Explainer: 'हमारा राजा वापस लाओ...' क्या 16 साल बाद फिर हिंदू राष्ट्र बनने जा रहा नेपाल?

Nepal Politics: नेपाल में दोबारा हिंदू राजशाही की बहाली को लेकर मांग तेज हो गई है. जिसको लेकर काठमांडू में एयरपोर्ट पर पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का, उनके समर्थकों ने जोरदार स्वागत किया. इस दौरान यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के बैनर को लेकर चर्चा तेज हो गई. ऐसे में आइए जानते हैं, क्या नेपाल दोबारा हिंदू राष्ट्र बनने जा रहा है.  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Mar 15, 2025, 05:49 PM IST
  • क्या दोबारा हिंदू राष्ट्र बनने जा रहा नेपाल
  • योगी आदित्यानाथ के पोस्टर पर विवाद
Explainer: 'हमारा राजा वापस लाओ...' क्या 16 साल बाद फिर हिंदू राष्ट्र बनने जा रहा नेपाल?

Nepal Politics: इन दिनों नेपाल की राजनीति में भूचाल मचा हुआ है. देश के कोने-कोने में बढ़ते भ्रष्टाचार व अव्यवस्थित लोकतंत्र को लेकर भारी प्रदर्शन किए जा रहे हैं. इस बीच, काठमांडू में नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का हजारों समर्थकों ने जोरदार स्वागत करते हुए, हमारा राजा वापस लाओ के नारे लगाए. इस दौरान समर्थकों ने देश में दोबारा राजशाही की बहाली और हिंदू धर्म को केंद्र की सत्ता में लाने की मांग की. चूंकि, वर्ष 2008 में नेपाल में राजशाही को खत्म कर, लोकतांत्रिक व्यवस्था को लागू किया गया, लेकिन लोकतांत्रिक सरकारों की कार्यशैली और भ्रष्टाचार से नेपाल की जनता नाराज है, जिसको लेकर जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.

रविवार को पश्चिमी नेपाल के दौरे से लौट रहे ज्ञानेंद्र शाह का स्वागत के लिए उनके 10 हजार से ज्यादा समर्थकों ने त्रिभुवन इंटरनेशनल एटरपोर्ट के मेन गेट को जाम कर दिया. इस दौरान उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के पोस्टर भी दिखाई दिए. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस विरोध प्रदर्शन में 1990 के दशक में बनी राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के कार्यकर्ता और समर्थक बड़ी संख्या में शामिल थे.

2008 में खत्म हुई 240 साल पुरानी हिंदू राजशाही
16 वर्ष पहले नेपाल दुनिया का एकमात्र हिंदू राष्ट्र हुआ करता था, लेकिन लंबे समय से नेपाल में चले माओवादी आंदोलन के चलते, वर्ष 2008 में नेपाल के राजा ज्ञानेंद्र शाह को अपना सिंहासन छोड़ना पड़ा और नेपाल में हिंदू राजशाही पूरी तरीके से खत्म हो गई. दरअसल, एकीकृत नेपाल के पहले राजा पृथ्वी नारायण शाह थे, जिन्होंने वर्ष 1768 में गोरखा साम्राज्य को एक राज्य के रूप में एकीकृत किया था. इससे पहले नेपाल छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था. भारत की आजादी के समय त्रिभुवन शाह के बेटे महेंद्र शाह 1955 में राजा बने और 1972 तक देश पर राज किया. इसके बाद ज्ञानेंद्र शाह के बड़े भाई बीरेंद्र शाह राजगद्दी पर बैठें, जिनकी परिवार सहित वर्ष 2001 में नृशंस हत्या कर दी गई. 
 
वर्ष 2001 में ज्ञानेंद्र शाह ने नेपाल की राजगद्दी संभाली, पर माओवादी आंदोलन के चलते ज्ञानेंद्र शाह को बड़े पैमाने पर भारी विरोध प्रदर्शन झेलना पड़ा.  जिसके चलते ज्ञानेंद्र को वर्ष 2006 में एक बहुदलीय सरकार को सत्ता सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ा. आखिर में वर्ष 2008 में नेपाल की संसद ने देश में 240 साल पुरानी हिंदू राजशाही को खत्म करने के लिए मतदान किया, जिसके बाद लोकतंत्र की बहाली हुई. तबसे लेकर अबतक नेपाल में 13 बार सरकारें बदल चुकी हैं, लेकिन नेपाल की जनता लोकतांत्रिक व्यवस्था से नाखुश नजर आ रही.

‘नारायणहिटी खाली गर, हाम्रो राजा आउंदै छन’
जब ज्ञानेंद्र शाह नेपाल के तीर्थों का दर्शन करने के बाद रविवार को काठमांडू पहुंचे, तब उनके हजारों समर्थकों ने उन्हें त्रिभुवन एयरपोर्ट पर घेर लिया. इनमें बड़ी संख्या में युवा और महिलाएं शामिल थीं. समर्थकों के बीच से एक नारा गूंज रहा था, ‘नारायणहिटी खाली गर, हाम्रो राजा आउंदै छन’ यानी ‘नारायणहिटी खाली करो, हमारे राजा आ रहे हैं’. नारायणहिटी पैलेस पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का पूर्व आवास है.

