पता चल गया फेफड़ों को कितना नुकसान पहुंचाता है ओमिक्रॉन, शोध में बड़ा खुलासा
श्वसनी में ओमिक्रॉन तेजी से अपनी संख्या बढ़ाता है यानी डुप्लिकेट होता है. लेकिन जैसे ही यह फेफड़ों में पहुंचता है इसकी डुप्लिकेट होने की रफ्तार कम हो जाती है.
लंदन: एक ओर कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन भारत समेत दुनिया के कई देशों में फैलता जा रहा है तो दूसरी ओर इस वेरिएंट को लेकर कुछ सकारात्मक शोध भी सामने आ रहे हैं.
हांगकांग के वैज्ञानिकों ने नए शोध में पाया है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट जब किसी को संक्रमित करता है तो वह श्वसनी (इसमें से ही होकर हवा फेफड़े में पहुंचती है) में पहुंचा है तो यह काफी ताकतवर होता है. श्वसनी में ओमिक्रॉन तेजी से अपनी संख्या बढ़ाता है यानी डुप्लिकेट होता है. लेकिन जैसे ही यह फेफड़ों में पहुंचता है इसकी डुप्लिकेट होने की रफ्तार कम हो जाती है. इसी वजह से यह वायरस ज्यादा लोगों को संक्रमित तो करना है लेकिन यह हल्की बीमारी का कारण बनता है.
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वैज्ञानिकों के मुताबिक डेल्टा वेरिएंट की तुलना में ओमिक्रॉन वेरिएंट श्वसनी में 70 गुना तेजी से बढ़ता है लेकिन फेफड़ों में इसके संक्रमण की रफ्तार डेल्टा से 10 गुना कम होती है. ज्ञात हो की दक्षिण अफ्रीका जहां ओमिक्रॉन वेरिएंट मिला था वहां के वैज्ञानिक बार-बार कह रहे हैं कि ओमिक्रॉन वेरिएंट से हल्के लक्षण होते हैं. नए शोध से उनकी इस बात को बल मिलता है. इसलिए ओमिक्रॉन वेरिएंट से लोगों को सर्दी-जुकाम जैसे हल्के लक्षण हो रहे हैं.
पर रहना होगा सतर्क
हांगकांग विश्वविद्यालय के एक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और मुख्य अन्वेषक डॉ माइकल चैन ची-वाई ने चेतावनी दी कि प्रतिकृति की गति केवल कोविड संक्रमण की गंभीरता को मापने का एक तरीका है और मरीज अभी भी इस नए वायरस से अस्वस्थ हो सकते हैं. उनका कहना है कि ओमाइक्रोन से खतरा बड़ा होने की आशंका अभी काफी है. अगर जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा संक्रमित हुआ तो मृत्युदर बढ़ सकता है.
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