे.

इससे पहले 1970 के दशक में बलूच उग्रवाद का सबसे खूनी और सबसे लंबा दौर देखा गया था.

बांग्लादेश कनेक्शन और 1970 के दशक का बलूच आंदोलन
1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान) की स्वतंत्रता ने बलूचिस्तान में नेशनल अवामी पार्टी के नेताओं से अधिक स्वायत्तता की मांग को जन्म दिया.

प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो द्वारा मांगों को खारिज किए जाने के बाद विरोध प्रदर्शन बढ़ गए.

यह 1973 में था जब भुट्टो ने अकबर खान बुगती की बलूचिस्तान प्रांतीय सरकार को बर्खास्त कर दिया. इसी बहाने से बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान की घोषणा की गई. जहां इराकी दूतावास में हथियारों का एक जखीरा मिला है जो बलूच विद्रोहियों के लिए था.

इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर सशस्त्र विद्रोह हुआ जो 1977 तक चार साल तक चला. इसे चौथे बलूचिस्तान संघर्ष के रूप में जाना जाता है.

रिपोर्टों के अनुसार, मर्री, मेंगल और बुगती आदिवासी प्रमुखों के नेतृत्व में लगभग 55,000 बलूच आदिवासियों ने 80,000 पाकिस्तानी सैन्य कर्मियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. पाकिस्तानी वायु सेना ने गांवों पर बमबारी की, जिसमें हजारों बलूच नागरिक मारे गए.

संघर्ष इस स्तर तक बढ़ गया कि ईरान ने बलूच राष्ट्रवाद के अपने बलूच क्षेत्र में फैलने के डर से पाकिस्तान को सैन्य सहायता प्रदान की.

1977 में जनरल जिया-उल-हक ने सैन्य तख्तापलट में भुट्टो को हटा दिया. आदिवासियों को माफी दिए जाने और बलूचिस्तान से सैन्य वापसी के बाद सशस्त्र संघर्ष समाप्त हो गया.

बलूचिस्तान को कैसे धोखा दिया गया, पाकिस्तान में मिला दिया गया
हालांकि, बलूचिस्तान विद्रोह का मूल कारण तब शुरू हुआ जब 1947 में पाकिस्तान को भारत से अलग कर दिया गया.

बलूचिस्तान का क्षेत्र चार रियासतों के रूप में अस्तित्व में था- कलात, खारन, लास बेला और मकरान.

उनके पास या तो भारत में शामिल होने पाकिस्तान में विलय करने या अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने का विकल्प था. मुहम्मद अली जिन्ना के प्रभाव में तीन राज्य पाकिस्तान में विलय हो गए.

हालांकि, खान मीर अहमद यार खान के नेतृत्व में कलात, जिसे कलात के खान के रूप में भी जाना जाता है, उसने स्वतंत्रता का विकल्प चुना.

कलात के खान ने 1946 में मुहम्मद अली जिन्ना को ब्रिटिश क्राउन के समक्ष अपने मामले का प्रतिनिधित्व करने के लिए अपना कानूनी सलाहकार नियुक्त किया था.

4 अगस्त 1947 को दिल्ली में एक बैठक में, जिसमें कलात के खान लॉर्ड माउंटबेटन और जवाहरलाल नेहरू शामिल थे, जिन्ना ने खान के स्वतंत्रता के फैसले का समर्थन किया. जिन्ना के आग्रह पर, खारान और लास बेला को कलात के साथ मिलाकर पूर्ण बलूचिस्तान बनाया जाना था.

कलात ने 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता की घोषणा की. स्वतंत्र संप्रभु राज्य होने के बावजूद 12 सितंबर के ब्रिटिश ज्ञापन में कहा गया कि कलात एक स्वतंत्र राज्य की अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों को नहीं निभा सकता.

Baloch Nationalism: Its Origin and Development up to 1980 में ताज मोहम्मद ब्रेसेग लिखते हैं, 'अक्टूबर 1947 में अपनी बैठक में जिन्ना ने खान से कलात के पाकिस्तान में विलय में तेजी लाने के लिए कहा.'

खान ने कलात पर जिन्ना के दावे को खारिज कर दिया और भारत सहित कई तिमाहियों से मदद मांगी. कहीं से भी मदद न मिलने पर उन्होंने हार मान ली.

26 मार्च को पाकिस्तानी सेना बलूच तटीय क्षेत्र में चली गई और खान को जिन्ना की शर्तों पर सहमत होना पड़ा.

हालांकि कलात के खान ने विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए, लेकिन उनके भाई, प्रिंस अब्दुल करीम ने 1948 में पाकिस्तान के खिलाफ पहले सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया. हालांकि विद्रोह को कुछ ही समय में दबा दिया गया, लेकिन इसने बलूच राष्ट्रवाद के बीज बो दिए.

इसलिए, 226 दिनों तक स्वतंत्र रहने के बाद, बलूचिस्तान को पाकिस्तान में मिला दिया गया, लोगों की इच्छा से नहीं, बल्कि जिन्ना के विश्वासघात और इस्लामाबाद की सैन्य शक्ति के कारण. 75 साल पहले का यह विश्वासघात और लोगों तथा क्षेत्र के संसाधनों का शोषण बलूच लोगों के सशस्त्र प्रतिरोध की जड़ में बना हुआ है. बता दें कि समय समय पर पाक के खिलाफ बलूचिस्तान ने जंग छेड़ी. इसी दिशा में BLA 2000 के दशक की शुरुआत में बलूचिस्तान के एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना के इरादे से उभरा.

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