भारत-पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध, जब एक फैसले की देरी ने बदल दी घाटी की तस्वीर

India Pakistan First War: अक्टूबर 1947 से दिसंबर 1948 के बीच लड़े गए इस पहले युद्ध ने कश्मीर को विवाद का केंद्र बना दिया और आज तक दोनों देशों के बीच तनाव का एक बड़ा कारण बना हुआ है.

Written by - Prashant Singh | Last Updated : Jun 22, 2025, 04:18 PM IST
  • बंटवारे के कुछ महीनों बाद ही कश्मीर में हुआ भीषण युद्ध
  • दोनों देशों के बीच पहले युद्ध की आग आज भी बरकरार
भारत-पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध, जब एक फैसले की देरी ने बदल दी घाटी की तस्वीर

India Pakistan First War in details: भारत और पाकिस्तान, दो ऐसे पड़ोसी देश जिनके इतिहास की जड़ें एक ही धरती से जुड़ी हुई हैं, लेकिन आजादी के बाद से ही उनके रिश्ते में कड़वाहट घुल गई. इस कड़वाहट की पहली और सबसे बड़ी वजह थी जम्मू-कश्मीर का मुद्दा, जिसने दोनों देशों को आजादी के ठीक बाद ही युद्ध के मैदान में ला खड़ा किया. यह कोई आम लड़ाई नहीं थी, बल्कि बंटवारे के उस दर्द की शुरुआत थी जिसने दोनों देशों के भविष्य को हमेशा के लिए तनाव की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया.

भारत-पाक बंटवारा और रियासतें
साल 1947 में जब भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली, तो उसके साथ ही देश का दुखद बंटवारा भी हुआ, जिससे भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग राष्ट्र बने. इस बंटवारे के समय भारत में 560 से ज्यादा रियासतें थीं, जिन्हें यह अधिकार दिया गया था कि वे या तो भारत में शामिल हों, पाकिस्तान में, या फिर स्वतंत्र रहें. ज्यादातर रियासतों ने अपनी भौगोलिक स्थिति और लोगों की इच्छा के मुताबिक फैसला ले लिया था, लेकिन जम्मू-कश्मीर का मामला कुछ अलग था, और इसी ने पहले युद्ध की नींव रखी.

कश्मीर की स्थिति और जनसंख्या
जम्मू-कश्मीर एक ऐसी रियासत थी जहां की ज्यादातर आबादी मुस्लिम थी, लेकिन वहां के राजा हरि सिंह एक हिंदू शासक थे. महाराजा हरि सिंह शुरुआत में कश्मीर को स्वतंत्र रखना चाहते थे. वह न तो भारत में शामिल होना चाहते थे और न ही पाकिस्तान में. उस समय 1941 की जनगणना के मुताबिक जम्मू-कश्मीर की कुल जनसंख्या करीब 40 लाख थी.
इस असमंजस के बीच, पाकिस्तान ने कश्मीर को अपने में मिलाने के लिए दबाव बनाना शुरू किया. प्रसिद्ध भारतीय इतिहासकार रामचंद्र गुहा के मुताबिक, पाकिस्तान ने पहले राजनीतिक दबाव डाला, फिर आर्थिक नाकेबंदी की और अंत में सैन्य बल का इस्तेमाल किया.

आक्रमण और भारत का हस्तक्षेप
अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान की तरफ से भारी संख्या में कबायली लड़ाकों ने जम्मू-कश्मीर पर हमला कर दिया. इन कबायली हमलावरों को पाकिस्तानी सेना का पूरा समर्थन हासिल था. वे लूटपाट और हिंसा करते हुए कश्मीर घाटी की ओर बढ़ने लगे. महाराजा हरि सिंह की सेना इतनी बड़ी तादाद में हमलावरों का सामना करने में नाकाम रही. जब स्थिति हाथ से निकलने लगी और कबाइली श्रीनगर के करीब पहुंच गए, तब महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद की गुहार लगाई.

तब भारत ने मदद देने के लिए एक शर्त रखी. जम्मू-कश्मीर को आधिकारिक तौर पर भारत का हिस्सा बनना होगा. 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसियन' यानी विलय पत्र पर दस्तखत कर दिए, जिसके बाद जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया. विलय पत्र पर दस्तखत होते ही भारत ने तुरंत अपनी सेना भेजी. भारतीय सेना ने श्रीनगर पहुंचकर कबाइली हमलावरों को खदेड़ना शुरू किया और उन्हें पीछे धकेल दिया.

संयुक्त राष्ट्र की भूमिका और युद्धविराम
जब भारतीय सेना कश्मीर के एक बड़े हिस्से को वापस हासिल कर चुकी थी, तब भारत ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में उठाया. संयुक्त राष्ट्र ने 1 जनवरी 1949 को युद्धविराम की घोषणा की. इस युद्धविराम के बाद, जहां भारतीय और पाकिस्तानी सेनाएं थीं, वहीं नियंत्रण रेखा यानी Line of Control- LoC बन गई, जिसने जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया. एक हिस्सा भारत के नियंत्रण में आया और दूसरा पाकिस्तान के.

आज भी LoC पर तनाव बना रहता है और यह युद्ध दोनों देशों के इतिहास में एक कड़वी याद बनकर दर्ज है. इस युद्ध ने दोनों देशों को एक ऐसे रास्ते पर ला खड़ा किया, जहां विश्वास की कमी और बार-बार होने वाले संघर्ष उनके रिश्तों का हिस्सा बन चुके हैं.

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