America-Iran Nuclear Deal: अमेरिका ने 15 मार्च से हूती विद्रोहियों के खिलाफ एक्शन शुरू किया और ईरान को सीधी चेतावनी दी थी कि ईरान हूतियों का समर्थन करना बंद करे वरना इसका खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहे. इसी कड़ी में ट्रंप ने ईरान के समक्ष परमाणु समझौते का प्रस्ताव भी रखा था. लेकिन तमाम अमेरिकी चेतावनी के बावजूद ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामनेई ने झुकने से इनकार कर, अमेरिकी परमाणु समझौते के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. जिसके बाद से मिडिल ईस्ट मे एक नए सिरे से युद्धक सरगर्मी देखने को मिल रही है.
अमेरिका ने इजरायल के साथ मिलकर संयुक्त हवाई अभ्यास शुरू कर दिया है, जिसमें अमेरिकी बी-52 बमवर्षक विमान भी शामिल है. जिसका सीधा उद्देश्य, ईरान के परमाणु सुविधाओं को पूरी तरह ध्वस्त करने की चेतावनी है.
इजरायल को मिला ग्रीन सिग्नल
जब इजरायल ने गाजा में सीजफायर को तोड़ते हुए बमबारी शुरू की, तो उससे पहले ट्रंप से बातचीत की थी. जिसको लेकर ट्रंप ने इजरायल को खूली छूट दे दी. अब अमेरिका ने इजरायल के साथ संयुक्त हवाई अभ्यास करके फिर से संदेश भेजने की कोशिश की है कि इजरायल को अमेरिका की ओर से हमला करने का ग्रीन सिग्नल मिल चुका है.
इस सैन्य अभ्यास में अमेरिकी B-52 बमवर्षक विमान ने भी हिस्सा लिया, जो ईरान की सैकड़ों फीट गहरी जमीन के अंदर बने परमाणु सुविधाओं को ध्वस्त करने की क्षमता रखता है. इसके अलावा, इस हवाई सैन्य अभ्यास में इजरायली F-15I और F-35I विमानों ने भी हिस्सा लिया.
यह अभ्यास तब किया गया है, जब ईरान अमेरिका की कई चेतावनियों को नजरअंदाज कर प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया. ऐसे में यह स्पष्ट है कि ईरान पर हमले के लिए इजरायल पूरी तरीके से तैयार है. जिसमें अमेरिकी बमवर्षक विमान ईरान को ध्वस्त कर सकते हैं.
ईरान के खिलाफ यमन बना बेस
अमेरिका 15 मार्च से ही, यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ लगातार बमबारी कर रहा है. यह हमला लाल सागर में अमेरिकी जहाजों और इजरायल पर हुतियों द्वारा किए गए हमले के खिलाफ शुरू हुआ है. दूसरी ओर अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने कहा है कि ‘जब हूती विद्रोही हमले करना बंद कर देंगे, तो हमारी कार्रवाई भी बंद हो जाएगी’
हालांकि अमेरिका ने खुले से मंच से कहा है कि हुतियों को ईरान का समर्थन प्राप्त है, और इन हमलों के पीछे ईरान का ही हाथ है. अमेरिका का मानना है कि हुतियों को ईरान से ट्रेनिंग और पैसे मिलते हैं, जिसको लेकर ट्रंप ने खुद ईरान को चेतवानी दी है.
हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि हुतियों पर अमेरिका के हमले की असल वजह, ईरान को परमाणु समझौते के लिए बैकफुट पर लाना है. लेकिन ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई ने साफ शब्दों में प्रस्ताव को खारिज कर दिया है.
ईरान के पास अब दो विकल्प
अब ऐसे में ईरान के पास केवल दो विकल्प ही बचते हैं, या तो वह अमेरिका के सामने झुक जाए या फिर युद्ध के लिए तैयार रहे. लेकिन रिपोर्ट की माने तो ईरान इस वक्त कमजोर स्थिति में है. ईरान ने स्वीकार किया है कि अक्टूबर 2024 के इजरायली हमले में उसका सबसे मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम ध्वस्त हो गया था, जिससे इजरायल से मुकाबला करने की उसकी क्षमता कमजोर है. जिसके लिए ईरान, रूसी एयर डिफेंस सिस्टम एस-400 खरीदने के लिए बातचीत कर रहा है. लेकिन रूस पहले से ही युद्ध की चपेट में है, जिसके चलते उसकी सप्लाई चेन ठप पड़ी हुई है.
इतना ही नहीं, इसके अलावा ट्रंप प्रशासन ने ईरान के खिलाफ, लगाए गए प्रतिबंधों को और सख्त करने की बात भी की है. अमेरिकी सरकार चीन को ईरानी तेल की सप्लाई रोकने की कोशिश में लगा हुआ है. जोकि ईरान की अर्थव्यवस्था के लिए लाइफलाइन है. ऐसे में अमेरिका तेल की सप्लाई रोकने में सफल हो जाता है, तो ईरान को अरबों डॉलर का सीधा नुकसान होगा.
ऐसे में ईरान अमेरिका-इजरायल के खिलाफ युद्ध के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं है. वहीं दूसरी ओर, संयुक्त हवाई अभ्यास ने इजरायल को ईरान पर हमले के लिए ग्रीन सिग्नल दे दिया है.
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