दुनिया में जिस तरह से अटैकिंग ड्रोन्स ने कहर बरपाया है, ऐसे में कई देशों में इसकी क्षमता को लेकर चिंता बढ़ गई. ऐसे में दक्षिण कोरिया ने एक ऐसी तरकीब निकाली है कि रडार को चकमा देने वाले ड्रोन, अब किसी हाल में भी नहीं बच पाएंगे. बता दें, दक्षिण कोरिया की एजेंसी फॉर डिफेंस डेवलपमेंट (ADD) ने एक AI-आधारित फोटोनिक रडार तकनीक का सफल परीक्षण किया है, जो बेहद छोटे ड्रोन तक की पहचान करने में सक्षम है. इस टेक्निक में लेजर प्रकाश को इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिग्नल में बदलकर AI की मदद से टारगेट की पहचान करता है.
दक्षिण कोरिया की ADD ने बनाया रडार
दक्षिण कोरिया की एजेंसी फॉर डिफेंस डेवलपमेंट (ADD) ने हाल ही में एक एडवांस फोटोनिक रडार तकनीक का सफल परीक्षण किया है, जो AI पर आधारित है. यह टेस्टिंग दक्षिण कोरिया के सेजोंग इलेक्ट्रॉनिक टेस्ट साइट पर किया गया, जिसे देश की निगरानी और सुरक्षा क्षेत्र में एक नई शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है.
इस तकनीक का विकास 2022 से ‘फ्यूचर चैलेंज नेशनल डिफेंस टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट’ के तहत किया जा रहा है. ADD के मुताबिक, यह तकनीक भविष्य के रक्षा खतरों से निपटने में बेहद मददगार साबित होगी और आधुनिक युद्ध प्रणाली का अभिन्न हिस्सा बनेगी.
छोटे अटैकिंग ड्रोन पकड़ने में मिलेगी मदद
ADD द्वारा प्रदर्शित यह नई तकनीक उन छोटे एयरक्राफ्ट को भी पहचान सकती है, जिन्हें पारंपरिक कैमरा आधारित सिस्टम पकड़ने में असफल रहते हैं. प्रदर्शन के दौरान इस रडार ने एक बेहद छोटे ड्रोन को कई किलोमीटर की दूरी से पहचान कर बड़ी उपलब्धि हासिल की.
इस परीक्षण में शामिल रहे सैन्य और तकनीकी अधिकारियों ने इस उपलब्धि की सराहना की. विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में छोटे, सस्ते और तेज ड्रोन युद्ध का तरीका बदल सकते हैं, और ऐसे में इनकी पहचान करना रणनीतिक रूप से बेहद जरूरी हो गया है.
कैसे काम करता है यह रडार?
फोटोनिक रडार टेक्निक लेजर प्रकाश को इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिग्नल में बदलती है और इन्हें टारगेट की ओर भेजा जाता है. जब ये सिग्नल टारगेट से टकराकर लौटते हैं, तब AI की मदद से उनकी एनालिसिस की जाती है, जिससे टारगेट की उपस्थिति और पहचान की पुष्टि होती है.
ADD के थर्ड टेक्नोलॉजी रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर जियोंग सियोंग-टाए ने कहा कि यह तकनीक रियल-टाइम एनवायरनमेंट में बेहतरीन प्रदर्शन कर रही है. उनका कहना है कि आगे इस तकनीक को और विकसित कर इसे K-Defense (कोरियन डिफेंस) में कॉमर्शियल रूप से इस्तेमाल किया जाएगा.
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