इसके पीछे का कारण नेपाल के प्रधानमंत्री का एक बयान माना जा रहा है, जब उन्होंने कहा, ‘अगर वह सत्ता में आने के लिए इतने गंभीर हैं, तो एक राजनीतिक पार्टी बनाएं और चुनाव लड़ें’. पिछले दो महीने से ज्ञानेंद्र शाह नेपाल के दौरे पर हैं. इस बीच उन्होंने झापा और पोखरा के साथ-सांथ कई मंदिरों और तीर्थस्थलों का दौरा किया. इस दौरान उन्होंने राजनीतिक हालात और जमीनी हकीकत जानने के लिए स्थानीय लोगों से भी मुलाकात भी की. जिसके बाद से ही उनके समर्थकों में, दोबारा हिंदू राजशाही स्थापित करने को लेकर जबरदस्त उत्साह दिखाई देने लगा है.
ज्ञानेंद्र शाह को RPP का है समर्थन

नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के समर्थकों में, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (RPP) के नेता और कार्यकर्ता बड़ी संख्या में शामिल थे. वर्ष 2006 में गठित RPP के नेपाल की संसद में 14 सदस्य हैं और कमल थापा इसके अध्यक्ष हैं. जब नेपाल में हिंदू राजशाही खत्म हुई, तब इस पार्टी ने आम चुनावों में 8 सीटें जीती थी. RPP माओवादी पार्टी के साथ सरकार में भी शामिल रही, हालांकि जब नेपाल का माओवादी आंदोलन कमजोर हो चुका है, वैसे में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का समर्थन कर रही है. 

वहीं दो साल बाद नेपाल में आम चुनाव होने वाले हैं, लेकिन उससे पहले आरपीपी का पूर्व राजा के प्रति झुकाव नेपाल की बदलती राजनीति की तस्वीर पेश करती है. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि नेपाल दोबारा हिंदू राष्ट्र बनने जा रहा है. जिसको लेकर राजनीतिक पार्टियां और आम जनता सड़कों पर उतर आई है. 
इसको लेकर काठमांडू में स्थानीय प्रशासन ने, पांच से अधिक लोगों के जमा होने और किसी भी तरह के जुलूस निकालने पर पाबंदी लगा दी है.

योगी आदित्यनाथ की तस्वीर पर छिड़ा विवाद
त्रिभुवन एयरपोर्ट पर उमड़ी समर्थकों की भीड़ के बीच, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पोस्टर भी दिखाई दिए. जैसे ही ये तस्वीर सामने आई, नेपाल की राजनीति और गर्म हो गई. इसको लेकर मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियां ज्ञानेंद्र शाह की सक्रियता के पीछे भारत का हाथ बता रहे हैं. जिसको लेकर प्रधानमंत्री ओली शर्मा की पार्टी का एक बयान सामने आया कि, “यह 1950 का दशक नहीं है, जब भारत में शरण लेने पहुंचे त्रिभुवन शाह को नेपाल का राजा बना दिया गया, इसलिए अगर ज्ञानेंद्र शाह को लेकर अगर कोई योजना है, तो बेहतर होगा कि उसे वहीं छोड़ दें.” हालांकि, भारत की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. 

क्या नेपाल में सफल है लोकतंत्र?
वर्ष 2008 में हिंदू राजशाही खत्म कर लोकतंत्र तो आ गया, लेकिन पिछले 17 सालों में अलग-अलग जगहों से, इसको लेकर विरोधी सुर सुनाई देते रहे हैं. जिस माओवादी आंदोलन ने नेपाल में राजशाही को खत्म किया, आज वह टुकड़ों में बिखरी हुई है. जिसके चलते नेपाल की अर्थव्यवस्था अस्थिर है. नेपाल के केंद्रीय बैंक Nepal National Bank के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 में नेपाल में 10 अरब 86 करोड़ डॉलर रेमिटेंस के रूप में आया था. जो वहां की कुल GDP के चौथाई के बराबर थी. इतना ही नहीं नेपाल की लोकतांत्रिक सरकारों पर भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे हैं. साथ ही, राजनीतिक बयानों के चलते पड़ोसी देशों से भी रिश्तों में खटास आई. नेपाल की संसद को भी भंग करना पड़ा है. ऐसे में राजनीतिक अस्थिरता के चलते, नेपाल का विकास भी अधर में पड़ चुका है. यही कारण है कि नेपाल में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की वापसी को लेकर सुर तेज हैं. नेपाल में दोबारा राजशाही लागू कर ज्ञानेंद्र शाह को राजा बनाने की मांग की जा रही है.

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