नई दिल्ली: भारत-चीन के बीच जो नया मामला है वह पौराणिक चिकित्सा पद्धति पर दावे को लेकर गहराता जा रहा है. दरअसल, आयुर्वेदिक पद्धति के अलावा भारत की एक और पद्धति है जौ बौध काल से ही इस्तेमाल किया जाता रहा है. इसका नाम है 'सोवा रिग्पा'. भारत में यह चिकित्सा पद्धति तकरीबन 2500 सालों से इस्तेमाल में लाया जाता है खासकर पहाड़ी और सर्द इलाकों में. इसी को लेकर भारत संयुक्त राष्ट्र की इकाई यूनेस्को के पास पहुंचा ताकि इसे "इंटेजिबल कल्चरल हेरिटेज ऑफ ह्यूमैनिटी" की सूची में शामिल करा सके. यह हुआ ही था कि चीन भी इस पद्धति पर अपना दावा लेकर पहुंच गया. चीन ने कहा कि यह चिकित्सा पद्धति चीन में अमल में लाई जाती है, इसलिए इस पर चीन का अधिकार है.
भारत सबूतों के सात यूनेस्को में फिर ठोकेगा दावा
भारत चीन के इस दावे को गलत साबित करने के लिए इस पद्धति के भारत से जुड़े होने के साक्ष्य जुटाने में लग गया है. भारत ने दावा किया कि वह यूनेस्को में जल्द ही इस पद्धति पर अपने सबूतों के साथ दावा करेगा और तब यूनेस्को इस पर भारत के अधिकार को मान्य मान ले. इसे लेकर भारत में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक में किसी संस्था या कमिटी को इसका जिम्मा दिए जाने का फैसला लिया गया. बैठक में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोवा रिग्पा स्थापित करने की भी मुहर लगी है, जो लेह लद्दाख में बनेगी और इसकी लागत तकरीबन 50 करोड़ तक हो सकती है.
बौधकाल से इस पद्धति का पहाड़ी इलाकों में प्रचलन
भारत में जम्मू कश्मीर के अलावा हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, लाहौल स्पीति, लद्दाख और अरूणाचल प्रदेश में इस उपचार पद्धति का इस्तेमाल अब भी खूब किया जाता है. पहाड़ी इलाकों में इस पद्धति में जड़ी-बूटी के इस्तेमाल से दवाईयां बनाई जाती है. यह एक अजूबा किश्म की चिकत्सा पद्धति है जिसमें चिकत्सक देख कर, छू कर और प्रश्न पूछकर ही बीमारी का इलाज कर लेते हैं. विशेषज्ञों का तो यहां तक दावा है कि यह पद्धति अस्थमा, कैंसर सहित कई गंभीर बीमरियों का इलाज कर पाने में सक्षम है. भारत में इसे बौधकाल के बाद इस्तेमाल में लाया जाने लगा था. बाद के दिनों में नागार्जुन, वागभट्ट और चरक ने इसका इस्तेमाल किया.
कुछ सिद्धांतों पर करता है काम
इस पद्धति के कुछ सिद्धांत भी हैं. सोवा रिग्पा से मानव शरीर के विकारों की प्रवृत्ति और भौतिक तत्वों में होने वाली समस्याओं का उपाय किया जाता है. यह मुख्य रूप से कुछ मूल सिद्धांत पर काम करता है. इलाज के लिए मन और शरीर पर जोर का विशेष महत्व, इलाज की पद्धति और बीमारी को ठीक करने के लिए दवाईयों का इस्तेमाल इस प्रक्रिया में शामिल है.
चिकित्सीय पद्धति सिखाने के लिए खोले जाएंगे संस्थान
भारत अब इसे लेकर गंभीर हो रहा है. आयुष मंत्रालय के एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि यह भारत की बहुत पुरानी चिकित्सा पद्धति रही है. भारत सरकार ने इसकी पढ़ाई के साथ-साथ चिकित्सीय प्रैक्टिस के लिए कानून बनाने की योजना बनाई है. देश के तीन शहरों लेह, सारनाथ और गंगटोक में एक-एक कॉलेज खोलने का आदेश दिया गया है. प्रत्येक कॉलेज में 15-15 स्टूडेंट्स का दाखिला दिया जाएगा.