अचानक मान गए इमरान खान, ‘आजादी मार्च’ को लेकर लिया ये बड़ा फैसला

दावा किया गया है कि इमरान खान को अपना ‘आजादी मार्च’ अचानक खत्म करने के लिए मना लिया गया. क्या है पूरा माजरा? इस रिपोर्ट में जानिए

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : May 28, 2022, 07:19 PM IST
  • इमरान खान को किसने राजी किया था?
  • इस्लामाबाद में धरना को लेकर खुलासा
अचानक मान गए इमरान खान, ‘आजादी मार्च’ को लेकर लिया ये बड़ा फैसला

नई दिल्ली: पाकिस्तान के एक पूर्व प्रधान न्यायाधीश, एक सेवानिवृत्त सैन्य जनरल और एक प्रमुख कारोबारी ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को राजी किया था कि वह अपनी पार्टी के लंबे मार्च के अंत में इस्लामाबाद में धरना का आयोजन नहीं करें. मीडिया की एक खबर में शनिवार को यह कहा गया.

25 मार्च को शुरू किया था ‘आजादी मार्च’

इमरान खान ने इस्लामाबाद में धरना देने की घोषणा के साथ देश में नए सिरे से चुनाव के लिए दबाव बनाने की खातिर अपना ‘आजादी मार्च’ 25 मार्च को शुरू किया था.

लेकिन बाद में उन्होंने इसे यह कहते हुए वापस ले लिया कि सरकार खुश होगी अगर वह अपने इस इरादे पर आगे बढ़ेंगे क्योंकि यह लोगों, पुलिस और सेना के बीच टकराव का कारण बन सकता है. इमरान खान के मार्च के बाद धरना नहीं देने की घोषणा से उनके समर्थकों और प्रतिद्वंद्वियों दोनों को हैरानी हुई.

इमरान खान को इसके लिए किसने मनाया?

‘डॉन’ अखबार की खबर के अनुसार एक चीज पर सब सहमत हैं - जिस तरह से यह सब समाप्त हुआ, कम से कम अभी के लिए, यह स्पष्ट संकेत देता है कि इसे किसने किया.

एक सूत्र के हवाले से खबर में कहा गया है कि जिन लोगों ने बीचबचाव किया उनमें एक पूर्व प्रधान न्यायाधीश, एक प्रमुख कारोबारी और एक सेवानिवृत्त जनरल शामिल थे. सूत्र ने कहा, ‘इमरान खान की जिद और इस तथ्य को देखते हुए कि उन्होंने मार्च धरना के लिए काफी तैयारी की थी, उन्हें मनाना आसान काम नहीं था.’

खबर के मुताबिक सुलह के घटनाक्रम का ब्योरा दिए बिना सूत्र ने कहा कि बुधवार देर रात और संभवत: गुरुवार तड़के तक बातचीत जारी रही. खान इस आश्वासन पर धरना आयोजित नहीं करने पर सहमत हो गए कि जून तक विधानसभाओं को भंग किए जाने और आम चुनाव के लिए तारीख की घोषणा की जाएगी.

इमरान खान ने दिया ये अल्टीमेटम

इमरान खान ने गुरुवार को प्रांतीय विधानसभाओं को भंग करने और आम चुनावों की घोषणा करने के लिए शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार को छह दिन की समयसीमा देते हुए आगाह किया कि अगर ‘आयातित सरकार’ ऐसा करने में विफल रही, तो वह ‘समूचे देश’ के साथ राजधानी लौटेंगे.

‘डॉन’ अखबार के अनुसार, आम धारणा यह है कि चीजों को नियंत्रण से बाहर होने से रोकने के लिए सेना को अंततः अपनी भूमिका निभानी पड़ी. पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल नईम खालिद लोधी ने कहा कि वह भी इससे सहमत हैं.

लोधी ने कहा, ‘अराजकता को रोकने और राजनीतिक स्थिरता की तलाश में सेना द्वारा सकारात्मक हस्तक्षेप की प्रबल संभावना है ताकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की प्रक्रिया शुरू हो सके.’

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